चलितचक्र :
ग्रह अपने भाव से अल्प एवं गत संधि से अधिक हो तो ग्रह अपने ही भाव में रहेगा यदि गत संधि से अल्प एवं पिछले भाव से अधिक हो तो गत संधि में रहेगा ( पिछले भाव के संधि ) या पिछले भाव से अल्प एवं पिछले भाव के गत संधि से अधिक हो तो पिछले भाव में रहेगा। उसी प्रकार अपने भाव से अधिक और अपने अगली संधि से अल्प हो तो अगले संधि में एवं अगली संधि से अधिक तथा अगले भाव से अल्प हो तो अगले भाव में ही रहेगा। इसी प्रकार भाव एवं संधि में ग्रहों को चलित चक्र में भरना चाहिए। अथार्त स्पष्ट तात्कालिक ग्रह का मान जिस भाव अथवा संधि के मध्य हो ग्रह को उस भाव अथवा संधि में ही भरना चाहिए। तथा फलादेश करते समय भी ग्रह के भाव अथवा संधि के अनुसार ही फल की कल्पना भी करना चाहिए।
वर्ग अथार्त विभाग :
जन्मांक से लेकर षष्टयांश चक्र में कुल ६० वर्ग होते है परन्तु लोक व्यवहार के लिए मुख्यतः ४ प्रकार के वर्गों का उल्लेख किया जाता है। षड्वर्ग , सप्तवर्ग , दशवर्ग ,षोडशवर्ग।
षड्वर्ग : राशि ( ग्रह) , होरा, द्रेष्काण , नवांश , द्वादशांश और त्रिंशांश
सप्तवर्ग: षड्वर्ग + सप्तमांश
दशवर्गः सप्तवर्ग + दशमांश , षोडशांश और षष्ठ्यांश
षोडशवर्ग: दशवर्ग + चतुर्थांश , विंशांश, चतुर्विंशांश, सप्तविंशांश, खवेदांश और अक्षवेदांश।
प्रणाम, ज्योतिर्विद एस एस रावत
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