सम्पूर्ण भाव साधन :
जन्म लग्न में ६ राशि जोड़ने पर सप्तम लग्न , दशम लग्न में ६ राशि जोड़ने पर चतुर्थ लग्न होता है। चतुर्थ लग्न में प्रथम लग्न घटाने पर शेष को ६ से भाग देने पर लब्ध फल को लग्न में जोड़ने पर लग्न की संधि पुनः लग्न के संधि में लब्ध जोड़ने पर द्वितीय भाव , द्वितीय भाव में लब्ध जोड़ने पर द्वितीय संधि , द्वितीय संधि में लब्ध जोड़ने पर तृतीय भाव ,तृतीय भाव में लब्ध जोड़ने पर तृतीय भाव संधि , तृतीय भाव संधि में लब्ध जोड़ने पर चतुर्थ भाव जो पूर्व साधित चतुर्थ भाव के समान / तुल्य होगा।
पुनः उपरोक्त प्राप्त लब्धि को ३० अंश में घटाकर शेष को चतुर्थ भाव में जोड़ने पर चतुर्थ भाव संधि, चतुर्थ भाव संधि में शेष जोड़कर पंचम भाव , पंचम भाव में शेष जोड़कर पंचम भाव संधि , पंचम भाव संधि में शेष जोड़कर कर षष्ट भाव , षष्ट भाव में शेष जोड़कर षष्ट भाव संधि , षष्ट भाव संधि में शेष जोड़कर सप्तम भाव जो की पूर्व में साधित सप्तम भाव के समान / तुल्य होगा।
पुनः लग्न में जोड़ने पर सप्तम भाव , लग्न की संधि में ६ राशि जोड़ने पर सप्तम भाव संधि , द्वितीय भाव में ६ राशि जोड़ने पर अष्टम भाव , द्वितीय भाव संधि में ६ राशि जोड़ने पर अष्टम भाव संधि प्राप्त होगी इसी क्रम में तृतीय भाव से षष्ट भाव तक ६ राशि जोड़ने से द्वादश भाव स्पष्ट हो जाएंगे।
पूर्व पोस्ट में लग्नमान था : ०४ / २४ / १३ / २२ + ६ राशि = १० / २४ / १३ / २२ सप्तम लग्न
पूर्व पोस्ट में दशम लग्न था : ०१ / २३ / ४७ / ०२ + ६ राशि = ७ / २३ / ४७ / ०२ चतुर्थ लग्न
अब चतुर्थ भाव में लग्न घटाना होगा
७ / २३ / ४७ / ०२
- ४ / २४ / १३ / २२ = ०२ / २९ / ३३ / ४० को अंशात्मक करके अथार्त ८९ / ३४ / ४० को
अब ६ से भाग देने पर लब्धि = १४ / ५५ / ३६ / ४०
३० / ०० / ०० / ०० अंश
- १४ / ५५ / ३६ / ४० लब्धि
१५ / ०४ / २३ / २० शेष
उपरोक्त लब्धि और शेष से सम्पूर्ण भाव का साधन हमअगली पोस्ट में प्रयास करेंगे।
सुविचार :
नींबू के पेड़ को खाद ,पानी के बजाय जड़ों में चाहे जितना भी चीनी का घोल डाल दीजिए , लेकिन नींबू जब भी होगा खट्टा ही होगा। धूप चाहे जितनी भी हो जाय लेकिन समुंद्र को सूखा नहीं सकती। अथार्त कोई भी अपने गुण, स्वभाव को त्यागता नहीं है, फिर मनुष्य क्यों अपने गुण, स्वभाव खो बैठता है, क्यों टूट जाता है, क्यों इतना कमजोर हो जाता है, तथा क्यों ऐसा होता है कि पूर्व के लोगों की कही बात अन्धविश्वाश और पश्चिम के लोगों की कही बात विज्ञान कहलाता है। कहीं ऐसा तो नहीं स्वार्थ के कारण मनुष्य स्वयं के गुण स्वभाव खो बैठ रहा है।
प्रणाम, ज्योतिर्विद एस एस रावत
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