जन्मदिन एक है, वार्षिक श्राद्ध विभिन्न दिन क्यों ? जन्मदिन सही है तो मृत्युदिन गलत क्यों ? मृत्युदिन सही है, तो जन्म दिन गलत क्यों ? भाग - 1
कृपया लेख एक और लेख दो को पूरा पढ़ें तभी इस प्रश्न का उत्तर समझ में आ सकता है, इसलिए आप से निवेदन है कि आप दोनों लेखों को जरूर पढ़ियेगा। तभी हम इस विषय को एक सकारात्मक विचार, चिंतन और चेतना की तरफ बढ़ कर प्रश्न के उत्तर के लिए न्याय निर्णय ले पाएंगे।
अंग्रेजी कैलेंडर ( ईसाई धर्म ) संक्षिप्त विवरण :
अंग्रेजी कैलेंडर विक्रम संवत के 57 साल बाद आया है। अंग्रेजी कैलेंडर ग्रेगोरी कालदर्शक के नाम से जाना जाता है, इसकी शुरुआत विक्रम संवतसंख्या 57 से हूई थी। लेकिन इस कैलेंडर में अनेक त्रुटियाँ थीं, जिन्हें पुराने (जूलियन) कालदर्शक में सुधार कर नवीन (ग्रेगोरियन) कालदर्शक कहलाया, किन्तु इस पद्धति को भिन्न-भिन्न ईसाई देशों में भिन्न-भिन्न वर्षों में स्वीकार किया गया। इस नवीन पद्धति (नये कैलेंडर) को इटली, फ्रांस, स्पेन और पुर्तगाल ने 1582 ई॰ में, प्रशिया, जर्मनी के रोमन कैथोलिक प्रदेश स्विट्जरलैंड, हॉलैंड और फ़्लैंडर्स ने 1583 ई॰ में, पोलैंड ने 1586 ई॰ में, हंगरी ने 1587 ई॰ में, जर्मनी और नीदरलैंड के प्रोटेस्टेंट प्रदेश तथा डेनमार्क ने 1700 ई॰ में, ब्रिटिश साम्राज्य ने 1752 ई॰ में, जापान ने 1972 ई॰ में चीन ने 1912 ई॰ में, बुल्गारिया ने 1915 ई॰ में, तुर्की और सोवियत रूस ने 1917 ई॰ में तथा युगोस्लाविया और रोमानिया ने 1919 ई॰ में अपनाया। जनवरी, फरवरी, मार्च, अप्रैल, मई, जून, जुलाई, अगस्त, सितंबर, अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर महीनों के नाम है।
विशेष : ध्यान देने योग्य यह है कि ईसाई धर्म के सभी लोगों ने एकमत होकर इस सुधार को एक साथ स्वीकार्य किया है।
हिब्रू कैलेंडर या यहूदी कैलेंडर लूनिसोलर संक्षिप्त विवरण :
इस कैलेंडर के माह इस प्रकार है। निसान, अय्यर, सिवान, तमुज, ए वी, एलुल, तिश्रेई, चेशवान, किसलेव, टेवेट, शेवत, अदार ये 12 महीनों के नाम है।
हिब्रू कैलेंडर के 12 चंद्र महीने अमावस्या से अमावस्या तक के सामान्य महीने हैं: वर्ष में सामान्य रूप से बारह महीने औसतन 29.52 दिन होते हैं। 29.53 दिनों के औसत संयुति महीने की तुलना में विसंगति एक लीप वर्ष में अदार I के कारण होती है जिसमें हमेशा तीस दिन होते हैं। इसका मतलब है कि कैलेंडर वर्ष में आम तौर पर 354 दिन होते हैं, जो सौर वर्ष से लगभग 11 दिन कम होते हैं।
परंपरागत रूप से, बेबीलोनियन और हिब्रू लूनिसोलर कैलेंडर के लिए, वर्ष 3, 6, 8, 11, 14, 17 और 19 मेटानिक चक्र के लंबे (13-महीने) वर्ष हैं । यह चक्र ईसाई कलीसियाई कैलेंडर का आधार भी बनाता है और इसका उपयोग प्रत्येक वर्ष ईस्टर की तिथि की गणना के लिए किया जाता है।
लूनी-सौर हिंदू कैलेंडर का सौर भाग सूर्य सिद्धांत पर आधारित है । सूर्य सिद्धांत पांडुलिपियों के विभिन्न पुराने और नए संस्करण समान सौर कैलेंडर प्रदान करते हैं। जे. गॉर्डन मेल्टन के अनुसार, दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में उपयोग किए जाने वाले हिंदू और बौद्ध दोनों कैलेंडर इस पाठ में निहित हैं, लेकिन क्षेत्रीय कैलेंडर ने समय के साथ उन्हें अनुकूलित और संशोधित किया है।
विशेष : ध्यान देने योग्य यह है कि यहूदी धर्म के सभी लोगों ने एकमत होकर इस सुधार को एक साथ स्वीकार्य किया है।
इस्लामिक कैलेंडर संक्षिप्त विवरण :
