भारतीय वैदिक ज्योतिषशास्त्र ( गणित-फलित ) भाग - ४७ अष्टोत्तरी दशा साधन, भावानुसार शुभाशुभ फल, अष्टोत्तरी दशा प्रयोग में विशेष
कुंडली के बारहों भाव से विचार ( पिछली लेख में शेष )
सप्तम भाव :
विवाह, जीवनसाथी, उसका व्यक्तित्व, जीवनसाथी के साथ रिश्ता, व्यवसायिक साथी , इच्छाएं, काम शक्ति, साझेदारी, प्रत्यक्ष शत्रु, मुआवजा, यात्रा, कानून, जीवन के लिए खतरा, विदेशों में प्रभाव और प्रतिष्ठा, जनता के साथ रिश्ते, यौन रोग, मूत्र रोग, मारक।
अष्टम भाव :
आयु, मृत्यु का प्रकार यानी मृत्यु कैसे होगी, जननांग, बाधाएं, दुर्घटना, मुफ़्त की संपत्ति, विरासत, बपौती, पैतृक संपत्ति, वसीयत, पेंशन, परिधान, चोरी, डकैती, चिंता, रूकावट, युद्ध, शत्रु, विरासत में मिला धन, मानसिक वेदना, ससुराल, विवाहेत्तर जीवन।
नवम भाव :
भाग्य, पिता, गुरु, धर्म, सौभाग्य, चरित्र, दादा-दादी, लंबी यात्राएं, पोता, बुजुर्गों व देवताओं के प्रति श्रद्धा व भक्ति, आध्यात्मिक उन्नति, स्वप्न, उच्च शिक्षा, पत्नी का छोटा भाई, भाई की पत्नी, तीर्थयात्रा, दर्शन, आत्माओं से संपर्क।
दशम भाव :
कर्म, नौकरी, व्यवसाय, पद, ख्याति, व्यवसाय, कीर्ति, शक्ति, अधिकार, नेतृत्व, सत्ता, सम्मान, सफलता, रूतबा, घुटने, चरित्र, कर्म, उद्देश्य, पिता, मालिक, नियोजक, अधिकारी, अधिकारियों से संबंध, व्यापार में सफलता, नौकरी में तरक्की, सरकार से सम्मान।
एकादश भाव :
अभिलाषा पूर्ति, लाभ, समृद्धि, कामनाओं की पूर्ति, मित्र, बड़ा भाई, टखने, बायां कान, परामर्शदाता, प्रिय, रोग मुक्ति, प्रत्याशा, पुत्रवधू, इच्छाएं, कार्यों में सफलता।
द्वादश भाव :
खर्चा, नुकसान, मोक्ष, व्यय, हानि, दण्ड, कारावास, व्यय, दान, विवाह, जलाश्रयों से संबंधित कार्य, वैदिक यज्ञ, अदा किया गया जुर्माना, विवाहेत्तर काम क्रीड़ा, काम क्रीड़ा और यौन संबंधों से व्युत्पन्न रोग, काम क्रीड़ा में कमजोरी, शयन सुविधा, ऐय्याशी, भोग विलास, पत्नी की हानि, शादी में नुकसान, नौकरी छूटना, अपने लोगों से अलगाव, संबंध विच्छेद, लंबी यात्राएं, विदेश में व्यवस्थापन।
भावानुसार शुभाशुभ फल :
लग्नेश की महादशा - स्वास्थ्य अच्छा, धन-प्रतिष्ठा में वृद्धि
धनेश की महादशा - अर्थ लाभ मगर शरीर कष्ट, स्त्री (पत्नी) को कष्ट
तृतीयेश की महादशा - भाइयों के लिए परेशानी, लड़ाई-झगड़ा
चतुर्थेश की महादशा - घर, वाहन सुख, प्रेम-स्नेह में वृद्धि
पंचमेश की महादशा - धनलाभ, मान-प्रतिष्ठा देने वाली, संतान सुख, माता को कष्ट
षष्ठेश की महादशा - रोग, शत्रु, भय, अपमान, संताप
सप्तमेश की महादशा - जीवनसाथी को स्वास्थ्य कष्ट, चिंताकारक
अष्टमेश की महादशा - कष्ट, हानि, मृत्यु भय
नवमेश की महादशा - भाग्योदय, तीर्थयात्रा, प्रवास, माता को कष्ट
दशमेश की महादशा - राज्य से लाभ, पद-प्रतिष्ठा प्राप्ति, धनागम, प्रभाव वृद्धि, पिता को लाभ
लाभेश की महादशा - धनलाभ, पुत्र प्राप्ति, यश में वृद्धि, पिता को कष्ट
व्ययेश की महादशा - धनहानि, अपमान, पराजय, देह कष्ट, शत्रु पीड़ा
अष्टोत्तरी दशा साधन :
उदाहरण :
जन्म पूर्वाषाढा नक्षत्र होने से शनि के अंतर्गत जन्म हुआ है। शनि के अंतर्गत ४ नक्षत्र, शनि का काल १० वर्ष का माना गया है, अतः एक नक्षत्र का काल १० भाग ४ = २ वर्ष ६ माह भुक्त एवं भोग्य काल का साधन विंशोतरी के तरह ही साधन किया जाता है।
भयात ४२ / ०१ ( २५२१ पलात्मक भयात )
भभोग ६१ / ५७ (३७१७ पलात्मक भभोग )
एक नक्षत्र की दशा २/६ = ३० माह
२५२१ * ३० = ७५६३० इसमें भभोग से भाग
७५६३० भाग ३७१७ = २० माह
शेष १२९० * ३० = ३८७००
३८७०० भाग ३७१७ = १० दिन
शेष १५३० * ६० = ९१८००
९१८०० भाग ३७१७ = २४ घटी
शेष २५९२ * ६० = १५५५२०
१५५५२० भाग ३७१७ = ४१ पल
२० / १० / २४ / ४१ भुक्तमासादि अथार्त
१ / ८ / १० / २४ /४२ भुक्त वर्षादि
ग्रह वर्ष १० / ०० / ०० / ०० / ००
भुक्त वर्षादि - १ / ८ / १० / २४ /४२
भोग्य वर्षादि = ८ / ३ / १९ / ३५ / १९
नोट : पूर्वाषाढा शनि का प्रथम नक्षत्र है अतः उक्त लब्धि ही भुक्त वर्षादि होगी यदि नक्षत्र प्रथम से जितना आगे होता तो गत सभी नक्षत्र के वर्ष मान को जोड़कर भुक्त वर्षादि होता।
विशेष : अष्टोत्तरी दशा प्रयोग
बृहद पराशर होरा शास्त्र में इस प्रकार का मत दिया है कि यदि राहु, लग्न के स्वामी से केन्द्र (लग्न को छोड़कर) या त्रिकोण में स्थित हो तो अष्टोत्तरी दशा का प्रयोग किया जाता है।
अगले भाग में योगिनी दशा समझने का प्रयास करेंगे तब तक बने रहिए, सुखी रहिए ।
प्रणाम, ज्योतिर्विद एस एस रावत
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