दशम लग्न साधन :
दशम लग्न साधन करने के लिए इष्टकाल के स्थान पर नतकाल व स्वोदयमान के जगह लंकोदयमान का प्रयोग किया जाता है। नत दो प्रकार के होते है पूर्व नत और पश्चिम नत। मध्यरात्रि से मध्यकाल तक पूर्वनत और मध्यकाल से मध्यरात्रि तक पश्चिम नत होता है।
नत साधन करने की विधि :
१- सूर्योदय से मध्यान काल तक यदि जन्म हुआ हो तो दिनार्ध में इष्टकाल घटाने पर शेष पूर्व नत कहलाता है।
२- मध्यानकाल से मध्यरात्रि काल तक यदि जन्म हुआ हो तो इष्टकाल में दिनार्ध घटा देने पर शेष पश्चिम नत होता है।
३- मध्यरात्रि से अगले दिन के सूर्योदय तक यदि जन्म हुआ हो तो ६० घटी में इष्टकाल घटाकर शेष में दिनार्ध जोड़कर लब्धि पूर्वनत होता है।
नोट : पूर्वनत होने पर भुक्त प्रकार से तथा परनत होने पर भोग्य प्रकार से दशम लग्न का साधन किया जाना चाहिए।
सूर्योदय से सूर्यास्त = दिनमान , ६० घटी - दिनमान = रात्रिमान , दिनमान को आधा करने पर दिनार्ध और रात्रिमान को आधा करने पर अर्धरात्रि काल कहते है।
उदाहरण :
यदि दिनमान ३३ / ५३ दिनार्ध होगा १६ / ५६ / ३० हमने इष्टकाल बनाया था १३ /१० ( जन्म समय १० : ३० प्रातः ) दिनार्ध - इष्टकाल = पूर्वनत अथार्त ०३ / ४६ / ३० पूर्वनत
यदि जन्म समय ३ : ५० दिन में हो तो इष्टकाल २६ / ३० हो तो - दिनार्ध १६ / ५६ / ३० = ०९ / ३३ / ३० परनत।
यदि जन्म समय ३ : ३० रात्रि हो तो इष्टकाल ५५ / ४० हो तो , ६० घटी - ५५ / ४० इष्टकाल = ०४ / २० /०० शेष + १६ / ५६ ३० दिनार्ध = २१ / १६ / ३० पूर्व नत।
दशम लग्न साधन का उदाहरण अगले भाग में प्रयास करेंगे।
सुविचार :
यदि आप सोचते है, यह कार्य मैं कर सकता हूँ , तो उस कार्य को आप कर ही देंगे, यदि सोचते है, मैं नहीं कर पाऊँगा, तो उस कार्य को आप नहीं कर पाएंगे। अथार्त सोच तथा साहस व्यक्ति को दिशा प्रदान कर सकता है। तथा यह भी याद रखना चाहिए कि व्यक्ति के क्रोध से भ्रम, भ्रम से व्यग्र, व्यग्र से तर्क नष्ट हो जाते हैं। नष्ट हुई चीज़ किसी काम की नहीं होती है। और यदि आपका मन पर नियन्त्रण नहीं है। फिर आप स्वयं के शत्रु बन बैठेंगे, और व्यक्ति को शत्रु बाहर ढूढ़ने की जरुरत नहीं पड़ती है।
प्रणाम, ज्योतिर्विद एस एस रावत
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें