आवश्यकताओं को अनुभव करना तथा उनकी पूर्ति करना ही जीवन है। अब प्रश्न उठता है कि आवश्यकता से क्या आशय है? व्यक्ति की आवश्यकताएँ मूल रूप से व्यक्ति की कुछ विशिष्ट इच्छाएँ ही होती हैं, परन्तु व्यक्ति की समस्त इच्छाओं को उसकी आवश्यकताएँ नहीं माना जा सकता।
आवश्यकता है कितने प्रकार के होते हैं?
विलासात्मक आवश्यकताएँ भी तीन प्रकार की होती हैं, जिन्हें क्रमशः हानिरहित विलासात्मक आवश्यकताएँ, हानिकारक विलासात्मक आवश्यकताएँ तथा सुरक्षा सम्बन्धी विलासात्मक आवश्यकताएँ कहा जाता है। अधिक महँगी कार, आलीशान भवन, महँगे तथा अधिक संख्या में वस्त्र रखना हानिरहित विलासात्मक आवश्यकताओं की श्रेणी में आते हैं।कार्यात्मक आवश्यकताएं बताती हैं कि सिस्टम को क्या करना चाहिए, जबकि गैर-कार्यात्मक आवश्यकताएं बताती हैं कि सिस्टम को कैसे कार्य करना चाहिए। विशिष्ट, मापने योग्य, प्राप्त करने योग्य, प्रासंगिक और समयबद्ध आवश्यकताओं की आवश्यकता है।
मनुष्य की आवश्यकता को कितने भागों में बांटा गया है?
1- व्यक्तिगत आवश्यकता:-A दैहिक आवश्यकता , B सुरक्षा आवश्यकता ।
2- सामाजिक आवश्यकता:-A समबद्धता एवं स्नेह की आवश्यकता, B सम्मान की आवश्यकता ।
3- बौद्धिक आवश्यकता:-A आत्मसिद्धि की आवश्यकता ।
आवश्यकताओं का उद्द्गम :
कभी नहीं मिटने वाली भूख , हालात के कारण भूख , इच्छाओं के कारण भूख ,
जरूरतों के कारण भूख आदि है अंत कही पर नहीं है।
आवश्यकतों का निराकरण :
समयानुसार अथार्त कालखण्ड के अनुसार आवश्यकता ही सुसज्जित होती है बाकि सब भ्रम, धोखा ,आडम्बर, मोह , माया है।
स्वयं की आवश्यकता :
सृष्टि का अपना ही एक नियम है जिन गरम कपड़ो को आपने सर्दियों में पहना था गर्मी आते ही वो कपड़े जरूरतविहीन हो जाते है ठीक वैसा ही आपकी कीमत तभी होगी जब आपकी जरुरत होती है।
क्या करें :
समय के अनुसार परिवर्तनशील बनें , उपयोगी बनें , शिक्षार्थी बनें ( आध्यात्मिक, सामाजिक, व्यवहारिक ), जुड़े रहें , अपनों को समय दें। आनन्दित रहें, वर्तमान से संतोष रखें, क्रियाशील रहें।
प्रणाम ज्योतिर्विद एस एस रावत
॥ हर हर महादेव ॥ 🙏🙏🙏
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