धन की आवश्यकता जीवन परियन्त रहती है, लेकिन समय इसको निर्धारित करता है समय का विशेष महत्त्व होता है, यही कारण है ख़राब समय में धन संयम से व्यय और अच्छे समय में धन व्यय के साथ धन संचय भी करना चाहिए, तभी संचित धन भविष्य में अनेक परिस्थितियों को सुगमता से सुव्यवस्थित समाधान कर सकता है।
इस सन्दर्भ में मुझे एक कहानी स्मरण हो रही है, आइये हम कहानी के माध्यम से धन के महत्त्व को समझते है। बात बहुत पुरानी है उन दिनों दूर संचार ( फोन ) , सड़क, गाड़ी आदि का निर्माण नहीं हुआ था। छुट -पुट, दूर-दराज में व्पापारी होते थे, अनेक गाँवों के ग्राहक उधार में सामान खरीदकर ले जाते थे। व्यापारी का धन उधार में चले जाने से दुकान में सामान की कमी भी होने लग चुकी थी, तब व्यापारी अनेक गांव गांव घूम कर महीने दो महीने के बाद उधार धन को लेकर पुनः दुकान को सुचार रूप से चलाता था। इस बार भी ऐसा ही हुआ और व्यापारी अपने पुत्र को साथ ले जाने की सोचा, क्योंकि इस बार उसका पुत्र पढाई करके दूसरे राज्य से घर लौट आया था। व्यापारी का उद्देश्य यह भी था कि पुत्र, व्यापार - धंधा को भलीभाँति समझ ले, और अपने ग्राहकों की पहचान कर, प्रत्येक आवश्यक नीति, नियम का ज्ञान प्राप्त कर सके।
पिता पुत्र दोनों उधार धन की उघाई के लिए निकल पड़े, जाते समय रास्ते में एक आदमी हाथी के बच्चे बेच रहा था तभी व्यापारी के पुत्र की उन हाथियों के बच्चों पर नजर पड़ी तो अपने पिता से कहने लगा पिता जी एक हाथी का बच्चा मेरे लिए भी खरीद लीजिए। व्यापारी ने असहमति व्यक्त कर गंतव्य को बढ़ने के लिए कहा, लेकिन पुत्र पुनः जिद्द कर पिता से हाथी के बच्चे को खरीदने का आग्रह किया। इस बार व्यापारी ने पुत्र को कहा पूछ के आओ हाथी की क्या कीमत है पुत्र खुश होकर उस आदमी के पास जाकर पूछा और पिता को आकर कहा हाथी की कीमत २० रुपये है पिता ने बहुत महंगा है कह कर पुत्र को पुनः गंतव्य को बढ़ने के लिए कहा।
बेमन से पुत्र पिता के साथ अगले गांव पहुंचे, रात हो जाने के कारण उसी गांव में रुक गए, पुनः प्रातः आगे बढ़ चलते रहे, रात होने पर किसी न किसी गांव में ठहर कर इसी तरह उधार धन जुटाते रहे। करीब महीने दो महीने के बाद धन लेकर उसी रास्ते आये और वही पहुंच गए जहाँ हाथी के बच्चे बिक रहे थे। इस बार पुत्र मौन था क्योंकि उसको पता था पिता ने हाथी खरीदना नहीं है लेकिन उसके विपरीत पिता ने पुत्र से कहा जाओ पूछ कर आओ हाथी की कीमत कितनी है पुत्र ख़ुशी ख़ुशी गया और पूछने पर पता चला हाथी की कीमत बढ़ चुकी है अब उसकी कीमत ५०० रुपये हो चुकी है पुत्र आकर पिता को कीमत बता दिया। पिता ने १ हजार रुपये पुत्र को दिया बोला जाओ २ हाथी के बच्चे खरीद कर ले आओ। पुत्र को कुछ समझ नहीं आया फिर भी गया और २ हाथी खरीद कर ले आया। पुत्र को अब इस बार पुनः दुखी मन से घर लौटना पड़ा, खुश होने के बजाय पुत्र रास्ते में यही सोच संताप करते रहा आखिर पिता जी ने हाथी तब क्यों नहीं ख़रीदा जब हाथी २० रुपये का था और अब हाथी की कीमत ५०० रुपये हो चुकी है एक के बजाय पिता जी ने २ हाथी क्यों खरीद लिए होंगे।
