लग्न स्पष्ट :
लग्न स्पष्ट करने के लिए मुख्यतः
तात्कालिक सूर्य , स्थानीय इष्टकाल , अयनांश , पलभा , चरखण्ड , लंकोदयमान व स्वोदयमान की आवश्यकता होती है ।
लग्न :
क्रान्तिवृत का जो भाग पूर्व क्षितिज में लगा रहता है वही लग्न होता है ये लग्न १२ प्रकार के होने से क्रांतिवृत्त और क्षितिजवृत्त के पूर्वसम्पात को प्रथम या उदय लग्न व पश्चिम सम्पात को सप्तम या अस्त लग्न कहते है। क्रांतिवृत्त और याम्योत्तर वृत्त के अधः सम्पात को चतुर्थ ऊर्ध्वसम्पात को दशम लग्न कहते है। ( सूर्योदयकाल को लग्न ,सूर्यास्तकाल को सप्तम , स्पष्ट मध्यानकाल को दशम तथा मध्यरात्रि काल में चतुर्थ लग्न होता है )
अयनांश :
जब क्षितिजवृत्त में , क्रांतिवृत्त , विषुवतवृत्त तीनों का सम्पात बिंदु एक तो उसे निरयन बिंदु कहते है। और यदि वृत्तों का सम्पात अलग अलग हो तो उसे सायन बिंदु कहते है। निरयन और सायन बिन्दुओं के अंतर को ही अयनांश कहते है।
अयनांश का साधन :
जन्म शक - ४४४ भाग ६० = लब्धि अयनांश होगी।
उदाहरण :
वर्तमान वर्ष का शक १९४४ - ४४४ = १५०० में ६० का भाग देने पर लब्धि २५ / ०० / ०० चूँकि वर्तमान वर्ष के लगभग ११ माह बीत चुके है १ हप्ते में १ विकला भ्रमण होता है अब तक ४४ हप्ते बीत चुके है अथार्त ४४ विकला भ्रमण हो चुका है इसलिए अयनांश अब तक २५ / ०० / ४४ होगा।
नोट : अन्य विधि से भी अयनांश का साधन किया जाता है।
सुविचार :
आपकी सुने अपनी भी सुनाये , आपको समझे और समझाये , दुनियाँ में इसके जैसा प्यारा रिश्ता नहीं। यदि समय और जरुरत बदलते ही, चेहरे ही बदल जाते हौं , तो समझ लीजिए लोग नौटंकी अच्छा कर लेते है , या फिर उस नौटंकी के एक पात्र आप भी हो सकते है। स्वयं को जीत लीजिए क्योकि साथी भी एक दिन छोड़ चले जाते है।
प्रणाम, ज्योतिर्विद एस एस रावत
आपको सभी जानकारी प्राप्त हो सके, उसके लिए मुझे सब्सक्राइब करें।
जवाब देंहटाएंSuper
जवाब देंहटाएंSuper
जवाब देंहटाएं