योग :
रवि चंद्र के योग को योग कहते है, स्थिर एवं चर दो योग होते है।
चर योग :
रवि चंद्र के गति से २७ चर योग बनते है इन्हे विष्कुम्भादि योग कहा जाता है ये २७ योग है। विष्कुम्भ से लेकर वैधृति तक। .... २७
स्थिर योग :
ये आनन्दादि २८ योग है दिन + नक्षत्र ( चंद्र ) के योग से उत्पन्न होते है इनका प्रभाव भी नाम के अनुसार ही होता है रविवार में अश्वनी से ,सोमवार में मृगशिरा से मंगलवार में श्लेषा से आदि क्रम से २८ योग है अभिजित सहित गणना करने है।
उदाहरण :
मान लीजिए रविवार के दिन श्रवण नक्षत्र है तो अश्वनी से श्रवण तक गिनने पर नक्षत्र संख्या २३ प्राप्त होगी। अतः इस योग को गद के नाम से जाना जायेगा। इस प्रकार विभिन्न दिनों में विभिन्न उपर्युक्त नक्षत्रों के वर्तमान दिन के नक्षत्र तक गणनाकर आनन्दादि योग बनते है। आनन्द योग से ...... प्रवर्धमान योग कुल २८ योग भी अपने नाम के अनुसार ही फल देते है।
सुविचार :
कोई व्यक्ति जब ईमानदारी से आपसे जुड़ना चाहेगा वह कोई बहाना या कोई कारण नहीं ढूढ़ेगा। अमीर दिल से होना चाहिए दौलत से भगवान नहीं मिलते, जीवन सुन्दर ऐसे ही नहीं बनता, इसे प्रार्थना, विनम्रता, त्याग और प्रेम के साथ सुन्दर बनाना पड़ता है।
प्रणाम, ज्योतिर्विद एस एस रावत
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