संगत :
संगत का हमारे जीवन में बहुत गहरा प्रभाव होता है, हम सभी इस विषय में कुछ ना कुछ जानते है, सुनते है। कोई भी व्यक्ति जन्म से अच्छा या बुरा नहीं होता है। समाज में रह कर ही वह भला या बुरा बनता है। अच्छा संगत अच्छे परिणाम, बुरा संगत बुरे परिणाम यह भी जानते है। मिट्टी जैसी संगत में होती है, ठीक उसी प्रकार के वातावरण में उसको जीने के लिए बाध्य होना होता है। और यश - अपयश का भी उसको सामना करना ही पड़ता है। जब मिट्टी कुम्हार के संगत में आती है, कुम्हार मिट्टी का घड़ा, दिया, कुल्हड़, सुराही आदि निर्माण कर देते है।और यदि मिट्टी किसी मूर्तिकार के संगत में आती है, तब मिट्टी से नाना प्रकार की मूर्तियाँ बनाई जाती है। तथा इसी क्रम में भवन, सड़क आदि। अथार्त जैसा संगत, वैसा रंग - रूप, जीवन, स्वभाव, आचरण, विद्यमान हो जाते है। इसलिए संगत "उचित उपयुक्त" हो इसका पूर्णतः विचार करना चाहिए। संगत से कर्म को प्रेरणा मिलती है।
सठ सुधरहिं सत्संगति पाई। पारस परस कुधातु सुहाई।
बिधि बस सुजन कुसंगत परहीं। फनि मनि सम निज गुन अनुसरहीं ।
अथार्त : दुष्ट भी सत्संगति पाकर सुधर जाते हैं, जैसे पारस के स्पर्श से लोहा सुहावना हो जाता है , किन्तु दैवयोग से यदि कभी सज्जन कुसंगति में पड़ जाते हैं, तो वे वहाँ भी साँप की मणि के समान अपने गुणों का ही अनुसरण करते हैं ।
संकेत :
संकेत एक ऐसा यन्त्र है, इसके माध्यम से हम भविष्य की हर उस छोटी से छोटी घटना - परिघटना का आंकलन कर, उनका उचित और उपयुक्त समाधान कर सकते है। जैसे : मार्ग में यातायात के चिह्न से लक्ष्य मार्ग का पता चलना, जंगल में किसी जानवर की आवाज से खतरे का पूर्वानुमान होना तथा व्यक्ति के आचरण से भविष्य की घटना का बोध करना आदि। और यदि आप संकेत को नहीं पहचान पाते है अथवा मूल्यांकन नहीं कर सकते है। फिर आप अच्छे संगत को चुन लीजिए। क्योंकि संगत जीवन जीने के साथ साथ, संकेत का भी अवलोकन करा सकता है। सदैव संकेत "उचित उपयुक्त" होते है। किन्तु हम मोह माया से अथवा सामर्थ्य से उस संकेत को समझ नहीं पाते है। जबकि यह भविष्य की हर घटना क्रम का सूचक है। अतः यदि संकेत को पहचानने में असमर्थ है तो संगत करना इसका समाधान हो सकता है। कर्म करने की प्रेरणा मिल ही जायेगी।
समय :
जो व्यक्ति समय को महत्त्व देता है, समय उस व्यक्ति को समयानुसार सुसज्जित कर सम्मान देता है। एवं जिस व्यक्ति ने समय को महत्व नहीं दिया, उस व्यक्ति के जीवन में कुछ भी महत्वपूर्ण शेष नहीं रह जायेगा। धन गँवाने से धन पुनः आ सकता है, किन्तु बीता समय वापस कभी नहीं आता है। समय अनादि, अनंत है, जो चीज़ अनादि, अनंत हो, उसका विश्लेषण जितना भी किया जाय कम ही होगा। किन्तु यदि व्यक्ति के जीवन के समय की बात करें, तो हम पाएँगे, भूतकाल शिकायतों से भरा है, भविष्य उसको डरावना या अनिश्चितता भरा लगता है। वर्तमान को व्यक्ति महत्व नहीं देता है, जबकि वर्तमान ही भाग्य फल का प्रतिबिम्ब होता है। यही उचित उपयुक्त है, क्योंकि वर्तमान के कर्म से भविष्य की प्रस्तावना व रूपरेखा है, वर्तमान ही स्वयं व्यक्ति का मान सम्मान है। वर्तमान में किये हुए कार्य ना केवल व्यक्ति को शिखर, शीर्ष, उचाईयों की उपलब्धि को अर्जित करायेगा, बल्कि जीवन के हर संकट, बाधा के लिए सज्ज और साधनों से युक्त करेगा। और यदि व्यक्ति वर्तमान में स्वयं के मान को मान नहीं देता है। तो फिर समय चक्र अपना काम शुरू कर, पुनः भयावह परिस्थिति उपन्न करके, कष्टमय जीवन जीने के लिए बाध्य कर देगा। लेकिन अभी भी व्यक्ति के पास दो विकल्प शेष है, संगत या संकेत किसी से भी संधि कर लेना चाहिए, अथार्त समय, संगत, संकेत में किसी एक को चुन कर, कर्म करने की प्रेरणा लिया जा सकता है।
कर्म कर, फल की कामना नहीं या संगत, संकेत और समय उपयोगी नहीं ?
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ॥
अर्थात : तेरा कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फलों में कभी नहीं। इसलिए तू फल की दृष्टि से कर्म मत कर और न ही ऐसा सोच की फल की आशा के बिना कर्म क्यों करूं।
अतः : हम कर्म के बारे में जानने का प्रयास फिर कभी करेंगे।
उपसंहार :
व्यक्ति को संगत, संकेत, समय तीनों की परख हो, या इनमें से किसी दो की हो, अथवा किसी एक की हो, और यदि किसी भी एक की नहीं हो तो, सद्कर्म करना उचित उपयुक्त होगा। फल की प्राप्ति अवश्य ही होती है, सद्कर्म से शुभ फल ही प्राप्त होता है।
आपका संगत : एस एस रावत
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