1- धीरे चलना, तेज चलना मापदंड नहीं बल्कि हम चल रहे है अथवा नहीं इसको जरूर देखना चाहिए, छोटे छोटे प्रयासों से बड़े कार्य सिद्ध होते है, गलतियाँ स्वयं की हो या दूसरे की दोनो से सीखना चाहिए, सुविधा से बाहर जाकर ही क़ामयाबी मिलती है स्वयं को परिधि में बांधकर ना रखें।
2- यदि आत्मविश्वास की कमी हो तो शक्तिशाली व्यक्ति भी कमजोर और कमजोर व्यक्ति भी शक्तिमान बन जाता है, आशा की किरण अंधकार को मिटा देती है, सिर्फ हमारे सोच का ही थोड़ा अंतर होता है वर्ना कोई भी समस्या आपको कमजोर नहीं मजबूत करने आती है।
3- अच्छाई या बुराई दोनो ही एक सिक्के के दो पक्ष है, लेकिन समय ही वो होता है जो अच्छाई या बुराई को ऊपर / सामने में लता है इसलिए कभी भी जीतने से पहले जीत को और हारने से पहले हार को नहीं मानना चाहिए।
4- जिस प्रकार पतझड़ के बिना नए पत्ते नहीं आते, उसी तरह परेशानी, संघर्ष, कष्ट सहे बिना क़ामयाबी नहीं आती, अहंकार नहीं करना चाहिए जो आज आपके पास है, वह कल आपसे दूर भी होगा, सच ही कहा गया है जिसको पत्थर समझते थे वह कोहिनूर निकला।
5- कमजोर शरीर से चला जा सकता है, कमजोर हौसले, दुविधा से नहीं। भाग्य आप साथ लेकर आते है लेकिन कर्म साथ लेकर जाते है , अगर हारने के बाद भी लक्ष्य पूरा करने की हिम्मत है तो समझ लीजिए आप हारे नहीं हैं।
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