भारतीय वैदिक ज्योतिषशास्त्र : ( गणित एवं फलित ) भाग - ४५ भुक्त एवं भोग्य प्रकार से वर्षादि साधन एवं महादशा के सामान्य प्रभाव
महादशा के सामान्य प्रभाव :
पिछले लेख के बाद क्रमशः ,,,,,,,,,,
शुक्र - 20 वर्ष
यदि शुक्र बलवान और अनुकूल स्थिति में हो तो व्यक्ति कला और आनंद की वस्तुओं को प्राप्त कर सकता है, पारस्परिक रूप से सामंजस्यपूर्ण तरीके से दूसरों के साथ सहयोग करता है और लाभ प्राप्त करता है, प्यार में पड़ जाता है, शादी हो जाती है, जीवनसाथी के लिए प्यार और स्नेह बढ़ जाता है, बेटियों को जन्म देता है, वृद्धि के कारण कुछ महिला और शुभचिंतकों का संरक्षण या पक्ष। लेकिन यदि शुक्र कमजोर और पीड़ित है तो व्यक्ति अस्वस्थता से पीड़ित होता है, मूत्र या यौन रोग, कम यौन क्षमता, धन की हानि, समर्थन और समर्थन की कमी, घर और बाहर की अशांति और बदनामी कमाता है।
शनि - 19 वर्ष
यदि शनि अनुकूल हो तो जातक स्वयं के कठोर प्रयासों और परिश्रम से सेवा में ऊपर उठता है, शनि द्वारा संकेतित चीजों से लाभ प्राप्त करता है और विरासत प्राप्त करता है। लेकिन यदि शनि प्रतिकूल हो तो व्यक्ति कुपोषण, गरीबी, मुकदमेबाजी आदि के कारण बीमारियों से पीड़ित हो सकता है; बड़ों से झगड़ा और विवाद, परिवार में या अपनों की मृत्यु, प्रगति के मार्ग में बाधाएँ और बाधाएँ और चारों ओर संकट के कारण दुखी जीवन।
राहु - 18 वर्ष
यदि राहु अनुकूल है तो व्यक्ति झूठ, चालाकी और धूर्तता का सहारा लेकर सत्तारूढ़ शक्तियों को प्राप्त कर सकता है या सरकारी पक्ष में वृद्धि कर सकता है, अनैतिक तरीकों से धन अर्जित कर सकता है, निवास स्थान बदल सकता है। लेकिन यदि राहु प्रतिकूल है तो व्यक्ति को बहुत नुकसान होता है, सांप के काटने से पीड़ित होता है, मन का भ्रम, मतिभ्रम और भ्रम, अस्थमा, एक्जिमा आदि से पीड़ित होता है। यह शिक्षा या करियर के लिए सबसे खराब महादशा है जो टूट या बाधित हो सकती है।
केतु - 7 वर्ष
यदि केतु अनुकूल स्थिति में है तो व्यक्ति दर्शन ग्रंथों के अध्ययन और पूजा में समय और ऊर्जा लगाता है, चिकित्सा के अभ्यास से बहुत आय प्राप्त करता है, घरेलू सुख-सुविधाओं का आनंद लेता है, सौभाग्य और बीमारी से मुक्ति पाता है। लेकिन यदि केतु खराब हो तो व्यक्ति को शरीर की तीव्र पीड़ा और मन की पीड़ा, दुर्घटनाएं, घाव और बुखार हो सकता है, कम संगति कर सकते हैं और उनके माध्यम से बुरे परिणाम भुगत सकते हैं।
विंशोत्तरी दशा में फल निर्धारण :
विंशोत्तरी दशा में ग्रहों का फल ज्ञात करने के सम्बन्ध में महर्षि पाराशर एवं वारहमिहिर ने अनेक नियम बताये है। महर्षि पाराशर के फलित ज्योतिष संबंधी सिद्धांत लघु पाराशरी में मिलते हैं। इनमें कुल 42 सूत्र हैं। इसी प्रकार अन्य महर्षियों ने अनेकानेक सूत्र दिए हुए है।
