भारतीय वैदिक ज्योतिषशास्त्र : ( गणित - फलित ) भाग - ४३ ( दशा विचार, विंशोतरी दशा, महादशा एवं अन्तर्दशा के स्वामी ग्रह का फल कथन कैसे करें ?
दशा विचार :
भूत, वर्तमान एवं भविष्य का शुभाशुभ ज्ञान के लिए दशा का प्रयोग किया जाता है। यह दशा अनेक प्रकार की होती है। पराशर ऋषि ने बृहद पराशर होराशास्त्र में ४२ प्रकार के दशाओं का उल्लेख किया है। इसी तरह अन्य आचार्यो ने भी अनेक दशाओं का उल्लेख किया है। सभी आचार्यो एवं आधुनिक विद्वानों के मत से विंशोतरी , अष्टोतरी एवं योगिनिदशा का विशेष महत्त्व है। परन्तु इस तीनों दशाओं के उपयोग में विद्वानों के मध्य मतभेद देखा गया है। पराशर ऋषि ने विंशोतरी को महत्व दिया है ना की अष्टोतरी दशा का , कुछ आचार्यो ने कृष्ण पक्ष में विंशोतरी शुक्ल पक्ष में अष्टोतरी दशा का प्रभाव माना है। तो कुछ आचार्यो ने कृष्ण पक्ष के दिन में और शुक्ल पक्ष के रात्रि में विंशोत्तरी दशा का तथा कृष्ण पक्ष के रात्रि में शुक्ल पक्ष के दिन में अष्टोत्तरी दशा का प्रभाव माना है। और कुछ ने स्थान भेद से दशाओं का प्रयोग किया है जैसे गुजरात , कच्छ ,सौराष्ट्र , पंजाब ,तथा सिंध प्रान्त को अष्टोतरी एवं अन्य छेत्र को विंशोतरी दशा माना है। तो कुछ आचार्यो ने भारत के पूर्ववर्ती राज्यों एवं राजस्थान से विंशोत्तरी , सिंध एवं पंजाब से योगिनी , दक्षिण भारत , मध्य भारत एवं गुजरात से अष्टोत्तरी दशा को प्रभावशाली बताया है। परन्तु वर्तमान में सर्वाधिक विद्वान विंशोतरी दशा का प्रयोग करते है।
महादशा का निर्धारण की परिभाषा क्या है ?
विंशोत्तरी पद्धति में महादशा का निर्धारण करने के लिए एक विशेष नियम का प्रयोग किया जाता है। इस नियम के अन्तर्गत सभी ग्रहों के तीन नक्षत्र माने गये हैं. इस तरह नक्षत्रों की कुल संख्या 27 मानी गई है। जन्म के समय चन्द्रमा जिस ग्रह के नक्षत्र में होता है उस ग्रह की महादशा में व्यक्ति ( जातक ) का जन्म माना जाता है। जन्म के समय चन्द्रमा नक्षत्र का जितना भाग भोग कर चुका हुआ है महादशा की अवधि उतनी ही शेष मानी जाती है, जैसे जन्म के समय चन्द्र किसी ग्रह के प्रथम नक्षत्र में प्रवेश किया ही था की व्यक्ति ( जातक ) का जन्म भी उसी समय में हुआ हो तो ग्रह का पूरा महादशा काल जातक को मिलेगा और यदि जन्म के समय नक्षत्र के आधे भाग में चन्द्र भोग कर चूका हो तो महादशा काल का आधा भाग ही व्यक्ति ( जातक ) को प्राप्त होगा।
उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति कृतिका नक्षत्र में पैदा हुआ है, अर्थात चंद्रमा उसकी जन्म कुंडली में कृतिका नक्षत्र में स्थित है, तो उसे पहले सूर्य ग्रह की शेष महादशा मिलेगी। पुनः क्रमानुसार महादशा, दशा और उनके फल जीवन परियन्त प्राप्त होते रहेंगे।
विंशोत्तरी दशा क्या है ?
ज्योतिषशास्त्र में परिणाम की प्राप्ति होने का समय जानने के लिए जिन विधियों का प्रयोग किया जाता है उनमें से एक विधि है विंशोत्तरी दशा, विंशोत्तरी दशा का जनक महर्षि पराशर को माना जाता है। पराशर मुनि द्वारा बनाई गयी विंशोत्तरी विधि चन्द्र नक्षत्र पर आधारित है। दक्षिण भारत में ज्योतिषी विशोत्तरी के बदले अष्टोत्तरी विधि का भी प्रयोग कर रहे हैं परंतु, विशोत्तरी पद्धति ज्यादा लोकप्रिय एवं मान्य है।
महादशा क्या है ?
महा का अर्थ अधिक और दशा का अर्थ समय अवधि अथार्त ग्रह विशेष का अधिकतम समय ही महादशा कहलाती है। प्रत्येक महादशा का स्वामी अथार्त ग्रह ( महानाथ ) जातक की कुंडली में स्थिति के अनुसार शुभ या अशुभ फल प्रदान करता है। सभी ९ ग्रहों की महादशा वर्ष यदि जोड़ दिए जाएं तो यह महादशा कुल 120 वर्ष की होती है।
महादशा एवं अन्तर्दशा के स्वामी ग्रह का फल कथन कैसे करें ?
विंशोत्तरी दशा में ग्रहों का फल निर्धारण करते समय एक विचार मन में अवश्य आता है कि व्यक्ति को उस ग्रह का फल अधिक मिलेगा जिसकी महादशा चल रही है अथवा उस ग्रह का फल अधिक प्राप्त होगा जिनकी अन्तर्दशा चल रही है। इस विषय में यह माना जाता है कि कुण्डली में दोनों ग्रहों में जो बलवान होगा वह ज्यादा प्रभावी होगा, उसी ग्रह का फल अधिक प्राप्त होगा। महादशा स्वामी यदि बलवान है तो वह अन्तर्दशा स्वामी को अपने इच्छानुरूप फल देने के लिए प्रेरित करेगा, इसी प्रकार अन्तर्दशा स्वामी शक्तिशाली है तो महादशा स्वामी पर प्रभाव डालेगा।
विंशोतरी दशा :
यह दशा १२० वर्ष की मानी जाती है। जिसके स्वामी ग्रह क्रमशः सूर्य ६ वर्ष , चंद्र १० वर्ष , भौम ७ वर्ष , राहु १८ वर्ष , गुरु १६ वर्ष , शनि १९ वर्ष , बुध १७ वर्ष , केतु ७ वर्ष , शुक्र २० वर्ष की महादशा माना गया है। विंशोत्तरी में ९ ग्रह होते है तथा नक्षत्र २७ होते है अतः एक ग्रह के अंतर्गत ३ नक्षत्र आते है अथार्त एक ग्रह ३ नक्षत्र नक्षत्र पर अपना आधिपत्य रखता है। इसी आधिपत्य का विभाग हम अगले भाग में प्रयास करेंगे।
प्रणाम, ज्योतिर्विद, एस एस रावत
॥ हर हर महादेव ॥ 🙏🙏🙏

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