ग्रहों की स्थिति :
आकाश मंडल का अवलोकन करने पर अनेक प्रकार के प्रकाश पुंज दिखाई देते है। जिनको सामान्य रूप से तारे कहा जाता है परन्तु उन तारों में ग्रह एवं नक्षत्र दोनों होते है। यह प्रकाश पिंड स्थिर और चल दिखाई देते है, स्थिर नक्षत्र चल ग्रह की संज्ञा होती है। ग्रह पिण्ड में ३ प्रकार के ग्रह होते है।
१- बिम्बीय ग्रह : नग्न चक्षु के के द्वारा जिन ग्रहों का पूर्ण बिम्ब दिखाई देता है उसे बिम्बीय ग्रह कहते है। जैसे सूर्य, चंद्र।
२- तारा ग्रह : नग्न चक्षु से अवलोकन करने पर जिन ग्रहों का बिम्ब तारा के रूप में दिखाई देता है उन ग्रहों को तारा ग्रह कहते है जैसे मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि।
३- छाया ग्रह : जिन ग्रहों का बिम्ब दिखाई नहीं देता वे छाया ग्रह कहलाते है जैसे राहु केतु।
कुंडली निमार्ण के लिए ग्रहों में २ प्रकार का भेद किया जाता है १- मार्गी ग्रह २- वक्री ग्रह।
मार्गी ग्रह : जिन ग्रहों की गति मेषादि क्रम में होती है वे मार्गी ग्रह कहलाते है।
वक्री ग्रह : जिन ग्रहों की गति मेषादि उत्क्रम से होती है वे वक्री ग्रह कहलाते है।
सूर्य चंद्र सदा मार्गी , राहु केतु वक्री शेष ग्रह समयानुसार मार्गी वक्री दोनों होते रहते है।
सुविचार :
छोड़ा गया समय , बोली हुई बात और किया हुआ कार्य को आप बदल नहीं सकते ये ना तो वापस होंगे, ना मौका देंगे और ना ही इनमें सुधार की कोई गुंजायश है। इसलिए जीवन में इनको व्यावहारिक रूप में लेकर कामयाब जीवन का संकल्प ले। कठिन नियम , कठिन कार्य , कठिनाई जीवन को सफल, धन्य और सिद्ध करती है।
प्रणाम, ज्योतिर्विद एस एस रावत
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें