पिछले भाग का शेष .........................
7 - तुला लग्न :
तुला लग्न का स्वामी शुक है। यह रजोगुणी तथा वायु तत्व का है। जातक स्वरूपवान् दुबला किन्तु लम्बा, सन्तुलित शक्तिवाला, राजनीतिज्ञ, न्यायप्रिय वणिक कार्यवाला, धीर, गम्भीर बुद्धिमान्, देशभक्त, आशावादी, सभी बातों पर पूर्वापर विवेचना करनेवाला, मध्यस्थता का कार्य करने में चतुर, कफ विकार से युक्त, सत्यवादी, पुण्यात्मा, राजा से पूजित देव विप्र, अतिथि का सेवक, धार्मिक, विपरीत लिंग ( पुरुष / महिला) से अधिक मित्रता, धनाढ्य, प्रसन्नचित्त, कृपालु, सुखभोगी, मानसिक चिन्तायुक्त, पुल, सड़क, भवन आदि का निर्माण करनेवाला, मित्रों से सहयोग प्राप्त करनेवाला, , पुत्र या स्त्री के कारण पिता से विचारों में मतभेद रखनेवाला, दीन दुखियों को देखकर शीघ्र द्रवित हो जाने वाला, बाग या जलाशय का निर्माण करने वाला, उत्कृष्ट सन्तानों का पिता, सन्तानें उत्तम, उच्चपदवाली तथा गुणवान् होती है। कभी मध्यम सन्तानोंवाला भी देखा जाता है , पत्नी चंचल स्वभाव वाली, धन की अधिक अभिलाषा रखने वाली होती है। जातक दार्शनिक, लोकप्रिय, साहित्य, संगीत, कला में निपूर्ण, प्रेमी, जातक, इंजीनियर, वकील, जज, रास्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय कानूनविद, कवि, राजनीतिज्ञ, मन्त्री अथवा किसी संगठन का सर्वोच्च अधिकारी होता है। वृष, मिथुन, कन्या, मकर एवं कुम्भ लग्न वाले जातकों से प्रगाढ मैत्री रहती है। इस लग्न में जन्म लेने वाला जातक 5, 15, 31, 35 , 62, 64, 72वे वर्षो में कष्ट की संभावना रहती है। और 25 से 30 वर्ष के मध्य भाग्योदय होता है।
8 - वृश्चिक लग्न :
वृश्चिक लग्न का स्वामी मंगल है। यह तमोगुणी, जल तत्त्व कारक है। जातक सुन्दर, मध्यम कद, तर्कज्ञ, धार्मिक, विवादप्रिय, युद्धवेत्ता विजयी, प्रचारक, श्रेष्ठ महात्मा, उदार, परिश्रमी, स्पष्टवक्ता, सरकार से लाभ प्राप्त, अतिथि सेवक, धनाढ्य मिष्टान्त प्रिय, फल - हरी सब्जी का प्रेमी, प्रेमयुक्त प्रसन्नचित, एकान्तप्रिय, विचित्र कर्म कर्ता पुरुषार्थ से धन लाभ करनेवाला, आत्मविश्वासी, स्वेच्छाचारी तथा सेवा कर्म में निपुण होता। है। स्वयं के बल से कार्य करनेवाला, धन संग्रही तथा कठोर कर्मचारी होगा। जातक स्वल्प किन्तु, विद्वान् सन्तति वाला, पुत्र श्रेष्ठ, नीरोगी तथा रूपवान होगा। पत्नी शान्त स्वभाव, नम्र पति भक्ति परायण होगी। प्रायः धन का व्यय देवकार्य में तीर्थयात्रा में तथा श्रीत, स्मार्त कमों में होगा। जातक पुलिस, सेना, जासूसी में, चिकित्सक, गणितज्ञ अथवा दार्शनिक हो सकता है। कर्क, धनु, मीन, सिंह तथा मेष लग्न वालों से मैत्री सम्बन्ध मिलकर कार्य तथा प्रेम व्यवहार रहता है। जातक को वायु सम्बन्धी कष्ट, रक्तविकार कष्ट हो सकते है। तथा जन्म से 2, 11, 29, 38, 52, 62वें वर्षों में कष्ट की सम्भावना रहती है। तथा भाग्योदय 28 से 30 वर्ष के मध्य संभावना रहती है।
9 - धनु लग्न :
