भारतीय वैदिक ज्योतिषशास्त्र : ( गणित - फलित ) भाग - ४८ योगिनी दशा के शुभाशुभ फल कथन एवं योगिनी महादशा साधन विधि
योगिनी दशा के शुभाशुभ फल कथन :
मंगला : मंगला का स्वामी ग्रह चंद्र हैं। यह दशा अच्छी मानी जाती है। मंगला योगिनी की कृपा जिस जातक पर हो जाती है उसे हर प्रकार के सुख-संपन्नता प्राप्त होती है।
पिंगला : पिंगला का स्वामी ग्रह सूर्य हैं। यह दशा भी शुभ होती है। पिंगला दशा में जातक के जीवन के सारे संकट शांत हो जाते हैं। उसकी उन्नति होती है और सुख-संपत्ति प्राप्त होती है।
धान्या : धान्या का स्वामी ग्रह बृहस्पति हैं। यह दशा जिनके जीवन में आती है उन्हें अपार धन-धान्य प्राप्त होता है।
भ्रामरी : भ्रामरी का स्वामी ग्रह मंगल हैं। इस दशा के दौरान व्यक्ति क्रोधी हो जाता है। कई प्रकार के संकट आने लगते हैं। आर्थिक और संपत्ति का नुकसान होता है। व्यक्ति भ्रमित हो जाता है।
भद्रिका : भद्रिका का स्वामी ग्रह बुध हैं। इस दशाकाल में जातक के सुकर्मो का शुभ फल प्राप्त होता है। शत्रुओं का शमन होता है और जीवन के व्यवधान समाप्त हो जाते हैं।
उल्का : उल्का का स्वामी ग्रह शनि हैं। इस दशाकाल में जातक को मेहनत अधिक करनी पड़ती है। जीवन में दौड़भाग बनी रहती है। कार्यो में शिथिलता आ जाती है। कई तरह के संकट आते हैं।
सिद्धा : सिद्धा का स्वामी ग्रह शुक्र हैं। इस दशा के भोग काल में जातक की संपत्ति, भौतिक सुख, प्रेम, आकर्षण प्रभाव आदि में वृद्धि होती है। जिन लोगों पर सिद्धा योगिनी की कृपा होती है उनके जीवन में कोई अभाव नहीं रह जाता है।
संकटा : संकटा का स्वामी ग्रह राहू हैं। संकटा योगिनी दशाकाल में जातक हर ओर से परेशानियों और संकटों से घिर जाता है। संकटों के नाश के लिए इस दशा के भोगकाल में मातृरूप में योगिनी की पूजा करें।
विशेष : उपरोक्त दशा का आंकलन मात्र से ही फल घटित नहीं होगा। क्योंकि ग्रह स्वामियों के बलाबल और शुभाशुभ स्थिति को भी ध्यान में रखना आवश्यक होता है। किसी भी कुंडली का विश्लेषण करते समय, कुंडली में ग्रह, भाव, भावेश, दृष्टि, युति,अस्त,उदय, वक्री,ग्रह की अवस्था, स्थान, अंश, लग्न से सधर्मी ग्रह आदि अनेक सभी विषयों का अवलोकन करने के पश्चात् ही अभीष्ट घटना का कथन कहना चाहिए।
जैसे ग्रहों का उच्च होना अथवा नीच होना या फिर वक्री और अस्त होना, सम में राशि होना, विषम राशि में होना, भाव से शुभ अशुभ स्थान में स्थित होना आदि किसी भी जातक की कुंडली का अध्ययन करते समय यह महत्वपूर्ण विषय होता है, क्योंकि इन्हीं के आधार पर ग्रहों की अवस्था, ग्रहों का बल, ग्रहों का शुभाशुभ ज्ञात किया जाता है। इसलिए इन पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाना चाहिए। इसी के अनुसार ग्रहों द्वारा प्राप्त होने वाले फलों का आंकलन कर दशा, अन्तर्दशा फलाफल कथन करना उचित उपयुक्त रहता है। यदि कोई ग्रह अस्त हो अथवा कमजोर हो तो, ऐसे ग्रह का स्वभाव और उस से मिलने वाले फल तथा अभीष्ट भाव के कारकत्व में भी उचित लाभ नहीं मिल पाता है ।
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