ब्रह्मांड की अति सूक्ष्म हलचल का प्रभाव भी पृथ्वी पर पडता है, सूर्य और चन्द्र का प्रत्यक्ष प्रभाव हम आसानी से देख और समझ सकते है, सूर्य के प्रभाव से ऊर्जा और चन्द्रमा के प्रभाव से समुन्द्र में ज्वार-भाटा को भी समझ और देख सकते है, जिसमे अष्ट्मी के लघु ज्वार और पूर्णमासी के दिन बृहद ज्वार का आना इसी प्रभाव का कारण है, पानी पर चन्द्रमा का प्रभाव अत्याधिक पडता है, मनुष्य के अन्दर भी पानी की मात्रा अधिक होने के कारण चन्द्रमा का प्रभाव मानव मस्तिष्क पर भी पडता है, पूर्णमासी के दिन होने वाले अपराधों में बढोत्तरी को आसानी से समझा जा सकता है, और जो पागल होते है उनको असर भी इसी तिथि को अधिक बढ़ जाता है। आत्महत्या वाले कारण भी इसी तिथि को अधिक होते है, इस दिन स्त्रियों में मानसिक तनाव भी अधिक दिखाई देता है, इस दिन आपरेशन करने पर खून अधिक बहता है, शुक्ल पक्ष मे वनस्पतियां अधिक बढती है, सूर्योदय के बाद वन्स्पतियों और प्राणियों में स्फ़ूर्ति का प्रभाव अधिक बढ जाता है, आयुर्वेद भी चन्द्रमा का विज्ञान है जिसके अन्तर्गत वनस्पति जगत का सम्पूर्ण मिश्रण है, कहा भी जाता है कि "संसार का प्रत्येक अक्षर एक मंत्र है, प्रत्येक वनस्पति एक औषधि है, और प्रत्येक मनुष्य का अपना एक गुण है, आवश्यकता है उसे पहचान करने की होती है। " ग्रहाधीन जगत सर्वम", विज्ञान की मान्यता है कि सूर्य एक जलता हुआ आग का गोला है, जिससे सभी ग्रह पैदा हुए है, गायत्री मन्त्र में सूर्य को सविता या परमात्मा माना गया है, रूस के वैज्ञानिक "चीजेविस्की" ने सन १९२० में अन्वेषण किया था, कि हर ११ साल में सूर्य में विस्फ़ोट होता है, जिसकी क्षमता १००० अणुबम के बराबर होती है, इस विस्फ़ोट के समय पृथ्वी पर उथल-पुथल,लडाई झगडे,मारकाट होती है, युद्ध भी इसी समय मे होते है, पुरुषों का खून पतला हो जाता है, पेडों के तनों में पडने वाले वलय बडे होते है, श्वास रोग सितम्बर से नबम्बर तक बढ जाता है, मासिक धर्म के आरम्भ से १६ दिन तक गर्भाधान की अधिक सम्भावना होती है। इतने सब कारण क्या ज्योतिषशास्त्र को विज्ञान कहने के लिये पर्याप्त नही है?
अनेक विषयों को ज्योतिषशास्त्र में दर्शाया गया है। यहाँ तक की पंचांग में देश और दुनियाँ के घटना क्रम तथा वर्ष फल, राशि आदि लगभग 20 से 22 महीने पहले ही छाप कर पंचांगों को बाज़ारों में पढ़ने के लिए उपलब्ध करा दिया जाता है। जहाँ तक सत्य की बात कहूँ आधुनिक सुख सुविधा से परिपूर्ण मौसम वैज्ञानिक की तात्कालिक भविष्यवाणी विफल और सफल होती है, उतना ही 20 से 22 महीने पहले छपे पंचांग की भविष्यवाणी होती है। पुनः एक सवाल है क्या आधुनिक तकनीकी युक्त, सभी यंत्रो से युक्त, उपग्रह के संकेत मिलने के उपरांत भी वैज्ञानिक और विज्ञान पर कोई चर्चा नहीं होती है जबकि 40 से 50 रुपये में मिलने वाले पंचांग देखने वाले व्यक्ति को इतना शून्य समझ लेना, क्या न्यायोचित होगा ?
एक प्रश्न : विज्ञान कहता है मनुष्य की उत्पत्ति बन्दर से हुई है कुछ बुद्धिजीवियों का कहना है चिम्पैंजी से मनुष्य का जन्म हुआ है। मुझे भी Quora पर यही 2 प्रश्न पूछा गया था मैंने उत्तर एक में बन्दर और दूसरे में चिम्पैंजी दिया। क्योंकि मुझे पता नहीं था कि प्रश्न कर्ता किसी धर्म से है या किस देश से है।
अब प्रश्न यह है की यदि मनुष्य की उत्पत्ति बन्दर या चिम्पैंजी से हुई है तो सारे बन्दर मनुष्य क्यों नहीं बने ? या कुछ मनुष्य वापस बन्दर क्यों नहीं बने ? यदि अभी भी विज्ञान जवाब दे तो पुनः सवाल होगा कि हाथी घोड़े अन्य जानवर के साथ ऐसा क्यों नहीं हुआ ?
84 लाख योनियों को मानने वाला हिन्दू कैसे धर्म छोड़ कर बाकि दुनियाँ की हर बात मान लेते है ? जबकि मनुष्य की उत्पति हिन्दू धर्म के अनुसार मनु और शत्रुपा के रूप में है।
प्रणाम, ज्योतिर्विद एस एस रावत
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