धनु लग्न का स्वामी गुरु है। यह सत्वगुणी अग्नितत्त्व का है। जातक के कान तथा गर्दैन लम्बे होंगे, बाल्यावस्था में स्थूल पश्चात् पुष्ट शरीर, मध्यम कदवाला होगा। इसकी अन्तः प्रज्ञा अत्यन्त धनी, साधु स्वभाव, धार्मिक वक्ता, धनाड्य जागृतिकर्ता, दानी, विद्वान्, उत्तम स्मरण शक्तिवाला, एकान्तप्रिय, न्यायप्रिय निःस्वार्थी, स्वाभिमानी, तीन या चार भाषाओं का ज्ञाता, उदार मन शान्तिप्रिय, भीड़-भाड़ से बचनेवाला, आडम्बरहीन जीवन, कार्य करने में डीठ, बड़े वाहनों से युक्त, मित्रों से सुखी, घोड़े के समान जांघोवाला, अनेक उद्योग या व्यवसाय द्वारा धन प्राप्त करनेवाला, राजा या अधिकारी को शीघ्र प्रसन्न करनेवाला, व्रती, यशस्वी, क्षमाशीत, सत्यवादी, सुशील, संगीत या काव्य में अभिरुचि, दूसरे का धर्मानुष्ठान करानेवाला, स्वयं धर्म क्रिया से हीन, अध्ययनशील, तीर्थ में अभिरुचि, सुन्दरी स्त्री से सुखी, कभी दो विवाह, तार्किक सृजनात्मक, विश्वासपात्र, गम्भीर, दयालु, सदाचारी, अपने वंश में प्रधान, जब-तब हास्य अथवा व्यंग्यवाणी का प्रयोग करनेवाला, कभी शीघ्र ही उत्तेजित हो जानेवाला, अपनी बात पर दृढ रहनेवाला, परोपकार में अपना भी हित भूल जानेवाला, आदर्शवादी, त्यागी, केवल प्रेम तथा शान्ति से वश में आनेवाला, मध्यम सन्तानवाला, सुन्दर पतिव्रता स्त्री से सुखी रहेगा। जातक शिक्षक, दार्शनिक, व्यवसायी, संन्यासी अथवा उपदेशक होगा। मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक एवं मीनलग्न वालों से मैत्री, व्यापार, विवाह विशेष सफल रहेगा। जातक जन्म से 10,14, 18, 31, 32, 67 वे वर्षों में कष्ट की सम्भव रहती है। भाग्योदय 18 वर्ष से 24 वर्ष के मध्य हो जाता है।
10 - मकर लग्न :
मकर लग्न का स्वामी शनि है। यह तमोगुणी, पृथ्वी तत्व कारक है अत: जातक दीर्घ कद का तथा सुन्दर नेत्र एवं मुखाकृति वाला होगा। जातक धर्माचार्य, त्यागी, नीतिशास्त्र को जानने वाला, लेखक तथा पर्यटक होगा। यह कम ही विवाहादि के प्रति आसक्ति रहता है। जातक सन्तोषी तीव्र स्वभाव, भीषहृदय, पाप में कभी रूचि तो कभी अरुचि, कफ वात से पीडित, साधुभक्त, परोपकार में धन खर्च करनेवाला, पुण्यशील, अतिथि प्रेमी, सर्वप्रिय, स्त्री से सुखी, पराक्रम से धन प्राप्त, अनेक व्यापार करनेवाला, धर्मात्मा नीतियुक्त, मननशील, सेवाभाव, आध्यात्मिक प्रवृत्ति का धैर्यवान, आत्मप्रशंसा से सन्तुष्ट, उदासीन, दार्शनिक तथा समाज के लिए आदर्श होता है। जातक को पुत्र की अपेक्षा कन्याएँ अधिक होती है। किन्तु यदि पंचम भाव गुरु से दृष्ट हो तो दो जातक के पुत्र होते हैं। पत्नी मनोहारिणी, सौभाग्यशीला, गुणी, सौम्य स्वभाव प्रशंसनीया होती है। जातक बुद्धि एवं विद्या से धन लाभ करता है ,किन्तु धनव्यय अनावश्यक कार्यों में कर देता है। जातक सेना, पुलिस, खनन, न्यायालय, भवन निर्माण सम्बन्धी कार्यो, तथा नौकरी (सेवा) करता है। जातक वृष, मिथुन, कन्या, तुला एवं कुम्भ लग्न वालो से मैत्री, साझेदारी के कार्य आदि से लाभ एवं श्रेष्ठ रहता है। जन्म से 3, 5, 27, 36, 57, 62 वे वर्षों में कष्ट रहने की संभावना रहती है। जातक का 32 से 35 वर्ष के मध्य भाग्योदय होता है। और जन्म का पूर्वार्द्ध संघर्षमय तथा उत्तरार्द्ध सुखमय व्यतीत होता है।
11 - कुम्भ लग्न :