पुत्र को कुछ समझ नहीं आया, घर पहुंच कर अपनी माता जी को पूरा वृतांत सुनाया। माँ ने पुत्र को कहा बेटा तुम्हारे पिता का मानसिक संतुलन ख़राब हो चुका है, अब ये दुकान, व्यापार, हिसाब, किताब के लायक नहीं रह गए है, कल से तुम दुकान पर जाना, मैं इनको किसी न किसी बहाने घर पर ही रोकूंगी। अगर ऐसा नहीं किया जाय, तो दुकान लूटने में देर नहीं लगेगी। बात लड़के को भी अब समझ आ चुकी थी और सोचा कि अब पिता जी घर की ही शोभा बढ़ाएंगे, अन्य काम के लिए उपयुक्त नहीं है। अगले दिन पुत्र दुकान पर जाने लगा, पिता ने कहा बेटा बहुत दिनों के बाद घर लौटा है ,कुछ दिन आराम करो मैं दुकान पर जाता हूँ, तभी व्यापारी के पत्नी ने कहा, आप घर पर ही रहिए बेटा दुकान पर चला जायेगा। आप थक चुके होंगे मैं आपकी सेवा करुँगी, व्यापारी बड़ा खुश हुआ किन्तु पत्नी का अचानक से स्वभाव में परिवर्तन समझ नहीं आया। खैर व्यापारी की अब घर में सेवा सत्कार होने लगा, कुछ दिन तक ऐसा ही चला एक दिन व्यापारी के मन में विचार आया आखिर माँ और बेटा मिलकर मुझे दुकान पर क्यों जाने नहीं दे रहे है। व्यापारी ने तय किया अब में दुकान पर जाकर ही रहूँगा, देखूं तो जरा बात क्या है, अगले दिन प्रातः निश्चित तय सीमा में तैयार होकर व्यापारी जिद्द कर दुकान के लिए जाने लगा तभी पत्नी ने गुस्सा कर, पूरा वृतांत कह सुनाया कि आपको धन की बर्बादी दिखाई नहीं देती २० रुपये में जो काम हो सकता है उसके लिए आपने १ हजार रूपये खर्च करके धन का नुकसान किया है।
अब व्यापारी को पूरी बात समझ आ चुकी थी तथा पत्नी और पुत्र को उचित उपयुक्त प्रवचन देकर कहने लगा जिस समय हम लोग घर से जा रहे थे। यदि रास्ते में उसी समय २० रूपये खर्च कर देते तो हम लक्ष्य तक पहुंच नहीं पाते लेकिन लौटते समय धन इतना था कि १ हजार रूपये क्या ५ हजार भी खर्च करना भी कठिन नहीं था। पुनः पुत्र को जीवन के मूल्यों को सीखने हेतु शिक्षा ग्रहण करने विदेश भेज दिया और पत्नी को सलाह देने लगा समय, संकेत, संगत और अनुभव के बिना व्यापार करना उपयुक्त नहीं होता है।
मित्रो आज हमने कहानी के माध्यम से यह सीखा कि समय को महत्व देना चाहिए धन को नहीं, क्योंकि समय होगा तो धन कमाया जा सकता है यदि समय शेष नहीं रहा तो कमाया धन भी भोग करना संभव नहीं है। धन से सिर्फ वस्तु एवं सेवा लिया जा सकता है। समय को ख़रीदा नहीं जा सकता तथा यह भी ध्यान रखने योग्य है कि संगत, संकेत और अनुभव नहीं हो तो धन को गलत समय में खर्च कर जीवन में कठिनाई का सामना करना पड़ जाता है । अथार्त यदि व्यापारी २० रुपये खर्च कर देता तो वह ना केवल लक्ष्य से भटकता बल्कि उसको कठिन परिस्थिति का भी सामना करना पड़ जाता।
धन्यवाद।
प्रणाम ज्योतिर्विद एस एस रावत
कहानी के माध्यम से बहुत आसानी से जीवन में धन की उपयोगीता और महत्व को हम तक पहुंचाया. धन्यवाद 🙏
जवाब देंहटाएंहृदय की प्रत्येक स्पंदन से प्रत्येक बार आपका हार्दिक धन्यवाद।
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जवाब देंहटाएं🙏🙏🙏
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