करण :
एक तिथि में दो करण होते है ( सूर्य से चंद्र ६ अंश का अन्तर ही एक करण एक चंद्रमास के अनुसार एक महीने में ६० करण का क्रम संपन्न होता है ) कुल ११ करण जिसमे ७ चरसंज्ञक, तथा ४ स्थिरसंज्ञक है। बव से विष्टि तक ७ चर करण , शकुनि से किंस्तुघ्न तक स्थिर करण है। चरकरण का प्रारम्भ शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से होता है, जैसे शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के उत्तरार्ध में बव, द्वितीया के पूर्वार्ध में बालव करण, द्वितीया के उत्तरार्ध में कौलव करण, इसी प्रकार सातों करण क्रमशः आते है। कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के उत्तरार्ध में स्थिर करण का आरम्भ होता है, जैसे कृष्ण पक्ष ये उत्तरार्ध में शकुनि, अमावस्या के पूर्वार्ध में चतुष्पद .....
भद्रा ही विष्टि करण है , उपाकर्म ( श्रावणी ) और होलिकादहन विशेष रूप से निषिद्ध है।
सुविचार :
सिर्फ क़िस्मत के भरोसे बैठे रहना, किस्मत होते हुए भी सो सकती है, मेहनत ही वो रास्ता है जो किस्मत तक पहुँचाती है। थोड़ा विचार तो बदल कर देखिये आपका जीवन ही बदल जायेगा। क्योंकि कुछ रास्ते ऐसे होते है जहाँ सिर्फ आपको ही अकेले चलना पड़ता है इसमें आपको कोई साथी, मित्र, परिवार आदि नहीं मिलेगा सिर्फ आप और आपका फैसला , हिम्मत आपके साथ होती है।
प्रणाम, ज्योतिर्विद एस एस रावत
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