भारतीय वैदिक ज्योतिषशास्त्र : ( गणित - फलित ) भाग - ४२ ( ग्रहों का कारकत्व, ग्रहों की दृष्टि, ग्रहों का स्थान व दृष्टि परिणाम, तात्कालिक कुंडली , ग्रहों के मैत्री विचार एवं पंचधामैत्री )
ग्रहों का कारकत्व :
जन्मकुंडली में 12 भाव होते हैं। भावों के नैसर्गिक कारक (ग्रहों का कारकत्व ) निम्नानुसार है
सूर्य- प्रथम भाव, दशम भाव
चंद्र- चतुर्थ भाव
मंगल- तृतीय, षष्ठ भाव
बुध- चतुर्थ भाव
गुरु- द्वितीय, पंचम, नवम, एकादश भाव
शुक्र- सप्तम भाव
शनि- षष्ठ, व्यय, अष्टम भाव
विशेष- यदि भाव का कारक उस भाव में अकेला हो तो भाव की हानि ही करता है।
ग्रहों की दृष्टि :
सभी ग्रह अपने से सातवें स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखते हैं। इसके अलावा विशेष दृष्टि भी होती है जैसे -
गुरु की विशेष दृष्टि : पाँचवीं व नौवीं दृष्टि भी होती है।
शनि की विशेष दृष्टि : तृतीय व दसवें स्थान को भी देखता है।
मंगल की विशेष दृष्टि : चौथे व आठवें स्थान को भी देखता है।
राहु-केतु भी क्रमश: पाँचवें और नौवें स्थान को पूर्ण वक्र दृष्टि से देखते हैं।
ग्रहों का स्थान व दृष्टि परिणाम :
सूर्य : अपने स्थान बल के अनुसार लाभ (दशम में सर्वाधिक) देता है, अन्यथा हानि / अल्प पहुँचाता है।
चंद्र, शुक्र व बुध : जिस स्थान पर बैठते हैं, उसकी वृद्धि करते हैं।
मंगल : जहाँ बैठता है और जहाँ देखता (अपने घर के अलावा), सभी को हानि पहुँचाता है।
गुरु : जिस घर में बैठता है, उसकी हानि / विलंब करता है मगर जिस घर को देखता है उसकी वृद्धि करता है।
शनि : जिस घर में बैठता है उस घर में फलों की वृद्धि करता है मगर जहाँ देखता है वहाँ हानि करता है।
विशेष : लग्न की स्थिति के अनुसार ग्रहों की शुभता-अशुभता व बलाबल भी बदलता है। जैसे सिंह लग्न के लिए शनि अशुभ मगर तुला लग्न के लिए अतिशुभ माना गया है। इसलिए लग्न विचार अतियंत आवश्यक है।
ग्रहों का स्थान व दृष्टि परिणाम :
गोचर कुंडली में जन्मराशि को लग्न मानकर तथा ग्रह स्थिति तात्कालिक होती है।
तात्कालिक कुंडली :
तात्कालिक कुंडली में ग्रह एवं लग्न तात्कालिक होते है।
ग्रहों के मैत्री विचार :
मुख्यतः २ भेद होते है। पहला नैसर्गिक मैत्री , दूसरा तात्कालिक मैत्री। नैसर्गिक मैत्री नियत और स्थिर होती है जबकि तात्कालिक मैत्री जन्मांक चक्र आधारित होता है। इन दोनों के मिश्रण से पंचधामैत्री का निर्माण ( साधन ) किया जाता है।
नैसर्गिक मैत्री सारिणी आप किताब से देख सकते है। एवं तात्कालिक मैत्री ग्रह जहाँ स्थित हो उससे २, ३, ४, १० , ११ , १२वें भाव में रहने वाले सभी ग्रह मित्र एवं अन्यत्र शत्रु ग्रह होते है।
पंचधामैत्री :
नैसर्गिक मैत्री तात्कालिक मैत्री = पंचधा मैत्री
मित्र मित्र अधिमित्र
सम मित्र मित्र
मित्र / शत्रु शत्रु / मित्र सम
सम शत्रु शत्रु
शत्रु शत्रु अधिशत्रु
सप्तवर्ग विचार करने से पहले दशा साधन करने का प्रयास अगले भाग से प्रारम्भ करेंगे। तब तक बने रहिए सुखी रहिए।
ज्योतिर्विद, एस एस रावत
॥ हर हर महादेव ॥ 🙏🙏🙏
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