मन स्वयं भी समझ जाता है और समझाकर भी नहीं समझ पाता है यह मन की 2 परिस्थितियाँ होती है। पहली परिस्थिति किस प्रकार से बनती है आइये इसको समझते है।
1 - अंतिम प्रयास भी विफल हो जाय जैसे : पालतू जानवर का पूरा ईलाज किन्तु जानवर की मृत्यु हो गई। मन कुंठित होगा लेकिन मान जायेगा।
2 - जब दूसरा विकल्प नहीं हो जैसे : शिक्षा के लिए स्कूल का कोई दूसरा विकल्प नहीं है। मन कुंठित होगा लेकिन मान जायेगा।
3 - कार्य असंभव हो जैसे : मनुष्य उड़ नहीं सकता है। मन के पास ऐसा कोई अनुभव नहीं है इसलिए मन को कोई फर्क नहीं पड़ता है।
4 - सम्मान और कर्तव्य को पराकाष्ठा तक जैसे : कर्तव्य और सम्मान में कोई कमी नहीं छोड़ी हो उसके उपरांत भी किसी ने किसी को छोड़ दिया है। मन कुंठित होगा लेकिन मान जायेगा।
दूसरी परिस्थिति किस प्रकार से बनती है :
1 - प्रयास ही नहीं किया जाय, जैसे : पालतू जानवर बीमार था लेकिन उसका ईलाज नहीं किया और जानवर की मृत्यु हो गई। मन विचलित होगा मन को समझाना कठिन होगा।
2 - उचित परिणाम प्राप्त नहीं आया, जैसे : सालभर पढाई नहीं किया हो और परीक्षा के बाद फेल हो गए। मन विचलित होगा मन को समझाना कठिन होगा।
3 - मनोनुकूल धन प्राप्त नहीं हो रहा है, जैसे : नौकरी या व्यवसाय में कड़ी मेहनत करके भी उचित धन लाभ नहीं हो रहा है। मन विचलित होगा मन को समझाना कठिन होगा।
4 - सम्मान और कर्तव्य पालन नहीं किये जैसे : मित्रधर्म को अच्छे से नहीं निभाया और एक अच्छा मित्र हमको छोड़ दिया। मन विचलित होगा मन को समझाना कठिन होगा।
विचलित मन का क्या समाधान है ?
सबसे पहले आप यह जान लें मन कहाँ है ? कैसे उत्त्पन्न हुआ है ? किन कारण से मन की यह मनोदशा हुई है। अब स्वयं को मन से अलग करके देखिए तथा आत्मा, इच्छा, विचार, भावना और मन सभी में भेद करना शुरू कर दीजिए। अब आप स्वयं के अधिकारों को देखना शुरु कर दीजिए, आपको स्मरण हो जायेगा कि आत्मा को छोड़ कर बाकि सब पर आपका अधिकार है, लेकिन आप स्वयं को इतना निर्बल कर चुके है कि आपका अधिकार आपके नियंत्रण से बाहर जा चुका है। अब आत्मा के बारे में सोचिये जिसने आपके शरीर का चुनाव किया है। क्या आत्मा के लिए आपने सही वातावरण प्रस्तुत किया है ? क्या यह आत्मा आपके शरीर में रह कर खुश है ? क्या यह आत्मा आपको पूर्णायु देना चाहेगी ? क्या आत्मा के उद्देश्य को आप सहयोग कर रहे है ? इसके उपरांत शीघ्र ही आप मन के बारे में सोचने लग जाएंगे और उत्तर के रूप में आपको स्पष्ट दिखाई देगा कि वास्तव में मन का कोई स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं है। आपके ही कुछ आदतों, इच्छाओं और संस्कारों के समुच्चय से ही यह मन बन चुका है।
जिसका संचालन भी पूरी तरह से आपके द्वारा ही किया जाता है। यहाँ तक आप समझ चुके होंगे मन क्या है, क्या करना चाहिए, पुनः व्यक्ति को यदि विवेक ने साथ दिया और कारण सही रहे, तो मन जल्द ही वास्तविकता को समझ लेगा और आप मन को समझाने में सफल हो जाएँगे। परन्तु बहुत बार परिस्थिति भिन्न भी होती है विवेकशील व्यक्ति मन को अन्य तरीके से भी नियंत्रण में रखते है।
उदाहरण :
एक छात्र प्रतिदिन कॉलेज जाता था, उसके मार्ग में एक पिज्जा की दुकान थी, दुकान में भीड़ देख करके लड़के का मन भी पिज्जा खाने को करता था, उसके पास पैसों नहीं रहते थे, लेकिन फिर भी मन में पिज्जा खाने के विचार आते ही रहते थे। यह भी सत्य था कि लड़के को आत्मा, इच्छा, विचार, भावना और मन सभी में भेद करना आता था, क्योंकि लड़का बहुत विवेकी व ज्ञानी था। फिर भी लड़के का मन बार बार पिज्जा के लिए प्रेरित करता था। एक दिन लड़के ने कुछ पैसे अपने मित्र से उधार लेकर दुकान से पिज्जा खरीद कर घर ले गया, उसने पिज्जा को फ़्रिज में रख दिया, लेकिन पिज्जा नहीं खाया, अब लड़का रोज कॉलेज जाता और घर आकर पिज्जा देखता रहता था। ४-५ दिन में उस लड़के ने पिज्जा को इतने बार देखा कि उसका मन नियंत्रित हो गया और पिज्जा को कुत्ते को दे दिया। पुनः उसी रास्ते से कॉलेज को जाता लेकिन अब मन पिज्जा के लिए बिल्कुल भी नहीं भटकता था।
प्रणाम, ज्योतिर्विद एस एस रावत
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें