भयात : भ = नक्षत्र , यात = बीता हुआ अथार्त वर्तमान (जन्मकालिक)
नक्षत्र का बीता हुआ मान भयात कहलाता है।
भभोग : भ = नक्षत्र , भोग = सम्पूर्णमान अथार्त वर्तमान ( जन्मकालिक ) नक्षत्र
का सम्पूर्णमान भभोग कहलाता है।
भयात भभोग का ही एक भाग होता है इसलिए कभी भी भयात भभोग से अधिक नहीं हो सकता है। प्राचीन समय में भभोग न्यूनतम ५४ घटी, अधिकतम ६७ घटी तक रहता था , आधुनिक समय में न्यूनतम ५० घटी एवं अधिकतम ६७ घटी तक रहता है।
भयात भभोग साधन में सामान्य बातें :
जन्म नक्षत्र के गतनक्षत्र के मान को ६० घटी में घटाकर, शेष में इष्टकाल जोड़ने पर भयात एवं शेष वर्तमान नक्षत्र का मान जोड़ने पर भभोग होता है।
जन्म काल में चंद्र जिस नक्षत्र में रहता है उसे वर्तमान नक्षत्र कहते है , और वर्तमान नक्षत्र के पूर्ववर्ती नक्षत्र को गत नक्षत्र कहते है।
भयात भभोग के साधन में अनेक स्थितियां होती है :
१ - जन्म और सूर्योदय एक ही दिन एक ही नक्षत्र में होना।
२- एक ही दिन जन्म एवं सूर्योदय पृथक पृथक नक्षत्र में होना।
३- नक्षत्र की वृद्धि होना। इसमें भी ३ स्थितियाँ होती है ( जन्म नक्षत्र के प्रारम्भ से प्रथम सूर्योदय तक , प्रथम सूर्योदय से द्वितीयसूर्योदय तक , द्वितीयसूर्योदय से नक्षत्र समाप्ति तक )
४- नक्षत्र का छय होना। इसमें भी ३ स्थितियाँ होती है ( छय नक्षत्र में जन्म लेने पर , छय नक्षत्र के बाद अगले सूर्योदय से पूर्व तक , अगले दिन के सूर्योदय के बाद जन्म लेने पर।
सुविचार :
संघर्ष, कठिनाई , परिश्रम, गरीबी, ईमानदारी, आदि ये सब में कष्ट जरूर मिलता है, लेकिन तत्कालिक, अंततोगत्वा सफलता, सिद्धि, प्रसिद्धि तक पहुँचा ही देता है, घायल तो जमाना भी हो जाता है, याद रखिये जो चलता है, वही चलाता है।
प्रणाम , ज्योतिर्विद एस एस रावत
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