थोड़ा आप सोचिए यह जानकारी आपको किसने दी थी, और वैज्ञानिक विज्ञान भी यह बता नहीं सके कि जब मनुष्य के पास साधन, संसाधन नहीं थे, या बेहद अल्प थे, या नगण्य थे। उस समय में ही ग्रह की गति, कक्षा, त्रिज्या, नक्षत्र, ग्रह के नाम, दिनों के नाम, राशि, पूर्णिमा, अमावस्या, अक्षांश, रेखांश, सूर्य की क्रांति, ग्रहों के आस पास बताया गया वातावरण आदि जो भी वैदिक काल, ज्योतिष शास्त्र में बताया गया हो अथवा उसमें कहीं त्रुटि मिली हो। दुनियाभर के वैज्ञानिकों के अथक प्रयास के उपरांत भी ज्योतिषशास्त्र को झुठलाने का तथ्यात्मक कारण आजतक देने में सफलता प्राप्त नहीं हुई है। क्या वैज्ञानिक यह बता सकते है ? कि आज बुधवार है कल गुरुवार ही क्यों, शुक्रवार क्यों नहीं ? इसका मतलब यह है वैज्ञानिकों ने इसे स्वीकार किया है। यह तो भारतीय वैदिक ज्योतिषशास्त्र का दुनियाँ के लोगों के लिए एक उपहार ही था। जिसको आज भी सम्पूर्ण विश्व सप्ताह के उसी क्रम को मान रहे है।
मैं आपको विश्वास करने अथवा अविश्वास करने के लिए नहीं कह सकता हूँ किन्तु इतना जरूर कहूंगा। कपोल बातें, झूठी बातें ज्यादा दिन तक नहीं चलती है। सत्य ही अपना स्थान सुरक्षित रख पाता है। यदि ज्योतिषशास्त्र आज भी जीवित है तो यह इसके सत्य होने के प्रमाण है।
विशेष :
सम्पूर्ण दुनियाँ जानती है भारत को मुग़ल शासकों के द्वारा गुलाम कर दिया गया था। गुलामी 3 प्रकार से होती है। आर्थिक गुलामी, शक्ति के द्वारा गुलामी, और आध्यात्मिक या धार्मिक गुलामी। तीनों ही गुलामी भारत में हो चुकी थी अत्यंत ख़राब गुलामी घार्मिक रूप से होती है। जिसमें लोगों का जबरन धर्म बदल दिया जाता है, उनके धर्म ग्रन्थ जला दिए जाते है, इस गुलामी का वेग या प्रभाव इतना अधिक होता है कि हजारों सालों में भी मनुष्य स्वयं के वास्तविक मूल को नहीं पहुंच पाता है उसी का परिणाम आज देखा जा सकता है आज हम ना इधर के है और ना ही हम उधर के ही है।
एक काल खंड ऐसा भी आया था जब ज्योतिष के ग्रन्थ व अन्य ग्रंथ को नष्ट किया जाने लगा। इसका जीता जगता एक उदाहरण नालंदा विश्वविद्यालय है जहाँ विशाल पुस्तकालय में रखी पांडुलुपियों, ज्योतिषशास्त्र के सूक्ष्म सूत्रों, सिद्धांतों, वनस्पति विज्ञान की किताबों, धार्मिक ग्रंथों को जला दिया गया था। जब मुग़ल शासक के द्वारा इस पुस्तकालय में आग लगा दी गई थी तो यह आग 3 महीने तक वहाँ रखे गये ग्रंथो को जलाती रही और राख के रूप में ग्रन्थ नष्ट हो गए। मेरे ख्याल से लगभग आंकलन भी करना कठिन है कि क्षति कितनी पहुंची होगी।
पुनः एक काल खंड ऐसा भी आया जब आधा अधूरा ग्रंथो का अनुवाद अन्य भाषाओं में किया जाने लगा, यह भी उतना ही भयानक था जितना की नालंदा विश्वविद्यालय की आग क्योंकि अनुवाद के दौरान भूलवश अथवा षड्यंत्र कर शब्दों के अर्थ को अनर्थ बनाकर विषयांतर कर दिया गया। जैसे ज्योतिषशास्त्र में ग्रह के उच्च और नीच होने पर उसका विश्लेषण उच्चता और नीचता से कर दिया जाता है तथा यह भी विश्लेषण मिलता है कि उच्च का अर्थ ऊंचाई से तथा नीच का अर्थ समीप से है यदि दोनों का ही विवेचना किया जाय तो परस्पर विरोधाभाषी है अथवा अर्थ का अनर्थ है। इस संदर्भ को आपके विवेक पर छोड़ता हूँ।
सैकड़ों वर्षो के बाद ब्रिटिश सरकार का भारत में कब्ज़ा हो गया पुनः भारत आजाद हुआ लेकिन आज तक ज्योतिषशास्त्र को वह स्थान नहीं मिल सका जो उसे मिलना चाहिए था। बल्कि भारतवर्ष में जो अनेक जगहों में वेधशाला थी वह भी नष्ट हो चुकी है, परिणाम यह है कि ज्योतिषी कैसे गणना करें ? जबकि आज पृथ्वी पर 0° देशान्तर पर खींची गई मध्याह्न रेखा प्रधान मध्याह्न रेखा, प्रधान याम्योत्तर, या ग्रीनविच रेखा कहलाती है। दुनिया का मानक समय इसी रेखा से निर्धारित किया जाता हैं (कोरडिनेटिड युनिवर्सल टाइम -UTC)। लन्दन के एक शहर ग्रीनविच इसी रेखा पर स्थित हैं इसलिय इसे ग्रीनविच रेखा भी कहते है। इसी को आधार मानकर ही ज्योतिष इस कार्य को कर रहे है अथार्त ज्योतिष को सौरमंडल की सत्यता का पता नहीं, स्वयं ग्रह की गणना कर ज्योतिषशास्त्र का स्थान सुनिश्चित करने का सतत्त असफल प्रयास कर रहे है।
क्या सरकारों के लिए यह विषय नहीं कि विश्वसमुदाय समग्र मानव विकास के उत्थान के लिए महापारियोजनओं के साथ में ज्योतिषशास्त्र को जोड़कर उसके लिए भी उचित उपयुक्त योजना ,परियोजना बनाकर नए - नए शोध कर इस महान शास्त्र को पुनर्स्थापित कर सम्पूर्ण मानवजाति का कल्याण किया जा सके। मेरा व्यक्तिगत अनुभव है, ज्योतिषी की भविष्यवाणी गलत हो सकती है, लेकिन ज्योतिषशास्त्र कभी गलत नहीं हो सकता है।
अतः ज्योतिष पर, ज्योतिषशास्त्र पर विश्वास करना, नहीं करना, यह आपका विशेष अधिकार है। मुझे जो अनुभव और शिक्षा प्राप्त हुई है, मैंने उसी के आधार पर कुछ तथ्य प्रस्तुत कर आपके संज्ञान में लेकर आया हूँ। आपका आपका धन्यवाद।
प्रणाम, ज्योतिर्विद एस एस रावत
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