सामान्यतः दशा विचार फल हेतु लग्न के अनुरूप ग्रह नैसर्गिक रूप से शुभ होते हैं उनका विचार करके फल कथन करना उचित होगा। तथा लग्न के लिए नैसर्गिक रूप से ग्रह शुभ होने के बावजूद यह भी ध्यान रखना जरूरी होता है कि कुण्डली में वह ग्रह कितना बलवान है। अगर ग्रह कमज़ोर होगा तो वह शुभ होते हुए भी अपना शुभ फल नहीं दे पाएगा, केन्द्र स्थानों को ज्योतिष में काफी महत्व दिया गया है। आमतौर पर यह माना जाता है कि पाप ग्रह शनि, मंगल, सूर्य कष्टकारी होते हैं परंतु यदि यह केन्द्र भावों के स्वामी हों तो उनकी दशा-अन्तर्दशा में लाभ मिलता है। जातक को इन ग्रहों के दशा में शुभ फल मिलने लगते है।
ग्रह जितना बलि हो उसी आधार पर फल कथन उचित रहता है, तथा लग्न व सभी ग्रहों के अंशात्मक गणना अतियंत आवश्यक होगा, अथार्त अंशात्मक भूमिका बड़ी होती है। इसलिए विवेचना करते समय इन तथ्यों को भी ध्यान में रख कर ही विश्लेषण कार्य चाहिए।
भुक्त एवं भोग्य प्रकार से वर्षादि साधन :
जातक के जन्म काल तक दशास्वामी का कितना काल व्यतीत हो चुका है एवं जन्मकाल के बाद कितना काल व्यतीत होना होना है इसके ज्ञान के लिए भुक्त एवं भोग्य प्रकार से वर्षादि साधन किया जाता है।
पलात्मक भयात में ग्रह दशा वर्ष से गुणाकर पलात्मक भभोग से भाग देने पर लब्धि वर्ष होगी , शेष को १२ से गुणाकर पलात्मक भभोग से भाग देने पर लब्धि मास होगी, पुनः शेष को ३० से गुणाकर पलात्मक भभोग से भाग देने पर लब्धि दिन होगा , पुनः शेष को ६० से गुणाकर पलात्मक भभोग से भाग देने पर लब्धि घटी होगी तथा पुनः शेष को ६० से गुणाकर पलात्मक भभोग से भाग देने पर लब्धि कला होगी।
भयात ४२ / ०१ * ६० = २५२१ पलात्मक भयात
भभोग ६१ / ५७ * ६० = ३७१७ पलात्मक भभोग
२५२१ * २० दशावर्ष = ५०४२० को पलात्मक भभोग से भाग देना होगा
५०४२० / ३७१७ = १३ वर्ष
२०९९ शेष * १२ = २५१८८ / ३७१७ = ६ माह
२८८६ शेष * ३० = ८६५८० / ३७१७ = २३ दिन
१०८९ शेष * ६० = ६५३४० / ३७१७ = १७ घटी
२१५१ शेष * ६० = १२९०६० / ३७१७ = ३४ पल अथार्त
१३ / ६ / २३ / १७ / ३४ भुक्त वर्षादि है। इसको ग्रह दशा वर्ष में घटाने पर शेष भोग्य वर्षादि होगा।
शुक्र का महादशा वर्ष २० / ०० / ०० / ०० / ००
भुक्त वर्षादि - १३ / ६ / २३ / १७ / ३४
भोग्य वर्षादि होगा = ०६ / ०५ / ०६ / ४२ / २६
अथार्त ६ वर्ष ५ माह ६ दिन ४२ घटी २६ कला होगी।
अष्टोत्तरी दशा विचार अगले भाग में करने का प्रयास करेंगे, तब तक बने रहिए खुश रहिए ।
प्रणाम, ज्योतिर्विद एस एस रावत
॥ हर हर महादेव ॥ 🙏🙏🙏
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें