इष्टकाल
कुंडली निर्माण करते समय सर्वप्रथम इष्टकाल तत्पश्चात भयात, भभोग, ग्रहस्पष्ट, लग्न ,भावस्पष्ट ,आयुष्य और अन्त में दशा महादशा आदि का विचार किया जाता है।
इष्टकाल : सूर्योदय से जन्मकाल तक का समयान्तर ही इष्टकाल कहलाता है।
साधन : २४ घण्टे को तीनखंडो में विभक्त कर तीनों खण्डों में अलग अलग विधि से इष्टकाल का साधन किया जाता है।
१- सूर्योदय से लेकर दिन में १२ बजकर ६० मिनट से पहले यदि जन्म हो तो जन्मसमय में सूर्योदयकाल को घटाकर शेष को ५ से गुना कर २ से भाग देने पर इष्टकाल प्राप्त होता है। ( अथवा शेष को ढाई से गुणा कर लब्धि इष्टकाल होगी )
२- एक बजे दिन से रात्रि १२ बजकर ६० मिनट से पहले यदि जन्म हो तो जन्म समय के घण्टा में १२ घण्टे जोड़कर उसमे सूर्योदयकाल को घटा कर शेष में ५ से गुणा कर २ से भाग देने पर शेष इष्टकाल प्राप्त होगा।
३- रात्रि १ बजे से अगले सूर्योदयकाल तक जन्म हो तो जन्म समय के घण्टे में २४ घण्टे जोड़ने के बाद उसमे सूर्योदयकाल घटाकर देकर शेष में ५ से गुणाकर दो से भाग देने पर प्राप्त लब्धि इष्टकाल होगी।
विशेष :
सूर्योदय साधन संस्कार अवश्य होना चाहिए इस पर हम आगे चर्चा करेंगे। और जिन पञ्चाङ्ग में स्थानीय समय दिया गया है वे रेलवे अन्तर का संस्कार कर स्टैण्डर्डसमय सूर्योदय बना ले।
सुविचार :
पर्वत चाहे जितना ऊंचा हो , या फिर मंजिल , पर रास्ते हमेशा पैरों के नीचे होते हैं , जिद जितनी बड़ी होगी, सफलता भी उतनी बड़ी ही मिलेगी, किसी भी काम को आप दो बार में करते है पहले दिमाग में बिठाकर, दूसरा जमीन में उतार कर, इसलिए सोच वृहद् होगी तो उपलब्धि भी विशाल ही होगी।
प्रणाम , ज्योतिर्विद एस एस रावत
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें