क्या कालसर्प योग है ? या फिर कालसर्प योग नहीं है ? वैदिक ज्योतिष शास्त्र में इसकी क्या अवधारणा है जरूर पढ़ें।
कालसर्प योग है, यह बताने वालों का प्रथम पक्ष :
कालसर्प योग कैसे बनता ?
राहु और केतु ऐसे ग्रह हैं जो हमेशा एक दूसरे से सात भाव आगे स्थित रहते है, अथार्त हमेशा 180 डिग्री पर होते हैं। यदि राहु कुंडली के प्रथम भाव में स्थित है तो केतु सप्तम भाव में होगा, यदि केतु प्रथम भाव में स्थित है तो राहु सप्तम भाव में स्थित होगा। इसी प्रकार कुंडली के किसी भी भाव में यदि राहु स्थित है तो उससे ७ भाव आगे केतु अवश्य स्थित होगा।
अब यदि किसी कुंडली में अन्य सारे ग्रह राहु और केतु से मध्य के भावों में स्थित हो जाएँ तो इसी को कालसर्प योग के नाम से जानते हैं। उदाहरण के लिए मान लीजिए किसी की कुंडली में राहु प्रथम भाव में और केतु सप्तम भाव में स्थित है। तथा अन्य सारे ग्रह (सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र एवं शनि) द्वितीय भाव से षष्ट भाव के मध्य कहीं भी स्थित हो जाएं अथवा अष्टम भाव से द्वादश भाव के मध्य कहीं भी स्थित हो जाएं तो इसी स्थिति को कुण्डली में कालसर्प योग माना जाता है। चूँकि कुंडली में 12 भाव होते है, स्वाभाविक रूप से उपरोक्त परिस्थिति भी 12 प्रकार की उत्पन्न होगी, इसी को आधार मान कर 12 प्रकार के कालसर्प योग के नाम भी बताये जाते है, जो की निम्न प्रकार से है।
कालसर्प योग के प्रकार
1. अनंत कालसर्प योग
यदि राहु प्रथम भाव में स्थित हो और केतु सप्तम भाव में स्थित हो तथा उपरोक्त सूत्र के अनुसार अन्य सारे ग्रह भी स्थित हों तो इस स्थिति को अनंत कालसर्प योग के नाम से जाना जाता है।
2. कुलिक कालसर्प योग
यदि राहु दूसरे भाव में और केतु अष्टम भाव में स्थित हो तथा उपरोक्त सूत्र के अनुसार अन्य सारे ग्रह भी स्थित हों तो इस स्थिति को कुलिक कालसर्प योग के नाम से जाना जाता है।
3. बासुकी कालसर्प योग
जब कुंडली के तृतीय भाव में राहु और नवम भाव केतु स्थित हो तथा उपरोक्त सूत्र के अनुसार अन्य सारे ग्रह भी स्थित हों तो इस स्थिति को बासुकी कालसर्प योग के नाम से जाना जाता है।
4. शंखपाल कालसर्प योग
यदि राहु चतुर्थ भाव में स्थित हो और केतु दशम भाव में स्थित हो तथा उपरोक्त सूत्र के अनुसार अन्य सारे ग्रह भी स्थित हों तो इस स्थिति को शंखपाल कालसर्प योग के नाम से जाना जाता है।
5. पद्म कालसर्प योग
जब कुंडली के पंचम भाव में राहु स्थित हो और ग्यारहवें भाव में केतु स्थित हो तथा उपरोक्त सूत्र के अनुसार अन्य सारे ग्रह भी स्थित हों तो इस स्थिति को पद्म कालसर्प योग के नाम से जाना जाता है।
6. महापद्म कालसर्प योग
जन्मकुंडली के छठे भाव में राहु स्थित हो और बारहवें भाव में केतु स्थित हो तथा उपरोक्त सूत्र के अनुसार अन्य सारे ग्रह भी स्थित हों तो इस स्थिति को महापद्म कालसर्प योग के नाम से जाना जाता है।
7. तक्षक कालसर्प योग
यदि कुण्डली के सातवें भाव में राहु और प्रथम भाव में केतु स्थित हो तथा उपरोक्त सूत्र के अनुसार अन्य सारे ग्रह भी स्थित हों तो इस स्थिति को तक्षक कालसर्प योग के नाम से जाना जाता है।
8. कर्कोटक कालसर्प योग
यदि जन्मकुंडली के आठवें भाव में राहु और दूसरे भाव में केतु स्थित हो तथा उपरोक्त सूत्र के अनुसार अन्य सारे ग्रह भी स्थित हों तो इस स्थिति को कर्कोटक कालसर्प योग के नाम से जाना जाता है।
9. शंखनाद कालसर्प योग
जब जन्मकुंडली के नौवें भाव में राहु एवं तीसरे भाव में केतु स्थित हो तथा उपरोक्त सूत्र के अनुसार अन्य सारे ग्रह भी स्थित हों तो इस स्थिति को शंखनाद कालसर्प योग के नाम से जाना जाता है।
10. घातक कालसर्प योग
यदि कुंडली के दशम भाव में राहु एवं चतुर्थ भाव में केतु स्थित हो तथा उपरोक्त सूत्र के अनुसार अन्य सारे ग्रह भी स्थित हों तो इस स्थिति को घातक कालसर्प योग के नाम से जाना जाता है।
