28 नक्षत्र के नाम और ज्ञान - विज्ञान, नक्षत्र के स्वामी, नक्षत्र के गुण और भाग्योदय वर्ष ( भाग - 2 )
भाग 1 से आगे ..................
11 - पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र :
चार ताराओं से निर्मित, दो-दो ताराओं का जोड़ा चारपायी के आकार में बना हुआ इस नक्षत्र के स्वामी वैदिक भग देवता हैं। इस नक्षत्र में जन्मे जातक विद्वान्, गम्भीर, धनी, स्त्रीप्रिय, सुखी, विद्वानों से मान्य, बहादुर, दानी, चतुर, बहुत लोगों को जीविका देनेवाले तथा कठोर हृदय वाले होते है। अध्यापक योगी, लेखक, कवि, प्रबन्धक अथवा प्रशासनिक अधिकारी होते हैं। जातक का भाग्योदय 26 वर्ष से 30 के मध्य होता है।
12 - उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र :
दो ताराओं से निर्मित उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के देवता अर्थमा हैं। इस नक्षत्र में जन्मे जातक सहनशील, शूरवीर, कोमल हृदय तथा कोमल बात करनेवाले, शस्त्र विद्या में निपुण, योद्धा, सर्वसाधारण जनों से भी प्रिय व्यवहार करनेवाले, दयालु, शीलवान्, मंत्री, भोगी, सुन्दर, मधुरभाषी, संगीतप्रिय, काव्यप्रेमी तथा धन, सन्तान आदि से सुखी रहते हैं। जातक अधिकारी, डायरेक्टर, अध्यक्ष, इन्जीनियर, प्रधानाचार्य अथवा शुद्ध 'राजनीतिज्ञ होता है। भाग्योदय 30 वर्ष से 36 वर्ष के मध्य होता है।
13 - हस्त नक्षत्र :
पाँच ताराओं से निर्मित, हाथ के पंजे जैसी आकृतिवाले हस्त नक्षत्र के स्वामी सूर्य हैं। इस नक्षत्र में उत्पन्न जातक दाता, मनस्वी, यशस्वी, देव ब्राह्मण, गुरु के भक्त, सम्पत्तिवान्, मद्यपायी, विपरीत मित्रता ( महिला / पुरुष ) साहसी, धृष्ट, प्रभावशाली, कारीगरी द्वारा धनार्जन करनेवाले होते हैं। इस नक्षत्र में जन्मा व्यक्ति इन्जीनियर, दूर संचार विभाग, वकील, राजदूत, अथवा प्रशासनिक अधिकारी होते हैं। इनका भाग्योदय 28 वर्ष से 32 वर्ष की उम्र से होता है।
14 - चित्रा नक्षत्र :
अनेक ताराओं से बने, चित्रा नक्षत्र के स्वामी त्वष्टा देवता है। जातक सुन्दर नेत्रवाला, सुन्दर वस्त्र, पोशाक एवं सुगन्धित पदार्थों को उपभोग करनेवाला, अपने मत को गुप्त रखनेवाला, चतुर, शीलवान्, धनाढ्य, प्रतिष्ठित, रूपवान्, चित्रकारी अथवा ज्योतिष या गणित शास्त्र का ज्ञाता, व्याकरणादि शास्त्रों को जाननेवाला, स्त्री. पुत्रों के सुख से युक्त, देव ब्राह्मण भक्त, शत्रु विजयी तथा बुद्धिमान होता है। जातक प्रायः कर्मकाण्डी, वैद्य, चिकित्सक, उद्योग विभाग, भवन निर्माण तथा आधुनिक नवीन खोजों के क्षेत्र में कार्य करनेवाले अथवा वैज्ञानिक होते हैं। भाग्योदय प्रायः विलम्ब से होता है। 36 वर्ष से 42 के मध्य पूर्ण भाग्य उदित होता है।
15 - स्वाती नक्षत्र :
दो तारा मोतियों के आकार जैसा प्रतीत होने वाला इस नक्षत्र के स्वामी वायु देवता हैं। स्वाति नक्षत्र में उत्पन्न जातक कृपण पण्डित, धार्मिक, स्त्रीप्रेमी/ सुशील देवताओं का भक्त, कामदेव के समान सुन्दर, प्रसन्नचित, जितेन्द्रिय, लज्जाशील, वाणिज्य प्रेमी प्रियभाषी, भोगी, धनी, एकान्तप्रेमी, इस नक्षत्र के जातक प्रायः नशीले पदार्थ के व्यसनी, , परिवहन विभाग में, विद्युत विभाग में, वकील या इन्जीनियर होते हैं। भाग्योदय 27 वर्ष से 30 वर्ष के मध्य होता है।
