आप भावनाओं को पहचान कर दिमाग में आ रहे नकारात्मक ख्यालों को धीरे-धीरे करके सकारात्मक विचारों से हटाने की कोशिश कर नियंत्रित करें, तार्किक बुद्धि और मन से क्रियाशील होकर कुछ भी कार्य करना शुरू कर दीजिए या अपनी मन पसंद किताब को पढ़ना शुरू कर दीजिए या ऐसे मित्रों से बात करना शुरू कर दीजिए जिनसे आपको प्रेरणा मिलती हो, अब आपका मनोनुकूल परिणाम हेतु संकल्प लेने के उपरांत एक लक्ष्य बन जायेगा। पुनः लक्ष्य को पाने के लिए योजनाबद्ध होकर, आवश्यक कार्य और साधन-संसाधन को जुटना शुरू कर देंगे ।
अभी भी भावना और विचार पूर्व के तरह ही प्रगट होंगे, लेकिन इस बार अंतर यह होगा कि भावना और विचार सकारात्मक होंगे। जिनसे आप विचलित नहीं बल्कि ऊर्जा प्राप्त करेंगे।
भावनाओं को नियंत्रित करने की क्यों आवश्यकता है?
भावनाएँ सोचने और व्यवहार करने के तरीके को प्रभावित हैं। इसलिए भावनाओं को प्रबंधित करने से हमें छोटे या बड़े बेहतर निर्णय लेने में मदद मिलती है। क्योंकि भावना सही हो यह जरुरी नहीं है, नकारात्मक भावनाओं के कारण मन और मस्तिष्क में कब्ज़ा हो जाता है, जिसके कारण तनाव प्रतिक्रिया के रूप में होकर स्थिति को और अधिक बढ़ा देती हैं अब भय, क्रोध, चिंता, हताशा और उदासी, सोच, अविवेक, गलत निर्णय से तार्किक बुद्धि और मन में छाया हुआ रहता है।
विचार सही है या गलत कैसे समझते हैं?
जागरूकता से समझा जा सकता है अगली बार कोई विचार मन में आये तो उसको एक कॉपी या डायरी में लिखें, फिर उसके परिणाम को सोचें, स्वयं से पूछें क्या यह परिणाम आपके लिए उचित है, यदि हाँ तो विचार उत्तम है सकारात्मक है, परिणाम के लिए कार्य योजना बनाकर लक्ष्य पर आगे बढ़ें और यदि नहीं तो विचार नकारात्मक है इसको छोड़ दें।
विचारों को इतना महत्व क्यों ?
सदा प्रसन्नचित्त और आशावादी दृष्टिकोण कैसी भी परिस्थितियाँ आने पर उसे रचनात्मक सोच से देखने की दिशा देता है, आत्मविश्वास को मजबूत बनाता है। किसी भी चीज को पाने के लिए दृढ़ता से खड़े तो होना ही पड़ेगा, नहीं तो गिर जाएंगे। मनोबल और सोच अच्छी होगी तो हम स्वयं अपने जीवन को बहुत आगे बढ़ा सकते हैं। स्थिर आत्मविश्वास के लिए मजबूत सकारात्मक विचार की आवश्यकता होती है। शुद्ध विचार व भावना ही मष्तिस्क और मन से उत्पन्न होकर आत्मविश्वास के रूप में आपके लिए सफलता का साधन बन जाता है।
प्रणाम ज्योतिर्विद एस एस रावत
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