संवत्सर :
वृहस्पति को मध्यम गति से एक राशि भोग काल को संवत्सर कहते है , जो लगभग १३ महीने का होता है , वर्षादि में जो संवत्सर भोग करता है , पुरे वर्ष का वही स्वामी होता है। यह संवत्सर विजयादि संख्या ६० एवं प्रभवादि संख्या ६० के भेद से दो प्रकार का होता है।
विजयादि क्रम : विजय , जय से शुरू होकर नन्दन ६० वां है।
प्रभवादि क्रम : प्रभव , विभव से शुरू होकर क्षय ६० वां है।
संवत्सर साधन : विजयादि क्रम सूत्र : शक / ६० = लब्धि संख्या ही संवत्सर का
नाम होगा
प्रभवादि क्रम सूत्र : शक + २५ / ६० = लब्धि संख्या ही
संवत्सर का नाम होगा
वर्षपति : वर्षादि में जो वार होता है उसका स्वामी ग्रह ही पूरे वर्ष का स्वामी
होता है।
मंत्री : सूर्य मेष संक्रान्ति में जब प्रवेश करता है उस दिन का दिनपति पूरे
वर्ष का मंत्री होता है।
सुविचार :
यदि आपको फिर से मौका मिला है तो आप वही पुरानी गलती मत करिए , क्रोध में आकर सब कुछ मत गवाइए जो आपने बरसो मेहनत करके शान्तचित से कमाया है। मतलब ना हो तो लोग बोलना तो दूर देखना भी पसंद नहीं करते इसलिए अपेक्षा हमेशा स्वयं से रखिये।
प्रणाम , ज्योतिर्विद एस एस रावत
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