चरखण्ड :
उन्मण्डल और क्षितिज वृत्त के मध्य अहोरात्र वृत्त का जो खंड है उसे ही चरखण्ड कहा जाता है।
चरखण्ड का साधन :
पलभा को ३ अलग अलग खण्डों में पहला १० से दूसरा ८ से तीसरा १० /३ से गुणा करने पर ३ चरखण्ड बनाये जाते है। चुँकि काशी का पलभा ५/४० था इसको को चरखण्ड बनाते है।
उदाहरण :
पहला : ५ / ४० गुणा १० = ५० / ४०० सवर्णित ५६ / ४० = ५७
दूसरा : ५ / ४० गुणा ८ = ४० / ३२० सवर्णित ४५ / २० = ४५
तीसरा : ५ / ४० गुणा १०/३ = ५० / ४०० = ५६ / ४० भाग ३ से १९
अथार्त ५७ / ४५ / १९ यह ५ / ४० पलभा का चरखण्ड निकला।
लंकोदयमान :
क्रांतिवृत्त एक समान १२ खण्ड करने पर मेषादि १२ राशियाँ होती है। उन राशियों के आदि और अन्त विन्दु पर किया गया ध्रुवप्रोत वृतों के मध्य नाड़ीवृत्त का जो खण्ड होता है उसे ही लंकोदयमान कहते है यह लंकोदयमान सम्पूर्ण विश्व के लिए एक ही होता है जो कि इस प्रकार है।
मेष मीन २७८ , वृषभ कुम्भ २९९ , मिथुन मकर ३२३ , कर्क धनु ३२३ , सिंह वृश्चिक २९९ , कन्या तुला २७८ है।
स्वोदयमान : के लिए चरखण्ड एवं लंकोदयमान की आवश्यकता पड़ती है इसका साधन हम अगले भाग में करेंगे।
प्रणाम, ज्योतिर्विद एस एस रावत
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