क्रांति :
विषुवत वृत्त और क्रांति वृत्त का याम्योत्तर अंतर ही क्रांति होती है अथार्त जब ग्रह विषुवत वृत्त से उत्तर में हो तो उत्तराक्रान्ति एवं दक्षिण हो तो दक्षिणाक्रांति होती है।
चर :
सूर्योदय साधन के लिए चर साधन होता है यह चर + - दोनों ही प्रकार का होता है। जब सूर्य सायन मेषादि सायन तुल्यादि के मध्य होता है उस समय चर उत्तरी अक्षांश वालो के लिए ऋण - तथा दक्षिणी अक्षांश वालों के धन + होता है और यदि सूर्य सायन तुल्यादि से सायन मेषादि के मध्य हो तो चर उत्तरी अक्षांश वालों के लिए धन + और दक्षिणी अक्षांश वालों के लिए ऋण - होता है।
अथार्त २१ मार्च से २० सितम्बर तक , २१ सितम्बर से २० मार्च तक।
इस चर का मानक समय के सूर्योदयकाल में अथार्त ६ बजे में ( मानक सूर्योदयकाल ) + - संस्कार करने पर मध्यम सूर्योदय होगा , मध्यम सूर्योदय में वेलांतर का + - संस्कार पर स्थानीय सूर्योदय होगा। पुनः स्थानीय सूर्योदय + - देशांतर का विपरीत संस्कार करने पर घड़ी ( स्टैण्डर्ड ) सूर्योदय काल निकल जायेगा।
चर साधन का सूक्ष्म विधि :
१- अभीष्ट स्थान ( जन्म स्थान ) के अक्षांश के अंश तथा उस दिन की सूर्य की क्रांति के अंश के आगे वाले अंश तथा अभीष्ट क्रांति के अंश पर जो फल प्राप्त हो उसको घटाकर शेष क्रांति कला से गुणाकर ६० से भाग देने पर जो लब्धि प्राप्त होगी उसको अभीष्ट अक्षांश के अंश तथा अभीष्ट क्रांति के अंश में जोड़ने में प्रथम समीकरण होगा।
२- अभीष्ट अक्षांश के अंश के आगे वाले अंश तथा अभीष्ट क्रांति के अंश के आगे वाले अंश पर जो फल प्राप्त होगा उसमे अभीष्ट अक्षांश के अंश के आगे वाले अंश पर जो फल प्राप्त होगा उसको घटाकर शेष में क्रांति कला से गुणा कर ६० से भाग देने पर जो भागफल प्राप्त होगा उसको अभीष्ट अक्षांश के आगे वाले अंश तथा अभीष्ट क्रांति के अंश पर प्राप्त फल में जोड़ने पर द्वितीय समीकरण होगा।
३- प्रथम समीकरण को द्वितीय समीकरण में घटाकर शेष में अक्षांश कला से गुणाकर ६० से भाग देने पर जो फल प्राप्त होगा उसको प्रथम समीकरण में जोड़ने पर अभीष्ट अक्षांश एवं अभीष्ट क्रांति पर चर उत्पन्न होगा।
चर साधन को उदाहरण से समझने का प्रयास हम अगले भाग में पढ़ेंगे। तब तक बने रहिये धन्यवाद।
प्रणाम, ज्योतिर्विद एस एस रावत
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