ऋतू : एक वर्ष में ६ ऋतू होती है।
अयन : २ होते है उत्तरायण मकर से कर्क तक और दक्षिणायन कर्क से मकर।
गोल :
ब्रह्मण्ड ( सम्पूर्ण गोल ) को दो भागों में विभक्त कर उतरी व दक्षिणी गोलार्ध के रूप में जाना जाता है। अथार्त विषुवत्वृत्त को ब्रह्मण्ड के मध्य में कल्पना कर विषुवतवृत्त के उत्तर , उत्तारीगोलार्द्ध एवं दक्षिण में दक्षिणीगोलार्द्ध माना जाता है। जो मेषादि से तुलादि तक उत्तरगोल तुलादि से मेषादि तक दक्षिणगोल होता है।
वर्ष :
विक्रमसंवत , शालिवाहनसंवत प्रमुख रूप से भारतीय परंपरा में वर्षो का उल्लेख मिलता है।
विक्रमसंवत आज से २०७९ वर्ष पहले प्रारम्भ अथार्त ईस्वी सन से ५७ साल पहले।
शालिवाहनसंवत का आरम्भ विक्रमसंवत से १३५ वर्ष बाद।
अन्य वर्ष :
ईसाई वर्ष :
ईशामसीह के जन्म से प्रारम्भ हुआ जो विक्रमसंवत से ५७ साल बाद का है। महीने जनवरी से दिसंबर तक।
हिजरी सन :
१५ जुलाई ६२२ से ई० वर्ष का आरम्भ हुआ है। महीने मोहर्रम से जिल्हेज तक ।
पारसी सन :
इसका आरम्भ ६३० के बाद हुआ इसमें ३० दिन का एक मास ३६० दिन का एक वर्ष , वर्ष के अंत में ५ दिन तक गाम्बर नाम से व्यवहार किया जाता है। महीने फरमर्दिन से इसिपदाद तक।
सुविचार :
जिंदगी बार बार नहीं मिलती है, मुझे लगता है यह गलत है, ज़िन्दगी तो हर रोज मिलती है , बस मौत ही एक बार मिलती है। आप भले कहीं पहुंच जाइये, कितना भी ऊपर उठ जाइये पर अपनी गरीबी को, संघर्ष को, अनुभव को, बुरे समय को मत भूलिए क्योकि यह एक मात्र मंत्र है जो आपको हर चुनौती के लिए साधन - संसाधन सब जुटा लेगी।
प्रणाम , ज्योतिर्विद एस एस रावत
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