लग्नानयन :
दो विधियाँ से निकाली जाती है १ भोग्य प्रकार २ भुक्त प्रकार।
१ - भोग्य प्रकार से लग्न साधन :
सायन सूर्य के भोग्यांश में सायन सूर्य जिस राशि में हो उस राशि के स्वोदयमान से गुणाकर ३० से भाग देने पर प्राप्त लब्धि भोग्यपल होगी। भोग्यपल को इष्टकाल से घटाकर शेष में मेषादि क्रम से यथा संभव राशियों के उदयमान ( स्वोदयमान ) घटाने पर अंतिम घटी हुई राशि शुद्ध संज्ञा एवं उससे अगली राशि की अशुद्ध संज्ञा होगी।
स्वोदयमान घटाने के उपरांत शेष में ३० से गुणा कर कर अशुद्ध राशि के स्वोदयमान से भाग देने पर प्राप्त लब्धि को शुद्धराशि संख्या में जोड़ने पर सायन लग्न होगा। पुनः सायन लग्न में अयनांश घटाने पर निरयन लग्न होगा।
सूत्र :
तात्कालिक सूर्य + अयनांश = सायनसूर्य , सायनसूर्य की राशि संख्या - सायनसूर्य = सायनसूर्य का भोग्यांश , सायनसूर्य का भोग्यांश को सायनसूर्य के स्वोदयमान से गुणाकर ३० से भाग देने पर भोग्य पल को इष्टकाल को ( इष्टपल बनाकर ) से घटाकर लब्धि में मेषादि क्रम से यथा संभव राशियों के स्वोदयमान घटाकर अंतिम घटी राशि शुद्ध व शेष लब्धि अशुद्ध राशि।
शेष * ३० भाग अशुद्धराशि का स्वोदयमान = अंशात्मक लब्धि + शुद्धराशि संख्या = सायन लग्न - अयनांश = निरयन लग्न।
उदाहरण :
यदि जन्म स्थान काशी , तात्कालिक सूर्य २ / १४ / ४२ / ४१ , इष्टकाल १३ / १० , अयनांश २३ / ५६ / ४३ , स्वोदयमान मेष मीन २२१ , वृष कुम्भ २५४ , मिथुन मकर ३०४ , कर्क धनु ३४२ , सिंह वृश्चिक ३४४ , कन्या तुला ३३५
लग्न का साधन अगली पोस्ट में करेंगे।
प्रणाम, ज्योतिर्विद एस एस रावत
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें