आज हम स्वयं से बात करेंगे देखते है हम स्वयं की कितनी सुनते है। आज तक हमने दूसरों को सुना, पढ़ा, समझा आज हम स्वयं को जानेंगे समझेंगे। जैसा की हम जानते है हमारे अंदर हम दो है, यही दो हमसे सारा जीवन कुछ ना कुछ करवाते है आज हम इन्ही दोनों की बात का विश्लेषण करेंगे।
हमारे भीतर क्या अन्तर्द्वन्द चलता है ?
व्यक्ति को बहुत बड़ा भ्रम है, कि वह लोगों के लिए बहुत अहम और उपयोगी है, सर्वमान्य है आदि । जबकि यह भ्रम है। विश्वाश नहीं होता है ना ? तो हम एक काम करते है, कुछ समय के लिए किसी गुप्त स्थान में चले जाते है, समाज से दूर , अपनों से भी दूर, किसी से कोई संपर्क या जुड़ाव लगाव सब ख़त्म कर देते है। उसके बाद हम देखेंगे कि सिर्फ ४ दिन प्रलाप समाज में होगा, और ४ साल विलाप-प्रलाप हमारे घर में होगा, उसके बाद हमको सब भूल जाएंगे।
अब हमको लोग जरुरत के अनुसार, साल दो साल में याद करेंगे, यह भी उनके स्वार्थ को साधने के लिए होगा, हमको उदाहरण के रूप में दिखाकर वे अपना काम निकलेंगे। अब हम थोड़ा भ्रमित होंगे और विश्वास नहीं कर पाएंगे, फिर स्वयं से बात करने लग जाएंगे। यही सत्य है, इसलिए हमको आज से ही स्वयं में निर्भर रहना होगा। हमें स्वयं को ही दोस्त बनाना होगा, स्वयं सारे भ्रम - धोखा -आडम्बर नष्ट हो जाएंगे।
इसके बाद मन में अनेक सवाल जन्म ले चुके होंगे, अब उन्हीं पर सीधे आते है।
स्वयं ने स्वयं से प्रश्न किया । जैसे : तुमको क्यों लगता है तुम्हारी अहमियत लोगो के बीच है ? तुम इतने काबिल हो ? कामयाब हो ? बहुत ज्ञानी हो ? सर्वज्ञानी हो ? ईमानदार हो? तुम माँ गंगा जी से भी अधिक पवित्र हो ? तुम साधक, उपासक, शक्तिमान हो ? पता नहीं स्वयं को क्या समझते हो कि मेरी बात तक सुनते नहीं हो, स्वयं भ्रम, धोखा के मायाजाल में फँस चुके हो।
मेरे दोस्त सुनो, जरुरत के अनुसार ही तुम्हारी अहमियत है, तुम कुछ नहीं हो, तुम केवल बस एक मोहरा हो, अकारण क्यों इतने भाव में रहते हो ? तुम जिस काम को करते हो, तुम्हारे नहीं रहने पर भी वह काम हो जायेगा। फिर तुम किस भ्रम में हो, सही बात तो यह है कि तुम्हारे रहने से, या नहीं रहने से कोई फर्क नहीं पड़ता। सृष्टि जैसे चलती थी, वैसे ही गतिमान, ऊर्जावान रहेगी। बस तुमको भ्रम हो चुका है। पेड़ सूख जाने से जंगल ख़त्म नहीं होते, पेड़ ख़त्म होता है, इतिहास गवाह है, सूखे पेड़ को परिंदे भी छोड़ कर, घौसला बदल देते है। तुमको लगता है तुम्हारी जरुरत है , तुमको लगता है तुम उनके लिए बहुत अहम व्यक्ति हो ,विशेष व्यक्ति हो, पर यह उनका सच नहीं है।
सच्च जानना चाहेगा ? तो सुन लोगों को जरुरत है। तेरे पैसौं की, तेरे बुद्धि की, तेरे ताकत की, तेरे सलाह की, तेरे विचारो की, तेरे अनुभव की आदि, लेकिन इसमें तू कहाँ पर है ? क्योंकि एक दिन ये सभी उपलब्धियाँ भी तेरे नहीं होगी, तुझसे तेरे शरीर से बाहर निकल जाएँगी, तेरी जरुरत कहाँ पर होगी ? किसको होगी? किन लोगो को होगी ? जरा सोच यह सिर्फ धोखा, भ्रम है।
