28 नक्षत्र के नाम और ज्ञान - विज्ञान, नक्षत्र के स्वामी, नक्षत्र के गुण और भाग्योदय वर्ष ( भाग - 1 )
नक्षत्र ज्ञान -विज्ञान :
सौरमंडल में तारों को ही नक्षत्र कहते हैं। सामान्यतः ये समूह में रहते है। पुराणों में अनेक जानकारी इनके बारे में मिलती है और विभिन्न मान्यता और कथन विस्तार से समझाया गया है। जैसे : भागवत पुराण, ऋग्वेद, अथर्ववेद आदि में शामिल है। प्रमुखतः नक्षत्र को सूचीबद्ध क्रम एवं विस्तार से व्याख्या अथर्ववेद, शतपथ ब्राह्मण ( शुक्ल यजुर्वेद का ब्राह्मणग्रन्थ ) आचार्य लगध मुनि का वेदांग ज्योतिष एक प्राचीन ज्योतिष ग्रन्थ है, और लगध के वेदांग ज्योतिष में नक्षत्र की जानकारी मिलती है। किन्तु वर्तमान में लगध मुनि के कालखंड के बारे में सटीक प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है, विद्वानों में मतान्तर देखने को मिलता है।
नक्षत्र परिचय :
नक्षत्रों के उदगम और परिचय के अनेक लेख, व्याख्या आपको पढ़ने को मिल जायेगा। किन्तु यहाँ विषय ज्योतिषशास्त्र से सम्बंधित है, इसलिए सीधे इसी विषय में जानकारी देना चाहूंगा। जैसा की आपने मेरे पिछले लेख में राशियों और लग्नो के बारे में पढ़ा है कि सौरमंडल ( 360 अंश ) को 12 ( राशि संख्या या लग्न संख्या ) से विभक्त कर प्राप्त 30 अंश एक राशि अथवा लग्न कहलाता है। ठीक उसी तरह सौरमंडल ( 360 अंश ) को 27 ( नक्षत्र संख्या ) से विभक्त कर प्राप्त 13 अंश, 20 कला एक नक्षत्र कहलाता है। जिस प्रकार लग्न गुणफल, राशि गुणफल को परिभाषित किया गया है, ठीक उसी प्रकार जन्म नक्षत्र के गुणफल को भी फलित ज्योतिष में बताया जाता है।
1 -अश्विन नक्षत्र :
यह दो ताराओं से मिलकर बना है, इसके स्वामी अश्वनी कुमार है, अश्वनी कुमार देवता है और ये जुड़वाँ भाई है, संभवतः इनके के नाम पर इसे अश्वनी नक्षत्र कहा गया है। अश्वनी नक्षत्र का जातक सेवा कार्य से उन्नति करने वाला, अतियंत विनीत सत्यवादी, सर्वसुख, संम्पन्न, सुन्दर आकृति, थोड़ा स्थूल शरीर वाला, धनी लोगों का प्रिय, आभूषण प्रिय, बुद्धिमान, चिकित्सक, अध्यापक होता है। भाग्योदय 28 वर्ष उपरांत।
2 - भरणी नक्षत्र :
यह नक्षत्र आकाश में अश्वनी के समीप एक त्रिकोण में 3 ताराओं के समूह से निर्मित है। इसके स्वामी यमराज है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाला जातक लोकापवाद से अपयश प्राप्त करने वाला, चंचल, निरोगी ,कुटिल स्वभाव किसी अंग में विकलता, भाग्य पर भरोषा रखने वाला, जन्म स्थान से दूर रहने वाला, राजनीती और अनिश्चित विचारों वाला, शिक्षक, वकील, पुलिस सेवा में नौकरी के योग बनते है। भाग्योदय 30 वर्ष उपरांत।
3 - कृतिका नक्षत्र :
यह नक्षत्र 6 ताराओं के मिलन से बना है इसके स्वामी अग्निदेव है। इसकी आकृति तीर के पिछले हिस्से के समान है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक कृपालु, व्यर्थ घूमने वाला, कटुभाषी,तीखा पसंद, विपरीत लिंग / जेंडर से मित्रता, तांत्रिककर्म, मुखाकृति और कपाल चौड़ा हो सकता है। सामान्य शिक्षा ही प्राप्त करते है, यदि ये शिक्षा अधिक कर लें तो ये बैंक रेलवे बाणिज्य से धन लाभ करते है। भाग्योदय 24 वर्ष से 32 वर्ष के मध्य।
4 - रोहिणी नक्षत्र :
पांच तारा मंडल से बना हुआ है इस नक्षत्र के स्वामी ब्रह्मा जी है। इस नक्षत्र में जन्मे जातक कुशल वाक्पटु, गूढ़ विषय को जानने वाला, पवित्रता युक्त उत्तम स्मरण शक्ति वाला दृढ़ प्रतिज्ञा बुद्धिमान, विपरीत लिंग / जेंडर से मित्रता, बड़ी आँखों, छोटा कद, स्वस्थ काया, चौड़े कंधे वाला होता है। प्रतिशोध ही भावना जीवन परियन्त रहती है। इंजीनियर, कम्प्यूटर, कलाकार, गायन में होते है। भाग्योदय 30 से 36 वर्ष के मध्य।
5 - मृगशिरा नक्षत्र :
तीन ताराओं के मेल से बना मृगशिरा नक्षत्र का स्वामी चंद्र है इस नक्षत्र का जातक स्वस्थ शरीर चंचल, कार्य कुशल, अहंकारी, विलाषी, कोमलचित रोगी, सद्कर्मी, यदा -कदा, स्वार्थी, अभिमानी, धन, पुत्र, मित्र, स्त्री से सुखी उच्च शिक्षा से युक्त। वकालत, न्यायधीश, प्रशासक, वित्तीय सलाहकार के क्षेत्र में कार्य कर सकता है। भाग्योदय 28 वर्ष उपरांत। कठिन वर्ष 50 से 54 वर्ष के मध्य।
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