जीवन के प्रति सोच कर या विचार व्यक्त कर; जीवनदर्शन, जीवन जीने के लिए उपयुक्त विचार, जीवन से हमें सरलता से लक्ष्य, दृष्टि, सोचने ,समझने और योजना बनाने की सुविधा मिलती है।
जीवन का लक्ष्य क्या है?
इच्छाओं, आकांक्षाओ और आसक्ति से मुक्त होकर आत्मज्ञान प्राप्त करना, स्वयं को जानना, अपने कर्तव्यों को पहचानना , द्वंद्वों से मुक्त और आत्मस्थित होकर निष्काम कार्य करते हुए आनंदपूर्वक जीवन जीना ही मानव जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य है।
मेरी दृष्टि क्या है?
जीव, प्राणी से प्रेम व्यव्हार, मेरी दृष्टि एक ईमानदार, सहानुभूतिपूर्ण और प्रभावशाली, लोगों से सम्मान, मान्यता प्राप्त करने की है। मैं एक समृद्ध, प्रभुत्व, समावेशी, सफल जीवन का दृष्टिकोण रखता हूँ। मेरी योजना नेतृत्व करना है, जहां हर कोई अपनी ताकत से खेल रहा है।
एक छात्र के रूप में मेरे जीवन की क्या दृष्टि है?
मेरे अनुभव में छात्र रह कर ही जीवन के मूल्यों को समझना और उनको क्रियान्वित करने लिए शतप्रतिशत ब्रम्हास्त्र सिद्ध होगा, यदि हम छात्र की भूमिका में रहा कर लक्ष्य को लगातार भेदते रहें तो जीवन दर्शन के सभी पड़ाव सरलता से पार हो जाएंगे। क्योंकि छात्र ही सटीक कदमों का विश्लेषण करके, मुख्य लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करने में सफल रहता है, जिससे वह आने वाले वर्षों में लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है। अतः छात्र की दृष्टि अहंभाव को छोड़कर सदैव सीखने और समझने की होती है। "अतः छात्र का लक्ष्य और गुरु की दृष्टि जैसे बनकर लक्ष्य को प्राप्त करें"
मेरे जीवन में मेरी दृष्टि और लक्ष्य क्या हैं? अथार्त उपसंहार :
हमेशा लक्ष्य को सामने में रखना चाहिए, दृष्टि स्वयं ही लक्ष्य पर टिके रहेगी। लेकिन यदि हम दृष्टि के अनुसार लक्ष्य निर्धारित करेंगे, तो लक्ष्य कभी प्राप्त नहीं होगा क्योंकि असफलता के अनेक कारणों में सबसे बड़ा कारण व्यक्ति के स्वयं की दृष्टि होती है। अस्थिर दृष्टि से अनेक दृष्टिकोण और उनसे असफलता का परिणाम दिखाई देने लगता है। पुनः व्यक्ति परिणाम स्वरूप लक्ष्य विहीन हो जाता है। यह भी कहा जा सकता है कि एक समय में अनेक दृष्टि के कारण, लक्ष्य पाने लिए नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होने लगती है। वास्तव में असली जीवन उसी का है जो परिस्थितियों को बदलने का साहस रखता है, और धैर्य बनाकर, लक्ष्य निर्धारित करके स्वयं निर्भीक होकर, लक्ष्य को प्राप्त करता है।
प्रणाम, ज्योतिर्विद एस एस रावत
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