कुम्भ लग्न का स्वामी शनि है। यह तमोगुणी तथा वायुतत्त्व का है। जातक कुछ बेडौल शरीर अथवा लम्बोदर, दीर्घ कद, चिकना चेहरा, आकर्षक व्यक्तित्व, त्यागी, परोपकारी, साधक, अद्भुत चरित्रवाला, स्थिर वृत्तिवाला, वात प्रकृतियुक्त, परद्रव्यापहारी, शत्रुप्रिय, मातृ पितृ सुखी, पिता महान्, चतुर, विद्वान्, राज्यपूज्य, सुखी, माननीय, संगीतप्रिय, गुणवान्, भाई एवं पुत्र से युक्त, स्त्रियों का इच्छुक, कभी विषम स्थिति में रहनेवाला, धार्मिक, देव, विप्र, गुरुभक्त, मनुष्यों का प्रेमी, प्रसिद्धि प्राप्त करनेवाला, स्पष्ट भाषी, किसी की बात को अथवा छोटी बात को भी न पचा पानेवाला तथा कठोर कर्मचारी होता है जातक सूक्ष्म बातों को जाननेवाला, मिलनसार स्वभाव, अनेक मित्रों से युक्त क्रान्तिकारी विचार, साहित्य में प्रेम रखनेवाला, संतान मध्यम, किसी एक संतान को कष्ट, किन्तु पुत्र एवं कन्या दोनों से सुखी, सन्तानें धार्मिक एवं बुद्धिमान् होंगी। पत्नी तीव्र स्वभाववाली, चंचला, कठोर स्वरवाली तथा स्थूला हो सकती है। धन लाभ सेवा, पुरुषार्थ, सरकार से सहायता प्राप्त, भूमि, वाहन किन्तु धनव्यय, सेवा सत्कार में, मुकदमें आदि में हो सकता है। जातक लेखक, वैज्ञानिक, विद्युत इन्जीनियर, वायु सेवा में कार्य करनेवाला होगा। वृष, मिथुन, कन्या, तुला एवं मकर लग्नवालों से मैत्री भाव सदैव अच्छा रहेगा। जन्म से 2, 28, 33, 48, 64 वें वर्षों में कष्ट की संभावना रहती है। भाग्योदय 35 से 38 वर्ष के मध्य होता है।
12 - मीन लग्न :
मीन लग्न का स्वामी गुरु है। यह सत्त्वगुणी जलतत्त्व कारक है। जातक छोटे अथवा मध्यम कद, छोटे नेत्र, मोटी शरीर, शान्त एवं विनयी होगा। जातक सेवक, आज्ञापालक, कवि, त्यागी, विद्वान, विजयी, योगी तथा सरल जीवन वाला होगा। पातक सुन्दर स्त्री का इच्छुक, श्रेष्ठ पण्डित, प्रचण्ड स्वभावयुक्त, पित्ताधिक प्रकृति, यशस्वी, धनाढ्य, बड़े परिवारवाला, भाग्यशाली, गुणवान्, प्रतापी, दानी, शूरवीर, ब्राह्मण, शास्त्र आदि का रक्षक, सरकार से सहायता या अधिकारियों का मित्र, नौकर चाकर से सुखी, जल विहार का इच्छुक, अधिक कामी, पाखण्डियों से दूर रहनेवाला, भक्ति, प्रेरणादायक, सामर्थ्यवान्, लज्जालु प्रकृति, सद्गृहस्य, सच्चे मित्रोंवाला, आस्तिक, धर्मपरायण, कभी कभी कुंडली में 2 विवाह के योग बन जाते है। साहित्य, संगीत, कला में रुचि रखनेवाला, विद्याव्यसनी, निर्णय करने में विलम्ब करनेवाला होगा। जातक को संक्रामक रोगों से बचना चाहिए। जातक की अधिक संतान तथा कन्या अधिक पुत्र की संख्या कम के योग रहते है। पत्नी रूपवती, सौभाग्यशीला, नीतियुक्ता, प्रियभाषिणी तथा घृष्ट होगी। धन जल द्वारा, जलज पदार्थ से, विदेश से अथवा सरकार, राजसेवा से होगा तथा धनखर्च तपस्वियों, साधु सज्जनों की सेवा में होगा। जातक को मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक एवं धनु लग्नवालों के साथ मैत्री, विवाह तथा व्यापारादि सदैव शुभदायक रहेगा। जातक को जन्म से 1, 8, 13, 36, 48 वें वर्षों में कष्ट की संभावना रहती है। तथा भाग्योदय 20 से 24 वर्ष के मध्य होता है।
धन्यवाद,
प्रणाम, ज्योतिर्विद एस एस रावत
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