स्वयं ने स्वयं से कहा :
स्वयं ने स्वयं से कहा भाई रुको, तबसे इतना कह रहे हो, जरा मेरी भी तो सुन लो, मैंने कभी घमंड नहीं किया है, झूठ नहीं बोला है, सच का साथ दिया है, कभी किसी का दिल नहीं तोड़ा, जानभूझकर कुछ गलत नहीं किया, हर जगह भगवान को महसूस करता हूँ, पूजा, पाठ, मंदिर, आश्रम, व्रत, रीतिरिवाज सब तो मानता हूँ, करता हूँ , फिर मैं गलत कहाँ हूँ? मैंने पढाई, लिखाई, डिग्री सब तो किया है, क्या नहीं आता है मुझे ? देश, दुनिया ,सरकार, कल,कारखाने, फैक्ट्री, व्यापार,नौकरी, शिक्षा , पशु पालन, खेती, किसानी सब तो मैं करता हूँ, मैं रिश्ते भी निभाता हूँ, माँ, बाप, भाई, बहन, बेटा, बेटी, दोस्त, पति, पत्नी, समाज सभी को तो मिलता हूँ, ख्याल रखता हूँ। यही नहीं मैं हर चीज़ को आकर्षित कर सकता हूँ, सुन्दर हूँ, स्वस्थ हूँ,अच्छा खाता हूँ , अच्छा पहनता हूँ, सब कुछ तो है मेरे पास, क्या नहीं है? यही नहीं मैं किसी भी पिंड में जा सकता हूँ ,मैं पृथ्वी में कही भी जा सकता हूँ, चाँद,मंगल तक मेरी पहुंच है। फिर क्यों ना मैं स्वयं को सर्वगुण संपन्न समझू ? मेरे बिना कुछ नहीं हो सकता। अब तुमको समझ आ चुका होगा , मैं कोई साधारण व्यक्ति नहीं, आज तक किसी की हिम्मत नहीं मुझसे कोई सवाल कर दे ,आज मैंने तुम्हारी बोलती भी बंद कर दी, अब कभी हिम्मत नहीं करेगा ,और हाँ अब मुझे तुम्हारी सलाह की जरुरत नहीं है।
पुनः स्वयं ने स्वयं से कहा :
अच्छा भाई मेरे, भला मैं क्यों डरु ? तुम ही तो मैं हूँ और मैं ही तुम हो, फिर से एक बार सुनो, तुम्हारे अन्दर लोभ, लालच, मोह, स्वार्थ, आडम्बर, दिखावा, क्रोध, अहंकार सब आ चुका है, तुम इनके बीच में फंस चुके हो, तुमको अब कुछ दिखाई नहीं दे रहा है, अब मैं तुमसे यही कहूंगा, तुम भागो जितना चाहो भागो, भागते भागते जब तुमको ८०-९० साल हो जाएंगे, तब तुमको पता चलेगा, तुम कुछ नहीं, तुम्हारा कुछ भी नहीं, सब के सब तुम्हारे लिए अनजान हो चुके है, तुम्हारे भीतर की वो सब कला भी ख़त्म, ख़त्म हो चुकी है वो शक्ति, सुंदरता सब ख़त्म, भ्रम भी मिट जायेगा और तब पता चलेगा तुम शून्य से भाग रहे थे, शून्य में आकर मिल गये हो, फिर तुमको मिलेगी शांति, संतोष, विरक्ति। लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता क्योंकि जो तुमने किया है, उसके परिणाम भोगने का समय आ चुका है, पाप-पुण्य का दण्ड भोगना ही पड़ेगा।
मित्रो आज आपने स्वयं से संवाद किया, स्वयं को जाना पहचाना। वैसे भी आप स्वयं से सबसे अधिक बात करते है, जुड़े है, साथ निभाते है, फिर आप दूसरे- दूसरे विषय ,व्यक्ति, जगह, वस्तु आदि के पीछे क्यों भागते है।, आपका समाधान, निराकरण, संतुष्टि,तृप्ति, उपलब्धि, प्रसिद्धि सब कुछ आपके स्वयं के भीतर है, बाहर नहीं।
कृपया यह लेख आपको कैसा लगा अवश्य बताऐं।
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