कुंडली के १२ लग्न, लग्नो के स्वामी, गुण, तत्त्व, स्वभाव, कष्टप्रद वर्ष तथा भाग्योदय वर्ष : ( भाग -1 )
पिछले लेख में आपने लग्न साधन ( गणित ) पढ़ा और उसको समझा है। भारतीय वैदिक ज्योतिषशास्त्र में सौरमंडल (भचक्र ) अथार्त 360 अंश को 12 भागों में बांटा गया है। इस प्रकार 1 भाग का मान 30 अंश होता है। इसी 30 अंश का एक लग्न और एक राशि होती है। कुल 12 राशि और 12 लग्न होते है। आज हम इन 12 लग्नों का अध्ययन करेंगे। जातक / जातिका का लग्न फलकथन एक समान है, चूँकि बारम्बार जातक / जातिका लिखा नहीं गया है, किन्तु इसको जातिका, जातक को ही जातिका समझकर लग्न फलकथन स्वीकार्य कर लीजियेगा।
1 - मेष लग्न :
मेष लग्न का स्वामी मंगल है। यह तमोगुणी तथा अग्नि तत्व कारक है। प्रत्यक्ष गुणी, तेज, साहसी, पराक्रमी तथा संग्रामप्रिय अतः मेष लग्न का जातक बिना विचार किये भिड़ जाने वाला, पित्त विकार, स्वजनों की सहायता न पानेवाला, दुर्घटना, कण्ठ से ऊपर सिर वाले भाग में चोट, कृषिकार्य से लाभ, वाहन सुख, बड़े परिवार वाला होता है। स्त्री प्रिय, उदार हृदयवाला, सुन्दर रूप वाला भाग्यवान्, शीलवान, सुशीला स्त्री, गुण युक्त, विद्यानुरागी तथा मनुष्यों का प्रिय होता है । जातक सज्जनों का कार्य करनेवाला, अधिक शत्रुओं वाला, गर्वीला, कुछ अशों में दम्भी, आत्मबली, द्विज देवभक्त, पुण्य आत्मा, धर्मपरायण, मध्यम सन्तान युक्त, सन्तोषी, दुष्टों के बहकावे में आनेवाले, प्रतापी, प्रसिद्ध जल से भय विद्या या मित्रों द्वारा धन लाभ करनेवाले तथा कर्मशील होते है। अधिक विवाद या कलह के कारण मुकदमें आदि में धन व्यय अधिक होगा। दुष्ट संगति से सदैव बचना चाहिए। अधिक विचार करने के पश्चात् ही किसी कार्य में प्रवृत्त होना चाहिए। मेष लग्न जातक का बाह्य एवं आन्तरिक भाव सदैव एक जैसा रहता है। यह मन, वचन एवं कर्म एक ही रहता है। यह प्रत्येक बात में न्याय के लिए शीघ्र ही अपनी राय दे देता है। इसके भाग्य में अनेक परिवर्तन होते हैं। भाई-बहनों का मध्यम सुख, थोड़े भाई-बहन जातक में चंचलता अधिक रहती है, स्वतन्त्रता प्रिय तथा दूसरों का सिर दर्द अपने ऊपर लेने वाला होता है। जातक को जन्म से 4,16,19, 21, 30, 39, 44, 57, 66वे वर्षों में कष्ट होता है जबकि भाग्योदय 28 वें वर्ष के लगभग होती है। मित्र ग्रही लग्न वालों से मैत्री सफल रहती है ।
2 - वृष लग्न :
वृष लग्न का स्वामी शुक्र है। यह लग्न रजोगुणी तथा पृथ्वी तत्त्व की है। जातक गठीले शरीर वाला, अधिकार प्रिय, शान्तिप्रिय, धैर्यवान् सहिष्णु अर्थात् दुःस में भी धैर्य धारण करने वाला, दयालु, गम्भीर छिपाने की कला म निपुण, संग्राममय जीवन, योगी, वीर, विद्वान् तथा प्रचलित पद्धति का विरोधी, गौरवर्ण, कफ प्रकृति, स्थिर विचार, धनाढ्य बुद्धिवाला, कन्या सन्तति अधिक, स्नेही दाहक, धर्म के कार्य करने वाला, माननीय, विश्वासपात्र, पक्षपाती तो कभी जन विरोधी कार्य करनेवाला, शान्त स्वभाव होते हुए भी कभी उग्र, केवल अपने अनुसार कार्य करने वाला, व्यक्तिगत स्वार्थ वाला तथा सुविधा भोगी, काव्य में रुचि, कामी, चतुर, तीव्र स्मरण शक्तिवाला अपनी योजनाओं को गुप्त रखने वाला जीवन का प्रथम भाग दुःखमय किन्तु मध्यभाग एवं उत्तरार्द्ध सुखमय होता है। जातक कान्तिकारी परिवर्तन में विश्वास रखने वाला होता है। मित्र ग्रही लग्न वालों से मैत्री सफल रहती है। जातक की जन्म से 1, 28, 33, 44, 61वे वर्ष में कष्ट की संभावना रहती है तथा भाग्योदय 30 वर्ष की उम्र के लगभग हो सकता है।
