पिछले लेख में मैंने चंद्र साधन ( गणित ) का प्रयास किया था। इसका लाभ आप लोगों को अवश्य ही प्राप्त हुआ होगा। भारतीय वैदिक ज्योतिषशास्त्र में सौरमंडल (भचक्र ) अथार्त 360 अंश को 12 भागों में बांटा गया है। इस प्रकार 1 भाग का मान 30 अंश होता है। इसी 30 अंश का एक लग्न और एक राशि होती है। कुल 12 राशि और 12 लग्न होते है। ( 27 नक्षत्रों को 12 भागों में बाँट कर विभाजित किया गया है। इन्हीं 12 समूह को राशिचक्र कहते हैं ) जन्म के समय में, आकाश मंडल में, चंद्रमा जिस राशि में स्थित होगा, जातक की वहीं राशि कहलाती है।आज हम इन 12 राशियों का अध्ययन करेंगे। जातक / जातिका का राशि फलकथन एक समान है, चूँकि बारम्बार जातक / जातिका लिखा नहीं गया है, किन्तु इसको जातिका, जातक को ही जातिका समझकर राशि फलकथन स्वीकार्य कर लीजियेगा।
1 - मेष राशि :
मेष राशि का स्वामी मंगल है। यह तमोगुणी, चर राशि, पूर्व दिशा तथा अग्नि तत्व राशि है। मेष राशि के जातक धनाढ्य, सन्तानों से सुखी, तेजस्वी, कार्यों में रुचि, सदैव परोपकार में लगा रहने वाला, सुशील, सरकार से सहायता प्राप्त या अधिकारियों का प्रिय, गुणवान्, देवता, गुरु, ब्राह्मणों, अतिथियों का भक्त, हल्का गरम भोजन प्रिय, नौकर-चाकरों पर दयालु, जल से भय, चंचल प्रकृति, किसी भी कार्य को प्रारम्भ करने में अधिक बोलने वाला, देश-देशान्तर का भ्रमण करनेवाला, शरीर दृढ़ देखने में कृश, शीघ्रगमन करनेवाला, धन का उतार-चढ़ाव, कभी अत्यधिक धन कभी रोग का आधिक्य, उदर रोग, मन्दाग्नि, माता से मतभेद, अनेक जनों पर अधिकार करने वाला तथा मेष, वृश्चिक, कर्क, सिंह, धनु तथा मीन राशिवालों से मैत्री, व्यवहार, साझे का व्यापार आदि हितकारी है। 3, 12, 16,17, 25, ३२ वें वर्ष में रोग अथवा शारीरिक कष्ट की संभावना रहती है।
2 - वृष राशि :
वृष राशि का स्वामी शुक्र है। यह रजोगुणी, स्थिर राशि, दक्षिणा दिशा तथा पृथ्वी तत्त्व राशि है। वृष राशि के जातक सुगठित शरीराकृति वाला, आलसी, प्रसन्नचित्त, कामी, दानी, सत्यवादी, धनाढ्य, दीर्घायु, परोपकारी, माता, पिता तथा गुरु का भक्त, माननीय, मिष्टान्न प्रेमी, भोगी, आभूषणप्रिय, सुगन्धित पदार्थों का सौख्य, चतुर, सरकार से सहायता प्राप्त, सभा चतुर, सन्तोषी, शान्त चित्त, बहादुर, बुद्धिमान्, सुशील, उत्तम वस्त्राभूषण वाला, नित्य बदला भोजन पसन्द करने वाला, अपने कार्यों में दृढ़, मित्राधिक्य, देखने में सुन्दर, कष्ट सहन करनेवाला, अजीर्ण रोगवाला, न्यायायलय में दोषी पाया जानेवाला, पशुभय, कफरोगी, स्त्री की आज्ञा माननेवाला, कन्या सन्तान अधिक, कलाकार, गायन में रुचि, खेलकूद में रूचि अधिक, अकस्मात् धनलाभ करनेवाला, सुखमय, अधिकारपूर्ण जीवन, सन्तान एवं वाहन सुख-सम्पन्न, बाल्यावस्था में दुःखी पश्चात् सुखी होता है। जन्म से 1, 3, 7, 10, 12, 16, 24 वर्ष में रोग अथवा शारीरिक कष्ट होता है। जातक को वृष, तुला, मकर, कुम्भ, मिथुन तथा कन्या राशिवालों से मैत्री व्यवहार, तथा साझे के कार्य-व्यापार आदि करना हितकारी रहेगा।
3 - मिथुन राशि :
मिथुन राशि का स्वामी बुध है। यह तमोगुणी एवं सतोगुणी मिश्रित, द्विस्वभाव राशि, पश्चिम दिशा तथा वायु तत्त्व राशि है। मिथुन राशि के जातकचतुर, घर से दूर या विदेश गमन वाला, सत्कार्य करने वाला, माता-पिता का भक्त, बुद्धिमान्, यशप्रिय, दृढ़ मैत्री वाला, मिष्टान्न प्रेमी, सुशील, बहुभाषी, परिवार का पालन करनेवाला, मायावी, रतिप्रिय, गुणवान्, मर्म को जानने वाला, भोगी, दानी, धर्मात्मा, मिश्रित (शान्त, क्रोध) चित्त, कुशाग्र बुद्धि, मानसिक एवं शारीरिक परिश्रम करने वाला, यात्रा का प्रेमी, सभी जनों का प्रिय, दृढ़ प्रतिज्ञा करने वाला, हास्यप्रेमी, विशेष विद्या को जानने वाला, अधिक भोजन करने वाला, नाक बड़ी, बाल सुन्दर, आँखे बड़ी, काम शास्त्र में निपुण, कभी -कभी दो विवाह की संभावना वाला, पुरुष / महिला मित्र स्त्री को विशेष चाहने वाला, किन्तु स्वल्प सन्तान, भाग्यवान्, अकस्मात कहीं से अधिक धन लाभ, 2 या 2 से अधिक जगहों से धनलाभ करने वाला, बाल्यावस्था में अधिक सुखी, मध्यावस्था में सुखी किन्तु वृद्धावस्था में दुःखी रहता है। जातक को मिथुन, कन्या, तुला, वृष, मकर एवं कुम्भ राशिवालों से मैत्री, व्यापार, साझे के कार्य, आदि हितकर होता है । जन्म से 5, 16, 18, 20, 38वें वर्ष में रोग या शारीरिक कष्ट होने की संभावना रहती है।
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