11. विषधर कालसर्प योग
जब कुंडली के ग्यारहवें भाव में राहु और पंचम भाव में केतु स्थित हो तथा उपरोक्त सूत्र के अनुसार अन्य सारे ग्रह भी स्थित हों तो इस स्थिति को विषधर कालसर्प योग के नाम से जाना जाता है।
12. शेषनाग कालसर्प योग
यदि जन्मकुंडली के बारहवें भाव में राहु एवं छठे भाव में केतु स्थित हो तथा उपरोक्त सूत्र के अनुसार अन्य सारे ग्रह भी स्थित हों तो इस स्थिति को शेषनाग कालसर्प योग के नाम से जाना जाता है।
कालसर्प योग का वैदिक ज्योतिष शास्त्र में कोई अवधारणा नहीं है, द्वितीय पक्ष :
कालसर्प योग कब से है इसके भी अनेक मत मतान्तर है कुछ विद्वानों का मानना है यह पिछले ४०-५० वर्षो से है। तथा मुझे विश्वविद्यालय में पढ़ाया गया था कि लगभग ३०० वर्ष पूर्व कुछ विद्वानों ने कालसर्प योग को बनाया था, उसका कारण कहीं ना कहीं उस कालखंड के तरफ संकेत करता है, जब आजीविका का साधन नष्ट होते जा रहे थे,अत्यधिक गरीबी, भुखमरी ज्योतिष विद्या के विद्वानों पर भी आ चुकी थी। क्योंकि देश शक्ति के बल से, आर्थिक दृष्टि से और आध्यात्मिक रूप से गुलाम / पराधीन थे। इतिहास गवाह है उस समय हिन्दुओं को अपना अस्तित्व बचाना भी बहुत कठिन हो रहा था।
कालसर्प योग का ज्योतिष से कहीं कोई लेना-देना नहीं है। ज्योतिष के प्रामाणिक ग्रंथों में कालसर्प योग का जिक्र नहीं है। यह पूरी तरह से अशास्त्रीय हैं। ज्योतिष शास्त्र में कालसर्प नामक कहीं कोई अवधारणा नहीं है।
जन्म कुंडली में राहु-केतु के मध्य में सभी ग्रहों के आ जाने को कुछ ज्योतिषी काल-सर्प योग की संज्ञा देते हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि काल-सर्प योग का ज्योतिष के किसी प्रामाणिक शास्त्रीय ग्रन्थ में वर्णन नहीं है, बृहत् पराशर होरा-शास्त्र, बृहत् जातक, सारावली, फलदीपिका, जातक-पारिजात, सर्वाथचिन्तामणि, जैमिनी-सूत्रम् आदि ज्योतिष के प्रामाणिक प्राचीन ग्रंथो में काल-सर्प योग का कोई उल्लेख नहीं मिलता। इसके अतिरिक्त भृगु पद्धति और नाड़ी ज्योतिष की पांडुलिपियों में, जहाँ हजारों जन्मकुंडलियों का संग्रह है, वहां भी काल-सर्प योग का कोई उल्लेख अब तक प्राप्त नहीं हुआ है।
फलित ज्योतिष पर विश्वास करने वाले जातको को भयभीत करने वाले कालसर्प योग की वास्तविकता वैदिक ज्योतिष के विरूद्ध है। यह तो सर्वविदित है कि राहु व केतु कोई ग्रह नहीं बल्कि छाया ग्रह है और पृथ्वी एंव चन्द्र की परिक्रमा के कटान बिन्दु है जिसकी चाल तीन कला ग्यारह विकला वक्र गति से प्रतिदिन है।
सभी ग्रहों में चंद्र की गति सबसे तेज होती है चंद्र को एक राशि के भोग करने में लगभग सवा दो दिन अथार्त ५४ लगभग घण्टे लगते है। यह किसी भी ग्रह की एक राशि के भोगकाल से न्यूनतम अवधि है।
मान लीजिए चंद्र को छोड़ बाकि सभी ग्रह कालसर्प योग के अनुसार एक तरफ ही स्थित है, तथा जैसा की आप समझ चुके है, चंद्र की गति तेज और एक राशि में लगभग ५४ घण्टे तक रहता है। और अब तेज गति के कारण चंद्र भी उसी तरफ आ चुका है, जिधर अन्य सारे ग्रह स्थित है, इसका अर्थ यह है कि ऐसी स्थिति लगभग ५४ घंटे तक लगातार बनी रहेगी, अथार्त कालसर्प योग लगभग ५४ घंटा लगातार ही बना रहेगा ।
अब थोड़ा यह भी सोचिए कि एक सेकण्ड में ३ से ४ बच्चे पैदा होते है एक मिनट में, एक घंटा में और ५४ घण्टे में यह संख्या क्या होगी। क्या लाखों बच्चे जो पैदा हुए है सभी कालसर्प योग के कारण उनके जीवन में एक समान घटनाएं होंगी ?
विशेष : आज आपने कालसर्प योग के दोनों पक्षों की जानकारी ली, आप किस पक्ष को स्वीकार्य करते है यह आपका अधिकार है।
धन्यवाद।
प्रणाम, ज्योतिर्विद एस एस रावत
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