16 - विशाखा नक्षत्र :
चार ताराओं से निर्मित विशाखा नक्षत्र के स्वामी इन्द्र और अग्नि दोनों है। इस नक्षत्र जन्मे व्यक्ति दूसरे मनुष्यों को कष्ट देनेवाले लोभी, वाक्पटु गर्वित, कोधी, शत्रु विजयी, विपरीत ( महिला, पुरुष ) से आकर्षण, सुन्दर कान्तियुक्त, सुन्दर नेत्र एवं दांतोंवाला, जन्म-स्थान से दूर रहने का अभिलाषी, क्रम-विक्रय में चतुर, के मर्म को जाननेवाला तथा प्रायः परिवर्तनशील मित्र होता है। जातक सरकारी, जल से सम्बंधित कार्य, जलमार्ग, पत्रकार, सलाहकार, हवाई मार्ग, बैंक, कोर्ट आदि विभाग में कार्य करता है। भाग्योदय 24 से 30 वर्ष के मध्य होता है।
17 - अनुराधा नक्षत्र :
चार ताराओं से निर्मित अनुराधा नक्षत्र के स्वामी मित्र देवता हैं। इस नक्षत्र में उत्पन्न जातक सुन्दर कान्तिमान्, यशस्वी, उत्सवप्रिय, शत्रुओं का दमन करनेवाला, अनेक कलाओं में चतुर, सम्पत्तिवान्, वाल्यावस्था से घर से दूर रहनेवाला भ्रमणशील, प्रियभाषी, सुखी, पूज्य, ठोस शरीरवाला, हास्यप्रिय, देर तक भूख न सहन करनेवाला, सर्वदा परिवार की चिन्ता करनेवाला होता है। इस नक्षत्र के जातक प्राय: भूमि के भीतर अन्वेषण करने, चिकित्साशास्त्र में, रेलवे विभाग में, जेल में कार्य अथवा तरल पदार्थों के विक्रेता होते हैं। 28 से 30 वर्ष के मध्य जातक का भाग्योदय होता है।
18 - ज्येष्ठा नक्षत्र :
तीन तारों से निर्मित ज्येष्ठा नक्षत्र के स्वामी इन्द्र है। इस नक्षत्र में उत्पन्न जातक स्फूर्तिवान् सदैव किसी-न-किसी कार्य में सक्रिय रहने वाले, अतिक्रोधी परन्तु सन्तोषी, धर्म में आस्था, न्याय प्रिय तथा विपरीत (पुरुष/ महिला ) से मित्रता, सन्तान युक्त, कलह में लिप्त, षडयन्त्रकारी, काव्य में अभिरूचि रखने वाले तथा सुन्दर नेत्र एवं मुख वाले होते हैं ये जातक प्राय: प्रेस सम्बन्धी कार्य करने वाले, टंकणकार, लेखा विभाग, जीवन बीमा विभाग, वैज्ञानिक अथवा गणितज्ञ होते हैं। इनका भाग्योदय से 35 वर्ष के उपरान्त होता है।
19 - मूल नक्षत्र :
दो प्रधान तारों और 9 छोटे तारों से मिलकर निर्मित मूल नक्षत्र का स्वामी राक्षस है। इस नक्षत्र में उत्पन्न जातक अभिमानी, भोगी, सुखी, दृढप्रतिज्ञ, हिंसक, वाक्पटु, ईर्ष्यालु, अनेक प्रकार की कारीगरी, औषधि निर्माता, बाग, जलाशय का निर्माता, वाहन चलाने का शौकीन, शत्रुओं का सहारक तथा बुद्धिमान होता है। शिक्षक, धर्मगुरु अथवा कर्मकांडी कार्य, धर्म का विशेषज्ञ, प्रवचनकर्ता, राजनीति में अभिरुचि ,चुना/ पत्थर के कार्य, सरकारी कर्मचारी, अधिकारी, गुप्तचर विभाग में अथवा अनुवादक होता है। इसका भाग्योदय 20 वर्ष से 24 वर्ष की अवस्था से प्रारम्भ होता है।
20 - पूर्वाषाढ़ नक्षत्र :
चार ताराओं से निर्मित पूर्वापात नक्षत्र के स्वामी जल देवता है। इस नक्षत्र का जातक अत्यन्त स्वाभिमानी, कुलदीपक, अच्छे मित्राला चतुर सुन्दरी स्त्री का पति, बुद्धिमान्, सुखी एवं शान्त स्वभाववाला, सर्वसाधारण में लोकप्रिय, शत्रुओं को भय देनेवाला, परोपकारी, प्रत्येक कार्य मन से करने वाला, ख्यातिप्राप्त करनेवाला तथा सभी विषयों का विलक्षण पण्डित होता है। जातक प्राय: रेल, बिजली विभाग, किसी संस्था का निर्माता, स्कूल, कालेज चलानेवाला, सामाजिक कार्यकर्ता, आकाशवाणी दूरदर्शन, संगीत, कोर्ट अथवा न्यायाधीश आदि होता है। इसका भाग्योदय 26 वर्ष के उपरान्त होता है।
