भारतीय वैदिक ज्योतिषशास्त्र भाग - ५० कुंडली चक्रों के वर्गभेद, होरा चक्र साधन विधि एवं होरा चक्र फलकथन :
कुंडली चक्रों के वर्गभेदः
एक राशि में ३० अंश होते हैं। राशि को पूर्वाचार्यों ने दश प्रकार से विभाजित किया है । इनको अलग-अलग नाम दिये हैं। इन्हीं विभाजनों को वर्ग कहा गया है। १. गृहक्षेत्र या राशि, होरा, द्रेष्काण, सप्तमांश, नवमांश, दशमांश, द्वादशांश, षोडशांश, त्रिंशांश और षष्ट्यंश-ये दश वर्ग हैं। इन दश वर्गों में गृह, होरा, द्रेष्काण, सप्तमांश, नवमांश, द्वादशांश और त्रिंशांश इनको सप्त वर्ग कहते हैं। सप्तवर्ग में सप्तमांश को छोड़कर गृह, होरा, द्रेष्काण, नवांश, द्वादशांश और त्रिंशांश को षड्वर्ग कहते हैं।
कुछ आचार्यों के मतानुसार राशि और भाव फल के समान ही नवांश का फल होता है।
राशिवर्ग में पूर्ण फल होता है। षोडशांश, दशमांश और षष्ट्यंश वर्गों में एक चौथाई तथा शेष होरा, द्रेक्काण, नवमांश, सप्तमांश, द्वादशांश और त्रिंशांश वर्गों में आधा फल प्राप्त होता है।
होरा :
विषम राशि मेष, मिथुन आदि में १५ अंश तक सूर्य का होरा और १६ अंश से ३० अंश तक चन्द्रमा का होरा होता है। समराशि वृष, कर्क आदि में १५ अंश तक चन्द्रमा का होरा और १६ अंश से ३० अंश तक सूर्य का होरा होता है। जन्मपत्री में होरा लिखने के लिए पहले लग्न में देखना होगा कि किस ग्रह का होरा है; यदि सूर्य का होरा हो तो होरा-कुण्डली की ५ लग्नराशि और चन्द्रमा का होरा हो तो होरा-कुण्डली की ४ लग्नराशि होती 1 होरा-कुण्डली में ग्रहों के स्थान के लिए ग्रहस्पष्ट के राश्यादि से विचार करना चाहिए।
अथार्त : एक राशि में १५ -१५ अंश की २ होरा होती है विषम राशि के प्रथम १५ अंश तक सूर्य एवं द्वितीय १५ अंश तक चंद्र तथा सम राशि के प्रथम १५ अंश तक चंद्र एवं द्वितीय १५ अंश तक सूर्य स्वामी होता है। नीचे होराज्ञान के लिए होराचक्र ( सारिणी ) से समझाने का प्रयास कर रहा हूँ, इनमें सूर्य और चन्द्रमा के स्थान पर उनकी राशि संख्या को दिया गया हैं। इसी सूत्र के अनुसार कुंडली में होरा चक्र को राशि संख्या से ही अंकित ( चिह्नित ) करनी होती है।
होरा चक्र :
राशि ०-१५ अंश १६ - ३० अंश
मेष ५ ४
वृष ४ ५
मिथुन ५ ४
कर्क ४ ५
सिंह ५ ४
कन्या ४ ५
तुला ५ ४
वृश्चिक ४ ५
धनु ५ ४
मकर ४ ५
कुम्भ ५ ४
मीन ४ ५
होरा चक्र फलकथन :
होरा कुंडली का अध्ययन किए बिना जातक के संपूर्ण जीवन का फलादेश अधूरा रहता है। होरा कुंडली से जातक को जीवन में मिलने वाले धन, सुख, वैभव, संपत्ति, भौतिक सुख-सुविधाओं आदि का अध्ययन किया जाता है।
ज्योतिष शास्त्र में सूर्य पापवर्ग ( क्रूर ) ग्रह, चंद्र शुभवर्ग ग्रह माना जाता है। अतः होरा फलादेश का सूत्र भी इसी आधार से किया गया है। चंद्र की होरा हो शुभ वर्ग के ग्रहों का साथ हो तो जातक धन, सुख, वैभव, संपत्ति, भौतिक सुख-सुविधाओं आदि प्राप्त करता है। यदि सूर्य की होरा हो पापवर्ग ग्रह साथ में हो तो जातक साहसी, धनवान, संपत्तिवान और पराक्रमी होता है। यदि इसके विपरीत हो तो फलकथन भी विपरीत ही होगा। और यदि मिश्रित हो तो फलकथन भी मिश्रित ही होते है।
द्रेष्काण चक्र को अगले भाग में प्रयास किया जायेगा बने रहिये सुखी रहिये।
धन्यवाद,
प्रणाम 🙏🙏🙏
ज्योतिर्विद एस एस रावत
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