भारतीय वैदिक ज्योतिषशास्त्र ( गणित - फलित ) भाग - ४६ , ज्योतिषशास्त्र का संक्षिप्त परिचय, अष्टोत्तरी दशा, कुंडली के बारहों भाव से विचार :
ज्योतिषशास्त्र का संक्षिप्त परिचय :
ज्योतिष शास्त्र के अविष्कारक, रचयिता, प्रणेता भगवान शिव हैं। ज्योतिष ज्ञान को सबसे पहले शिव ने नंदी को दिया नंदी ने मां जगदंबा को बताया फिर सप्त ऋषियों को और आगे जाकर त्रिकाल दर्शियों ने इस विद्या के रहस्य खोजे।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ज्योतिष के 18 महर्षि प्रवर्तक या संस्थापक हुए हैं। कश्यप के मतानुसार इनके नाम क्रमश: सूर्य, पितामह, व्यास, वशिष्ट, अत्रि, पाराशर, कश्यप, नारद, गर्ग, मरीचि, मनु, अंगिरा, लोमेश, पौलिश, च्यवन, यवन, भृगु एवं शौनक हैं।
ज्योतिषां सूर्यादिग्रहाणां बोधकं शास्त्रम्
अर्थात :
सूर्यादि ग्रह और काल का बोध कराने वाले शास्त्र को ज्योतिष शास्त्र कहा जाता है। इसमें मुख्य रूप से ग्रह, नक्षत्र आदि के स्वरूप, संचार, परिभ्रमण काल, ग्रहण और स्थिति संबधित घटनाओं का निरूपण एवं शुभाशुभ फलों का कथन किया जाता है। नभमंडल में स्थित ग्रह नक्षत्रों की गणना एवं निरूपण मनुष्य जीवन के लिए महत्वपूर्ण होते हैं और यह व्यक्तित्व की परीक्षा की भी एक कारगर तकनीक है और इसके द्वारा किसी व्यक्ति के भविष्य में घटने वाली घटनाओं का पता किया जा सकता है साथ ही यह भी मालूम हो जाता है कि व्यक्ति के जीवन में कौन-कौन से घातक अवरोध उसकी राह रोकने वाले हैं अथवा प्रारब्ध के किस दुर्योग को उसे किस समय सहने के लिए विवश होना पड़ेगा और ऐसे समय में ज्योतिष शास्त्र ही एकमात्र ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा जातक को सही दिशा प्राप्त होती है।
१- सिद्धांत ( गणित ) :
नक्षत्र, अधिकमास व छयमास की उत्पत्ति, प्रभावादि संवत्सर, ग्रहों के मार्गी वक्री गति, व नीच उच्च, सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण, ग्रहों कक्षाएँ, अक्षांश, लम्बांश, चरखण्ड, करण आदि।
२- होरा ( फलित ) :
मेषादि राशियों के स्वरूप, होरा, द्रेष्काण, नवमांश आदि, ग्रहों की अवस्था स्थानबल, कालबल, चेष्टाबल, नैसर्गिंगबल आदि, गर्भाधान, जन्मकाल, बालारिष्ट,आयुर्दाय, दशा,अंतर्दशा, अष्टकवर्ग, राजयोग, चन्द्रयोग, द्विग्रहयोग, त्रिग्रहयोग आदि, आश्रय, दृष्टि, भाव, पूर्वजन्म आदि, प्रश्नो के शुभाशुभ कारण, शिक्षा, विवाह, उपनयन, चूड़ाकरण, आदि विचार होता है।
३- संहिता :
गणित और फलित के मिश्रित रूप को संहिता ज्योतिष कहते है। प्रायः यह भी दो भागों में विभक्त है। एक तो वह जिसमे ग्रहचार अथार्त नक्षत्र मण्डल में ग्रहों के गमन और उनके परस्पर युद्धादि, धूमकेतु, उल्कापात आदि दूसरे भाग में मुहूर्त आदि का वर्णन प्राप्त होता है।
सम्पूर्ण भचक्र / सौरमंडल को बारह भागों में विभाजित किया जाता है, सम्पूर्ण सौरमंडल (३६० अंश ) को १२ राशियों अर्थात १२ से भाग देकर प्राप्त ३० अंश ही एक राशि / भाव होता है।
उक्त १२ राशियों तथा १२ भावों को भारतीय वैदिक ज्योतिषशास्त्र के अनुसार इनके नाम मेषादि क्रम में बताये गये है जिनको आप सभी जानते है। शरीर को ही ब्रह्माण्ड मान कर प्रत्येक राशि का स्वभाव तथा प्रत्येक भाव का विचार कर ज्योतिष के द्वारा शरीर, शारीरिक, आर्थिक, मानसिक एवं जीवन के सम्पूर्ण विन्दुओं की व्याख्या किया जाता है। भाव तथा राशि के स्वभाव को हम अनेक लेखों के माध्यम से समझने का प्रयास करते रहेंगे।
कुंडली के बारहों भाव से विचार :
प्रथम भाव :
चरित्र, स्वभाव, बुद्धि, आयुष्य, सौभाग्य, सम्मान, प्रतिष्ठा, समृद्धि, देह, तनु, शरीर रचना, व्यक्तित्व, चेहरा, स्वास्थ्य, जन्म और व्यक्ति का स्वाभाव।
द्वितीय भाव :
संपत्ति, परिवार, वाणी, दायीं आंख, नाखून, जिह्वा, मारक, नासिका, दांत, उद्देश्य, भोजन, कल्पना, अवलोकन, जवाहरात, गहने, कीमती पत्थर, अप्राकृतिक मैथुन, ठगना व जीवनसाथियों के बीच हिंसा, धन, नेत्र, मुख, वाणी, परिवार।
तृतीय भाव :
साहस, छोटे भाई-बहन, मानसिक संतुलन, सहोदर भाई बहन, संबंधी, रिश्तेदार, पड़ोसी, साहस, निश्चितता, बहादुरी, सीना, दायां कान, हाथ, लघु यात्राएं, नाड़ी तंत्र, संचारण, संप्रेषण, लेखन, पुस्तक संपादन, समाचार पत्रों की सूचना, विवरण, संवाद इत्यादि लिखना, शिक्षा, बुद्धि इत्यादि।
चतुर्थ भाव :
माता, सुख, वाहन, प्रापर्टी, घर, संबंधी, वाहन, घरेलू वातावरण, खजाना, भूमि, आवास, शिक्षा, जमीन-जायदाद, आनुवांशिक प्रकृति, जीवन का उत्तरार्ध भाग, छिपा खजाना, गुप्त प्रेम संबंध, सीना, विवाहित जीवन में ससुराल पक्ष और परिवार का हस्तक्षेप, आभूषण, कपड़े।
पंचम भाव :
पूर्वजन्म, ईष्ट देव, संतान, बुद्धि, प्रसिद्धि, श्रेणी, उदर, प्रेम संबंध, सुख, मनोरंजन, सट्टा, पूर्व जन्म, आत्मा, जीवन स्तर, पद, प्रतिष्ठा, कलात्मकता, हृदय, पीठ, खेलों में निपुणता, प्रतियोगिता में सफलता।
षष्ठ भाव :
रोग, शत्रु और ऋण, विवाद, अभाव, चोट, मामा, मामी, शत्रु, सेवा, भोजन, कपड़े, चोरी, बदनामी, पालतू पशु, अधीनस्थ कर्मचारी, किरायेदार।
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