3 - मिथुन लग्न :
मिथुन लग्न का स्वामी बुध है। यह तमोगुणी एवं सतोगुणी मिश्रित तथा वायु तत्त्व कारक लग्न है, जातक प्रायः द्वन्द्वात्मक स्थितिवाला, निर्णायक स्थलों पर प्रायः विलम्ब करनेवाला, बुद्धिमान्, कुछ आलसी, बुद्धिप्रधान कार्यों में रुचि, कला-कौशल का प्रेमी, लेख, निबन्ध, पुस्तक आदि की रचना करनेवाला, सदैव परिवर्तनशील शीघ्र धैर्य छोड़ देने वाला, गौरवर्ण, कभी स्त्री, पुत्र फी चिन्ता से व्यग्र होने वाला, शरीर में रोग, प्रियभाषी, नम्रतायुक्त धनाढ्य, योग, योगाभ्यास में रुचि, वृक्षों से लाभ कमाने वाला, कूटनीति द्वारा धन संग्रह करने वाला, परधन लोभी, सन्तानों से अधिक प्रेम रखनेवाला, कभी किसी विषैले जन्तुओं से कष्ट, कभी चोरी से धनहानि, गुणी, कामी, उन्नत यक्ष:स्थल, गुरुजनों की आज्ञा को मानने वाला, यशस्वी धार्मिक कार्यों में अभिरुचि, वाटिका, जलाशय, यश, यात्रा का शौकीन, स्वल्प पुत्रादि, स्थूल शरीर की पत्नी एवं मन्द बुद्धिवाली, जातक दुबला किन्तु लम्बा, छोटी नासिका, सुन्दर नेत्र, मौलिक विचार, विनोदी स्वभाव, सौन्दर्यप्रेमी, अमुख प्राप्ती के उपरांत भी चिन्तित रहने वाला, वाणिज्य, अध्यापन, विज्ञान में रुचि रखने वाले होते हैं। कन्या, तुला, कुम्भ एवं वृष लग्नवालों से मैत्रीभाव तथा साझेदारी करना सदैव लाभदायक रहेगा। जातक को स्नायु दुर्बलता तथा फेफड़े की समस्या का ध्यान रखना चाहिए। जातक के लिए जन्म से 4, 10, 24, 30, 38, 52 वें वर्षों में कष्ट की संभावना रहती है। जातक का भाग्योदय 32 वर्ष में लगभग होता है।
4 - कर्क लग्न :
कर्क लग्न का स्वामी चन्द्रमा है। लग्न के पूर्वार्द्ध अंश में चंद्र कठोर तथा उत्तरार्ध अंशो में चंद्र कोमल होता है। यह रजोगुणी तथा जल तत्व का है। जातक गौरवर्ण, पित्ताधिक प्रकृति मध्य कद, गोल चेहरा, स्थूल शरीर, धार्मिक, सत्यवादी, धनी, वीर तथा विजयी होगा। मर्यादायुक्त, प्रशंसनीय तथा आविष्कर्ता होता है। जातक वाचाल, जलप्रेमी, बुद्धिमान, पवित्र, क्षमाशील, सुखी लोगों से सहायता प्राप्त करनेवाला, परोपकारी, अपने पराक्रम से उन्नति करनेवाला, शास्त्रज्ञ, अनेक मित्रों से युक्त, थोड़ा क्रोधी, देव कार्य करने वाला, गुरु, ब्रह्मण, अतिथि का सत्कार करने वाला, विद्या, प्रसन्न चित्तवाला, कभी पशुओं से भय, यज्ञ अनुष्ठानादि को सम्पन्न करनेवाला, तीर्थयात्रा करने वाला, सरकार से सहायता प्राप्त करने वाला, अधिक सन्तान तथा किसी सन्तानको पीड़ा, धार्मिक स्वभाव युक्त जीवनसाथी , पति/ पत्नी व्रता, गुणवान और सौभाग्यवान होते है। जातक शीघ्र ही उत्तेजित हो जानेवाला, विशाल एवं स्वच्छ हृदय, स्थायी सम्पति, भावुक मन, जन प्रेमी कल्पनाशील, असफल प्रेमी, मितव्ययी, राष्ट्रभक्त दो या तीन व्यवसाय अथवा स्रोतों से धन आय प्राप्त करनेवाला होगा। जातक लेखा-जोखा कार्य करनेवाला, इतिहास को जाननेवाला, राजनीति में रुचि रखनेवाला, तरल पदार्थ, दूध, जल आदि का काम करने वाला होता है। जातक की मैत्री सिंह, वृश्चिक, मीन तथा मेष लग्नवालों से सदैव रहेगी। जातक जन्म से 5, 25, 40, 48, 62 वे वर्षों में कष्ट होने की सम्भावना रहती है। और 26 वर्ष के आसपास भाग्योदय होता है।