यह कैलेंडर हिजरी युग की गणना करता है , जिसका युग 622 ईस्वी में इस्लामी नव वर्ष के रूप में स्थापित किया गया था । खगोलीय-चंद्र-कैलेंडर प्रणाली में, 12 चंद्र महीनों का एक वर्ष 354.37 दिन लंबा होता है। इस कैलेंडर प्रणाली में, चंद्र महीने ठीक मासिक "संयोजन" के समय शुरू होते हैं, जब चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच सबसे सीधे स्थित होता है। महीने को पृथ्वी के चारों ओर चंद्रमा की एक क्रांति की औसत अवधि (29.53 दिन) के रूप में परिभाषित किया गया है। परंपरा के अनुसार, 30 दिनों और 29 दिनों के महीने एक दूसरे के बाद आते हैं, दो लगातार महीनों को जोड़कर 59 पूरे दिन। केवल 44 मिनट का एक छोटा सा मासिक बदलाव छोड़ता है, जो 2.73 वर्षों में कुल 24 घंटे (यानी, एक पूरे दिन के बराबर) तक जुड़ जाता है। व्यवस्थित करने के लिए, चंद्र कैलेंडर में हर तीन साल में एक दिन जोड़ने के लिए पर्याप्त है, उसी तरह ग्रेगोरियन कैलेंडर में हर चार साल में एक दिन जोड़ा जाता है। समायोजन के तकनीकी विवरण सारणीबद्ध इस्लामी कैलेंडर में वर्णित हैं । एक सौरवर्ष से चंद्रवर्ष के 11 दिन के अंतर को कैसे सामंजस्य बिठाया गया है इसकी मुझे जानकारी नहीं है इसके लिए मैं क्षमा चाहूँगा।
अन्य तथ्य :
सूर्य सिद्धांत में सौर वर्ष की गणना 365 दिन 6 घंटे 12 मिनट और 36.56 सेकेंड की होती है। जबकि औसतन चंद्र मास 27 दिन 7 घंटे 39 मिनट 12.63 सेकेंड के बराबर होता है। व्हिटनी के अनुसार, सूर्य सिद्धांत की गणना सहनीय रूप से सटीक थी और भविष्य कहनेवाला उपयोगिता हासिल की। सूर्य सिद्धांत के अध्याय 1 में , "हिंदू वर्ष लगभग साढ़े तीन मिनट लंबा है।
अब्बासिद ख़लीफ़ा अल-मंसूर ( 754-775 सीई ) के शासनकाल के दौरान सूर्य सिद्धांत संस्कृत में अरबी में अनुवादित दो पुस्तकों में से एक था । मुजफ्फर इकबाल के अनुसार , यह अनुवाद और आर्यभट्ट का भौगोलिक, खगोल विज्ञान और संबंधित इस्लामी विद्वानों पर काफी प्रभाव था।
विशेष : ध्यान देने योग्य यह है कि सभी धर्मो ने सूर्य सिद्धांत को स्वीकार्य कर अथवा आधार बनाकर समय सारिणी (कैलेंडर ) में परिवर्तन किये गए है। यहाँ तक की वैज्ञानिको ने भी माना है कि उस कालखंड के अनुसार सूर्य सिद्धांत के सूत्र ही सबसे सटीक गणना करने वाली विधि है।
सूर्य सिद्धांत - समय का संक्षिप्त विवरण :
सूर्य सिद्धांत के लेखक समय को दो प्रकार से परिभाषित करते हैं: पहला जो निरंतर और अंतहीन है, सभी चेतन और निर्जीव वस्तुओं को नष्ट कर देता है और दूसरा समय है जिसे जाना जा सकता है। पुनः दूसरे वाले प्रकार को भी दो प्रकारों के रूप में परिभाषित किया गया है: पहला है मुर्ता (मापने योग्य) और अमृता (अमापने योग्य क्योंकि यह बहुत छोटा या बहुत बड़ा है)। समय अमृत वह समय है जो समय के एक अतिसूक्ष्म भाग ( त्रुति ) से शुरू होता है और मुर्ता एक ऐसा समय है जो नीचे दी गई तालिका में वर्णित प्राण नामक 4 स्पंदन के साथ शुरू होता है। अमृत काल का और अधिक वर्णन पुराणों में मिलता है।
सूर्य सिद्धांत में वर्णित समय :
प्रकार सूर्य सिद्धांत इकाइयां विवरण समय की आधुनिक इकाइयों में मूल्य
अमृता त्रुटि 1/33750 सेकंड 29.6296 माइक्रो सेकंड
मुर्ता प्राण 4 सेकंड
मुर्ता पाला 6 प्राण 24 सेकंड
मुर्ता घाटिका 60 पलास 24 मिनट
मुर्ता नक्षत्र अहोरात्र 60 घटी नक्षत्र दिवस
सौरवर्ष का संक्षिप्त विवरण :
