अन्धविश्वास का मुख्य कारण जड़ता, अविद्या, मोह, अविवेक, अज्ञान है। जब व्यक्ति अविवेकी होता है तब अन्धविश्वास का उदगम पराधीनता से होता है अथार्त किसी स्थान, व्यक्ति अथवा वस्तु के कारण हो जाता है। यहाँ पर समझने लायक एक बात और है कि यह इस व्यक्ति विशेष का विश्वास है जबकि मूलतः यह अन्धविश्वास है। अतः यह भी कहा जा सकता है अंधविश्वास ही विश्वास को जन्म देता है, इसीलिए कोई अंधविश्वासी व्यक्ति मानने को तैयार नहीं होता कि उसका यह अन्धविश्वास है बल्कि इसी को वह विश्वास समझ कर उपयुक्त कार्य सिद्धि के उपाय कर्म करता है। यदि परिणाम की बात करें तो अंधविश्वासी व्यक्ति कर्मप्रधान नहीं होकर सिर्फ कर्महीनता, भाग्यभरोसे, ग्रह, नक्षत्र की गणना, जादू, टोना, तंत्र, घडी घडी प्रत्येक आहट, लक्षण, साधारण से गतिविधि में भी, यहाँ तक की छींक आने पर भी विचार करने बैठ जाता है। अन्त्ततोगत्वा समाज, परिवार, सृष्टि से दूर स्वयं की अलग दुनियाँ में खोया रहता है।
विश्वास क्या हैं?
विश्वास एक शब्द जरूर है लेकिन विश्वास कुछ विषय में प्रामाणिक रहता है तथा अन्य विषय में अप्रामाणिक होकर यह जन्म मृत्यु के प्रक्रिया को बारम्बार अपनाते रहता है। विश्वास किसी घटनाक्रम के बाद अविश्वास में परिवर्तित हो जाता है, पुनः अन्य घटनाक्रम के बाद यह अपने वास्तविक रूप विश्वास में परिवर्तित हो जाता है ऐसी प्रक्रिया निरंतर होती रहती है। इनके विभिन्न खंड है, ऐसा मैं क्यों कह रहा हूँ इसको आप भी समझ सकते है। सबसे पहले हम यह जानेंगे विश्वास के विभिन्न खंड और कहाँ से उत्पन्न होते है। श्रद्धा, भावना, मूल्य, मूल्यांकन, मतलब, प्रमाण, आकर्षण, मेरे इस पोस्ट को पढ़कर सत्यता अनुभव करना, गुण, लक्ष्य, प्रयोजन आदि इसके खंड है, तथा खंड द्वारा जो निश्चय, अनुभव, अनुभूति, ज्ञान प्राप्त मन और मस्तिष्क को पहुँचता है पुनः मन मस्तिष्क से उत्त्पन्न भाव फल ही विश्वास कहलाता है।
विश्वास के बारे में अक्सर सुना जाता है कि विश्वास अगर एक बार चला जाय तो वह फिर कभी नहीं आता है। उक्त कथन असत्य कहलायेगा क्योंकि विश्वास अविश्वाश में पुनः किसी घटनाक्रम के बाद वास्तविक रूप विश्वास में परिवर्तित हो जाता है।
उक्त सभी घटनाओं का आधार सिर्फ एक ही होता है जब मनोनुकूल फल प्राप्त नहीं होते तभी मन, मस्तिष्क के द्वारा भाव फल बदल दिए जाते है। अतः कुछ उदाहरण से विश्वास और अविश्वास को जानने का प्रयास करते है।
१- विश्वास :
व्यक्ति विश्वास करता है कैसे : ईश्वर है, हिन्दू है, मेरे माता पिता कौन है, मेरी संतान कौन है, व्यक्ति के द्वारा किया कार्य, वस्तु, स्थान, व्यक्ति के नाम, व्यक्ति ने क्या खाया, कहाँ तक शिक्षा ली है, Covid-19 Corona का टिका आदि यह सभी प्रामाणिक विश्वास कहलाता है।
२-अविश्वास :
जब कार्य फल मनोनुकूल नहीं होंगे तब अविश्वास उत्पन्न होगा जैसे श्रद्धा किसी व्यक्ति से थी, भावना के कारण मिलने गया, मूल्य पूछा खरीदारी करनी थी, मूल्यांकन हेतु इस पोस्ट को पढ़ा, आकर्षण किसी के प्रति प्रेम आदि। कार्य को पूर्ण निष्ठा भाव से करने के उपरांत जब मनोनुकूल फल प्राप्ति नहीं होगी तो मन और मस्तिष्क से उत्पन्न भाव उक्त विषय के लिए अविश्वास में परिवर्तित हो जायेगा।
श्रद्धा क्या है ?
श्रद्धा विश्वास में भी होती है, अविश्वास के साथ भी होती है, अन्धविश्वास के साथ भी रहती है। अथार्त श्रद्धा सभी जगहों में विद्यमान रहती है। इसका मूल कारण यह कि यह बिना तथ्य प्रमाण के भी उत्त्पन्न हो जाती है यह सिर्फ कहने, सुनने, कहानी, किस्से भर से श्रद्धा भाव बन जाता है। तथा इसका एक विशेष लक्षण और भी है श्रद्धा भाव जागृत बहुत विलंब से होता है परन्तु विश्वास, अविश्वास, अंधविश्वास के कार्य फल मनोनुकूल नहीं हो तो यह सबसे पहले नष्ट हो जाती है।
विशेष :
मित्रो हम सभी दूसरों के बारे में बहुत जल्द आंकलन कर लेते है फिर चाहे विषय हो, वस्तु हो अथवा व्यक्ति हो तथा निर्णय भी बहुत जल्द कर लेते है। मेरा स्वयं का विचार है व्यक्ति को सर्व प्रथम स्वयं के भीतर मन, मष्तिष्क,वाणी, क्रिया, प्रतिक्रिया, व्यवहार, विवेक, परिश्रम, नियम, सिद्धांत, वचन आदि को देखना चाहिए। कभी सयंम, शांति से सोचिये ऐसा क्यों होता है हम अपनों में सभी गुण और दूसरों में अवगुण ही देखते है।
प्रणाम, ज्योतिर्विद एस एस रावत
अन्धविश्वास ... विश्वास की शरण लेता है.
जवाब देंहटाएंअविश्वास, विश्वास मे परस्पर परिवर्तित होता रहता है.
श्रद्धा सबके साथ आती जाती रहती है.
धन्यवाद इतने तर्कपूर्ण विवरण के लिए 🙏
आपके सहयोग के बिना यह संभव नहीं था, मेरा प्रयास सार्थक होकर किसी एक व्यक्ति को भी प्रभावित करता हो तो मैं पुनः लिखूंगा और बार बार लिखूंगा। क्योंकि यह ऊर्जा प्रेरणा भी आपके द्वारा ही मुझ तक पहुंच रही है, आपका आभार धन्यवाद। हर हर महादेव 🙏🙏🙏
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