5 - सिंह लग्न :
सिंह लग्न का स्वामी सूर्य कठोर एवं कोमल दोनों प्रकार का होता है। उच्चराशिस्थ या उत्तरापण का सूर्य कठोर तथा नीचराशिस्थ दक्षिणायन में कोमल रहता है। तथा सिंह लग्न का पूर्वाद्ध अंश कठोर तथा उत्तरार्द्ध अंश में कोमल सूर्य होता है। यह रजोगुणी अग्नितत्व का है। अतः जातक गौर पीत मिश्रित रंगवाला, आकर्षक शरीर, मुखाकृति लम्बी, शरीर दृढ़ चौड़ा वक्षःस्थल, सम उन्नत आकृति होगी। वीरप्रतापी, तेजावी स्वतन्त्र विचार एवं स्वभाव, परतन्त्रता में एक क्षण भी कार्य न करनेवाला, राजगुणों से युक्त, नियमों का पालन करनेवाला, कठोर निर्णय लेनेवाला, अचानक महान विभूति सम्पन्न योगसाधक, सत्यप्रिय गम्भीर भयरहित, कपटरहित, स्पष्टवादी, धैर्यवान, उदार, शान्तिपूर्वक व्यवहार करनेवाला, वातपित्त रोगी, मित्रों तथा सेवकों से सन्तुष्ट, धर्मबुद्धिवाला, साधुजनों पर कृपा करनेवाला, सज्जनों के लिए धन खर्च करनेवाला, देव-ब्राह्मण, अतिथि सभी का सत्कार करने वाला, विपरीत स्त्री / पुरुष से मित्रता / अभिलाषी, स्त्री सन्तान का सुख कम, पद, स्थान, वाहन आदि से सम्पन्न होगा। दो विवाह अथवा दो स्त्रियों से सम्बन्ध रखने की संभावना, जातक प्रभावशाली एवं प्रेरणादायक व्यक्तित्ववाला, प्रशासनिक, अधिकारी, प्राकृतिक दृश्यों में अभिरुचि, अध्ययनशील, हठी, क्रोधी, किन्तु तत्क्षण दयालु, सामाजिक कार्यों, नेतृत्व करनेवाला, वन विभाग आदि में होते हैं। वृश्चिक, धनु, मेष तथा वर्क लग्नवालों से मैत्री होती है। इन लग्न की कन्याओं से विवाह स्थायी एवं प्रेमपूर्ण रहता है। जन्म से 3, 5, 28, 36, 48, 63वे वर्षों में कष्ट की संभावना रहती है। और जातक का 22 वर्ष से 26 के मध्य भाग्योदय होता है।
6 - कन्या लग्न :
कन्या लग्न का स्वामी बुध है। यह सत्वगुणी तथा पृथ्वी तत्त्व का है। जातक का कोमल शरीर, छोटा या मझोला कद, छोटी भुजावाला, मिश्रित वर्णवाला, प्रबन्ध कुशल, स्त्रियोचित स्वभाव, मधुरभाषी, कफ प्रकृतिवाला, कान्तियुक्त सुखी, डरपोक हृदयवाला, काम सन्तप्त, हर वर्ग के लोगों से मैत्री रखनेवाला, विजयी, यशस्वी, ईश्वरभक्ति परायण, सदभावयुक्त, प्रत्येक वस्तु की परीक्षा करने में चतुर, अपने लोगों को आनन्द देनेवाला, प्रेमी, प्रभावशील तथा अधिक सन्तानवाला होता है। पत्नी विचित्र बुद्धिवाली तथा कलह करने की संभावना रहती है। धन का लाभ स्त्रियों से या सहयोग से, विद्या से, जल से, कृषि आदि से होता है। जातक वाणिज्य में अतिनिपुण, विनयी, सावधानी से कार्य करनेवाला, अपने कार्यों को गुप्त रखनेवाला तार्किक एवं बुद्धिवादी, अधिक उम्र में भी कम अवस्था का प्रतीत होनेवाला होता है। जातक अध्यापक, कुशल प्रबन्धक, चार्टर्ड एकाउण्टेण्ट अथवा पी.सी. एस. या आई.ए.एस. तक हो सकता है। साहित्य में अभिरुचि के साथ मनोविज्ञान में भी निपूर्ण होता है। जातक का मिथुन, मकर, कुम्भ तुला एवं वृष लग्नवालों से प्रेम व्यवहार तथा मैत्री सुदृढ़ रहती है। जातक का जन्म से 4, 16, 23, 36, 45, 54वे वर्षों में कष्ट की संभावना रहती है, जबकि भाग्योदय 32 से 34 वर्ष के मध्य हो जाता है।
शेष अगले भाग में ................
धन्यवाद,
प्रणाम,🙏🙏🙏
ज्योतिर्विद, एस एस रावत
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