पलभा :
सायनमेष पर जिस दिन सूर्य हो उस दिन का मध्याह्नकाल में द्वादश अंगुल शंकु की जो छाया उत्पन्न होती है उसे पलभा कहते है। प्ररन्तु प्रत्येक स्थान पर जाकर पलभा का ज्ञान करना कठिन होता है। आपको पलभा सारिणी किसी भी किताब में मिल जायेगा उसके अनुसार किसी भी अक्षांश पर पलभा का साधन किया जा सकता है।
पलभा साधन :
जितने अंश अक्षांश पर पलभा का साधन करना हो उसके अंश एवं उसके आगे वाले अंश पर जो पलभा सारिणी से पलभा प्राप्त हो उन दोनो का अंतर करके अक्षांश कला गुणा कर ६० से भाग देने पर जो लब्धि प्राप्त हो उसको अभीष्ट अक्षांश पर प्राप्त पलभा में जोड़ने पर अभीष्ट अक्षांश की पलभा होगी।
उदाहरण :
काशी का अक्षांश २५ / १८ है काशी का पलभा निकालना हो तो।
२६ अंश पर पलभा सारिणी से प्राप्त ०५ / ५१ /०७
२५ अंश पर पलभा सारिणी से प्राप्त - ०५ / ३५ / ४२ प्राप्त अंतर ०० / १५ / २५ को काशी के अक्षांश कला १८ से गुणाकर गुणनफल ०० / २७० / ४५० को ६० से स्वर्णित कर लब्धि ००/ ०४ / ३७ / ३० प्राप्त हुई। इस लब्धि को २५ अक्षांश में जोड़ने पर अथार्त :
२५ अंश पर पलभा सारिणी से प्राप्त - ०५ / ३५ / ४२ + १८ कला पर प्राप्त पलभा ००/ ०४ / ३७ / ३० = अतः २५ /१८ अक्षांश पर प्राप्त पलभा ०५ / ४० / १९ / ३० होगी ( ५ / ४० काशी की पलभा )
अब इस पलभा का चरखण्ड साधन किया जाता है वह हम अगली पोस्ट में पढेंगे।
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प्रणाम, ज्योतिर्विद एस एस रावत
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