धर्म का अर्थ धारण करना है यदि व्यक्ति किसी वस्तु, धातु, धारणा, विचारधारा आदि का धारण करता है तो उसके प्रति उस व्यक्ति को सबसे पहले श्रद्धा पुनः कर्तव्य का बोध होता है। अतः धर्म धारण करने के उपरांत ही धर्म के प्रति श्रद्धा उत्त्पन्न होगी। श्रद्धा और कर्तव्य किस प्रकार की होगी यह निर्भर करेगा कि व्यक्ति के द्वारा धारण किन विषय, वस्तुओं को किया गया है। चुकी हमारा विषय धर्म है इसलिए हम धर्म धारण के बाद श्रद्धा तथा कर्तव्य बोध जानने का प्रयास करेंगे।
धर्म धारण करने से मनुष्य धर्मी, संत, शास्त्रपूर्ण, आध्यात्मिक, अलौकिक, ईश्वरवादी, धार्मिक, पवित्र, ईश्वरीय तुल्य गुण, शुद्ध, श्रद्धालु, आदि हो जाता है। तथा मनुष्य स्वभाव, व्यवहार आदि गुणों युक्त होकर जीवन जीने के आचरण और संहिता का ज्ञान प्राप्त भी करता है। पुनः व्यक्ति विशेष को विवेकानुसार धर्म धारण के उपरांत प्राप्त सिद्धि और ज्ञान से जो श्रद्धा पुनः कर्तव्य बोध होगा उस निमित संकल्प लेकर धर्म का प्रचार, धर्म की रखा, धार्मिक अनुष्ठान, मंदिर, आश्रम, जलाशय का निर्माण एवं धार्मिक कार्य कर श्रद्धा भाव से कर्त्तव्य का पालन करता है। सभी जीवों में जीवात्मा को स्वयं तुल्य महत्त्व देकर श्रद्धा भाव और कर्तव्य के अधीनस्थ होकर सुखद, शांति पूर्ण, दिव्य, भव्य अलौकिक तुल्य जीवन जीते हुये अंत समय में परमं श्रेष्ठ गति को प्राप्त करता है।
सयुंक्त परिवार, समूह अथवा समुदाय के फायदे ?
समूह सुरक्षा प्रदान करता है, जबकि अकेले में यह संभव नहीं है। व्यक्तियों को आराम की अनुभूति होती है, परिणाम के रूप में वे स्वयं को शक्तिशाली महसूस करते है। जब हम समूह के साथ रहते है तो हमें दूसरे समूह से सम्मान भी मिलता है, हम सम्मानित महसूस करते है। समूह आत्मविश्वास भी देता है यह उसके जीवन जीने के लिए उपयुक्त रहता है। समूह मनोवैज्ञानिक और सामाजिक जरूरतों को संतुष्ट करता है जैसे आत्मीयता, भावना, ध्यान देना और पाना, प्रेम तथा शक्ति का बोध अनुभव प्राप्त कराता है।
समूह अथवा समुदाय ऐसे लक्ष्य को प्राप्त करने में व्यक्ति की मदद करता है कि जो व्यक्तिगत रूप से करना संभव नहीं है। क्योंकि बहुमत में शक्ति होती है। समूह सदस्यता हमें सूचना, सुझाव, दुःख सुख में साथ देता है, इसी कारण से व्यक्ति का दृष्टकोण समुदाय के प्रति बढ़ता है। ज्ञान की कमी भी व्यक्ति को समूह के द्वारा ही आपूर्ति हो जाती है।
पीढ़ी दर पीढ़ी मान्यताएं, पर्व, जीवन जीने के आवश्यक नियम आदि, यह हमको समुदाय से ही मिलती है। किसी भी कार्य को बारम्बार करने के उपरांत व्यक्ति के भीतर मन में संस्कार जन्म लेते है, यह संस्कार समुदाय के लोगों को मदद करने में सहायक सिद्ध होती है।
सिमित साधन के कारण समुदाय एकजुट रहते है, क्योंकि साधन ही प्रत्येक व्यक्ति की व्यक्तिगत जरुरत होती है, इसलिए वे ना केवल एक दूसरे की मदद करते है, बल्कि यह उनके प्रचलन का हिस्सा भी होता है। क्योंकि सिमित मात्रा में साधन और शक्ति के कारण वे लोग आपस में मदद करते है, यह उनका सबसे बड़ा सुरक्षित और सुंदर सिद्धांत होता है, अथार्त हर चीज़ आदान प्रदान के रूप में देखी जाती है।
एकता में शक्ति होती है, एकता से ही एक दूसरे की मदद की जा सकती है, एकता ही मनुष्य जाति के समग्र विकास को निर्णायक लक्ष्य तक पहुँचा सकती है। यदि संसार एक हो जाय तो यह सम्पूर्ण सृष्टि का अब तक का सबसे बड़ा आविष्कार होगा।
धन्यवाद।
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