सौरमास का आरम्भ सूर्य की संक्रांति से होता है। सूर्य की पहली संक्रांति से दूसरी संक्रांति के मध्य का समय ही एक सौरमास कहलाता है। मूलत: सौरमास (सौर-वर्ष) 365 दिन का होता है। 12 राशियां ही सौर वर्ष के बारह मास कहलाता है। जिस दिन सूर्य जिस राशि में प्रवेश करता है उसी दिन को संक्रांति कहते है। और यह दिन सौरमास का पहला दिन कहलाता है। एक संक्रांति से दूसरे संक्रांति के मध्य का समय ही एक मास कह कहलाता है। सौर-वर्ष के दो भाग हैं- उत्तरायण छह माह का और दक्षिणायन भी छह मास का। सौरमास के नाम : मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्*चिक, धनु, कुंभ, मकर, मीन।
विशेष : ध्यान देने योग्य यह है कि सौरमास को ही स्वीकार्य किया जाता है जैसे अंग्रेजी महीनों को भी सूर्य ( सौरमास ) के अनुसार ही सामंजस्य स्थापित करने के लिए 28 और 29 फरवरी का गठन किया गया है।अथार्त (सौरमास स्वीकार्य किया ) तथा इसी को लीप ईयर की संज्ञा दे दी गई।
चंद्रवर्ष में एक मास क्यों बढ़ जाता है ? ( अधिक मास या मलमास )
सौर वर्ष और चांद्र वर्ष में सामंजस्य स्थापित करने के लिए हर तीसरे वर्ष पंचांगों में एक चान्द्रमास की वृद्धि कर दी जाती है । इसी को अधिक मास या अधिमास या मलमास या पुरुषोत्तम मास कहते हैं ।
सौर-वर्ष का मान 365 दिन , 15 घड़ी ,22 पल और 57 विपल हैं ।
जबकि चांद्रवर्ष 354 दिन , 22 घड़ी , 1 पल और 23 विपल का होता है ।
इस प्रकार दोनों वर्षमानों में प्रतिवर्ष 10 दिन , 53 घटी ,21 पल ( अर्थात लगभग 11 दिन ) का अन्तर पड़ता है । और यह अंतर ३ वर्ष के अंतराल में 1 माह का हो जाता है।
इसी कारण इस अन्तर में सामंजस्य स्थापित करने के लिए प्रत्येक 3 वर्ष में चांद्रवर्ष 12 मासों के स्थान पर 13 मासों को माना जाता है ।
वास्तव में जिस प्रकार चंद्रमास तिथि घट या बड़ ( वृद्धि -क्षय ) जाती है उसका कारण सूर्योदय होता है, ठीक इसी प्रकार प्रत्येक महीने की संक्रांति होती है अथार्त सौरमास का पहला दिन, यदि चंद्रमास में सूर्य-संक्रांति नहीं पड़ती , उसी को "अधिक मास" 'मलमास' या 'अधिमास' की संज्ञा दे दी जाती है। इस साल 2023 में अधिक मास की स्थिति उत्पन्न हो रही है।
जिस चंद्रमास में सूर्य की दो संक्रांति हो उत्पन्न जाय उसे "क्षयमास" कहा जाता है। यह स्थिति भी सूर्य के कारण ही होती है क्षयमास केवल कार्तिक , मार्ग व पौस मासों में होता है । जिस वर्ष क्षय-मास पड़ता है , उसी वर्ष अधि-मास भी अवश्य पड़ता है परन्तु यह स्थिति 19 वर्षों या 141 वर्षों के पश्चात् आती है।
विशेष : ध्यान देने योग्य यह है कि सौरमास को ही स्वीकार्य किया जाता है जैसे चंद्र महीनों को भी सूर्य ( सौरमास ) के अनुसार ही सामंजस्य स्थापित करने के लिए 3 वर्ष बाद 'मलमास' या 'अधिमास' की संज्ञा देकर सौरमास के समान कर दिया जाता है।
निष्कर्ष : प्रश्न के उत्तर का निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए कुछ और तथ्यों को भी आपके सम्मुख प्रस्तुत करूँगा। तथ्यों का आंकलन कर आप स्वयं निर्णय लेने में सक्षम हो जाएंगे। इसी लक्ष्य को ध्यान में रखकर मैं संक्षिप्त शब्दों में व्याख्या करूँगा। मेरा यह भी प्रयत्न है कि साधारण जनमानस भी सुगमता से सभी तथ्यों पढ़कर उचित और अनुचित का अंतर करने में सरलता की अनुभूति कर सके। इसलिए आप लेख 2 को अवश्य पढें, तभी यह लेख 1 सार्थक सिद्ध हो पायेगा।
धन्यवाद ,
प्रणाम, 🙏🙏🙏
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें