नक्षत्र :
कुल २७ नक्षत्र , प्रत्येक नक्षत्र का ८०० कला मानी जाती है, कुल २१६०० कला २७ वां भाग ( २१६०० / २७ = ८०० ) आकाश में क्रांतिवृत्तीय तारामण्डल को २७ भागों में विभाजित करने पर प्रत्येक खण्ड एक - एक नक्षत्र कहे जाते है और प्रत्येक नक्षत्र के हिस्से में जितने तारे आते है उन तारो की विभिन्न खंडो की विभिन्न आकृतियाँ बनती है वे ही नक्षत्र कहे जाते है। जैसे : अश्विन नक्षत्र, भरणी नक्षत्र, कृत्तिका नक्षत्र, रोहिणी नक्षत्र, मृगशिरा नक्षत्र, आर्द्रा नक्षत्र, पुनर्वसु नक्षत्र, पुष्य नक्षत्र, आश्लेषा नक्षत्र, मघा नक्षत्र, पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र, उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र, हस्त नक्षत्र, चित्रा नक्षत्र, स्वाति नक्षत्र, विशाखा नक्षत्र, अनुराधा नक्षत्र, ज्येष्ठा नक्षत्र, मूल नक्षत्र, पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र, श्रवण नक्षत्र, घनिष्ठा नक्षत्र, शतभिषा नक्षत्र, पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र, उत्तराभाद्रपद नक्षत्र, रेवती नक्षत्र।
उत्तराषाढ़ा एवं श्रवण के मध्य में अभिजित नक्षत्र की परिकल्पना है, अथार्त उत्तराषाढ़ा का चतुर्थ चरण और श्रवण का प्रथम पञ्चदशांश ( श्रवण नक्षत्र के मान को १५ से भाग देने पर जो मान घटी पल आता है ) मिलाकर अभिजित नक्षत्र का मान होता है। इस तरह लगभग १९ घटी अभिजित नक्षत्र का मान होता है। यह २८ वे नक्षत्र संख्या मानी जाती है।
शुभ नक्षत्र
शुभ नक्षत्र वो होते हैं जिनमें किए गए सभी काम सिद्ध और सफल होते हैं। इनमें 15 नक्षत्रों को माना जाता है – रोहिणी, अश्विन, मृगशिरा, पुष्य, हस्त, चित्रा, रेवती, श्रवण, स्वाति, अनुराधा, उत्तराभाद्रपद, उत्तराषाढा, उत्तरा फाल्गुनी, घनिष्ठा, पुनर्वसु।
मध्यम नक्षत्र
मध्यम नक्षत्र के तहत वह नक्षत्र आते हैं जिसमें आम तौर पर कोई विशेष या बड़ा काम करना उचित नहीं, लेकिन सामान्य कामकाज के लिहाज से कोई नुकसान नहीं होता। इनमें जो नक्षत्र आते हैं वो हैं पूर्वा फाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपद, विशाखा, ज्येष्ठा, आर्द्रा, मूला और शतभिषा।
अशुभ नक्षत्र
अशुभ नक्षत्र में तो कभी कोई शुभ काम करना ही नहीं चाहिए। इसके हमेशा बुरे नतीजे होते हैं या कामकाज में बाधा जरूर आती है। इसके तहत जो नक्षत्र आते हैं वो हैं- भरणी, कृतिका, मघा और आश्लेषा। ये नक्षत्र आम तौर पर बड़े और विध्वंसक कामकाज के लिए ठीक माने जाते हैं जैसे - कोई बिल्डिंग गिराना, कब्ज़े हटाना, आग लगाना, पहाड़ काटने के लिए विस्फोट करना या फिर कोई सैन्य या परमाणु परीक्षण करना आदि। लेकिन एक आम आदमी या जातक के लिए ये चारों ही नक्षत्र बेहद घातक और नुकसानदेह माने जाते हैं।
क्या है पंचक और गंडमूल
पंचक
आपने पंचक और गंडमूल नक्षत्रों के बारे में भी अक्सर सुना होगा। हमारे घर के बुजुर्ग अक्सर ये कहते हैं कि पंचक लग गया, या पंचक में कोई काम नहीं करना चाहिए या फिर इस बच्चे में गंडमूल दोष है या गंडमूल की पूजा करानी है आदि-इत्यादि। आखिर ये पंचक और गंडमूल या मूल है क्या। पहले जानते हैं पंचक के बारे में।जब चंद्रमा कुंभ और मीन राशि पर होता है तब उस समय को पंचक कहते हैं। इसे शुभ नहीं माना जाता। इस दौराना घनिष्ठा से रेवती तक जो पांच नक्षत्र (घनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और रेवती) होते हैं, उन्हें पंचक कहते हैं। इस दौरान आग लगने का खतरा होता है, इस दौरान दक्षिण दिशा में यात्रा नहीं करनी चाहिए, घर की छत नहीं बनवानी चाहिए, पलंग या कोई फर्नीचर भी नहीं बनवाना चाहिए। पंचक में अंतिम संस्कार भी वर्जित है।
गंडमूल
उसी तरह गंडमूल या मूल नक्षत्र को भी बेहद अशुभ माना जाता है। दरअसल नक्षत्रों के अलग अलग स्वभाव होते हैं और मूल नक्षत्र के तहत आने वाले आश्विन, आश्लेषा, मघा, मूला और रेवती नक्षत्रों को उग्र श्रेणी का माना जाता है। इन्हें ही मूल, गंडात या सतैसा भी कहा जाता है। जो लोग इसमें पैदा होते हैं, उनका जीवन बेहद उथल पुथल और तनावों से भरा होता है, इसीलिए बच्चों के जन्म के 27 दिन के बाद इसकी पूजा करवाई जाती है और इसके बुरे प्रभावों को खत्म किया जाता है।
प्रणाम,
ज्योतिर्विद एस एस रावत
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें