२- भुक्त प्रकार से लग्न साधन :
सायनसूर्य के भुक्तांश में सायनसूर्य जिस राशि पर हो , उस राशि के स्वोदयमान से गुणाकर ३० से भाग देने पर प्राप्त लब्धि भुक्तपल होगी। पुनः इष्टकाल को ६० घटी में घटाकर शेष को पलात्मक बनाकर प्राप्त इष्टपल में , भुक्तपल को घटाने के बाद मेषादि उत्क्रम से यथा संभव राशियों का स्वोदयमान घटाने पर अंतिम घटी राशि शुद्ध एवं अगली राशि अशुद्ध संज्ञा होगी। पुनः शेष में ३० से गुणा कर अशुद्ध राशि के स्वोदयमान से भाग देने पर प्राप्त लब्धि को अशुद्ध राशि संख्या में घटाने पर सायन लग्न होगा सायन लग्न में अयनांश घटाने पर निरयन लग्न होगा।
सूत्र :
सायन सूर्य का भुक्तांश * सायन सूर्य राशि का स्वोदयमान / ३० = भुक्तपल
पुनः ६० - इष्टकाल = शेष को ( पलात्मक ) - भुक्तपल = शेष - मेषादि उत्क्रम से यथा संभव राशियों के स्वोदयमान = शेष * ३० / अशुद्ध राशि का स्वोदयमान = लब्धि
अशुद्ध राशि संख्या - लब्धि = सायन लग्न
सायन लग्न - अयनांश = निरयन लग्न
उदाहरण :
यदि जन्म स्थान काशी , तात्कालिक सूर्य २ / १४ / ४२ / ४१ , इष्टकाल १३ / १० , अयनांश २३ / ५६ / ४३ , स्वोदयमान मेष मीन २२१ , वृष कुम्भ २५४ , मिथुन मकर ३०४ , कर्क धनु ३४२ , सिंह वृश्चिक ३४४ , कन्या तुला ३३५
लग्न का साधन अगली पोस्ट में करेंगे।
सुविचार :
कोई छोटा या बड़ा नहीं, बल्कि छोटी बड़ी सोच होती है, किसी को इतना कमजोर भी मत समझिए। क्योंकि ख़राब घडी भी हर रोज दो बार सही समय बताती है। नकारात्मक सोच परेशानी तो जानती है, लेकिन समाधान पर उसका जोर नहीं।
प्रणाम ज्योतिर्विद एस एस रावत
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