21- उत्तराषाढ़ नक्षत्र :
चार ताराओं से निर्मित उत्तराषाढ़ के स्वामी विश्वेदेवता है। इस नक्षत्र में उत्पन्न जातक अत्यन्त विनम्र, धार्मिक, अत्यधिक मित्रों से युक्त, उपकार को माननेवाला, सर्वजन प्रिय, लोगों से सम्मान प्राप्त करनेवाला, शान्त प्रकृतिवाला, सुखी, विद्वान् धनी, बुद्धिमान्, अच्छे सन्तानों से युक्त, प्रत्येक कार्यों में सफलता प्राप्त करनेवाला, समझदार होता हुआ भी कुसंगति में लगा रहने वाला स्त्रियों का अनुकरण करनेवाला, किन्तु उत्तम मार्ग द्वारा धनार्जन करनेवाला, सर्वत्र विजय प्राप्त करनेवाला होता है। इस नक्षत्र जन्मे जातक राजनेता, पुलिस विभाग, सेना, टैक्स विभाग, वित्त विभाग, पुरातत्वविद या जल से सम्बन्धित कार्य करने वाला होता है। भाग्योदय 32 वर्ष के आसपास होता है।
22 - श्रवण नक्षत्र :
तीन ताराओं से निर्मित श्रवण नक्षत्र के स्वामी विष्णु हैं। इस नक्षत्र में उत्पन्न जातक शोभायुक्त, विद्वान, धनी, प्रसिद्ध, ईश्वर तथा गुरुजनों का भक्त धार्मिक, अधिक सन्तानयुक्त, तीर्थयात्रा में अभिरुचि, लेखक, उदारचितवाली स्त्री का पति परोपकारी, सद्विवेकी, किये गये उपकार को माननेवाला, सुन्दर, दानी, सभी गुणों से युक्त, शास्त्रों के अध्ययन में लगा हुआ होता है। इस नक्षत्र के जातक प्रायः उच्च पदाधिकारी, उच्च प्रशासक इन्जीनियर, सिंचाई विभाग, डॉक्टर, रत्न विशेषज्ञ, गोताखोर आदि में कार्यरत रहता है। इनका भाग्योदय 25 वर्ष मे 28 वर्ष के मध्य होता है।
23 - धनिष्ठानक्षत्र :
चार ताराओं से निर्मित धनिष्ठा नक्षत्र के स्वामी वसुदेवता है। इसमें उत्पन्न जातक संगीत का प्रेमी, परिवार में मान्य, सुन्दर वस्त्राभूषण धारण करनेवाला, अनेक व्यक्तियों का अधिपति श्रे आचरणवाला, व्यवहार कुशल, बलवान्, दयालु अत्यधिक प्रतिष्ठावाला, सहमी संगीतप्रियः पुस्तकादि का प्रकाशन, कफ प्रकृति का होता है। कृषि सम्बन्धी कार्य, व्यापार अथवा खेल जगत में प्रसिद्धि प्राप्त करनेवाला होता है। धनिष्ठा नक्षत्र के जातक का भाग्योदय 28 से 32 के मध्य होता है।
24 - शतभिषा नक्षत्र :
अनेक ताराओं से मिलकर शतभिषा नक्षत्र बना है इसके स्वामी देवता है। इस नक्षत्र में उत्पन्न जातक कृपण जुआ, सट्टा लाटरी आदि व्यसनों में फंसा हुआ, शत्रु विजयी, साहसी किन्तु अशान्त चित्त, बिना विचारे कार्य करनेवाला, निर्भीक, समय का ठीक ज्ञान रहनेवाला ज्योतिषी अत्यधिक वाचाल, कभी कोई मंदिरा अथवा मांस का व्यापारी, प्रभावी, विपरीत ( पुरुष / महिला ) से मित्रता, देश-देशान्तरका भ्रमण करनेवाला, शीत से डरनेवाला अथवा कफ प्रकृति कठोर हृदय का होता है। यह आश्चर्यजनक कार्यों का ज्ञाता, मन्त्र-तन्त्र विशेषज्ञ, खगोलशास्त्र का ज्ञाता, विज्ञान की नवीन खोज करनेवाला अथवा भूगर्भविता होता है। इस जातक का भाग्योदय 25 वर्ष से 32 वर्ष के मध्य होता है।
25 - पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र :
चार ताराओं से निर्मित विशेष प्रकाशवाले दो तारेवाला पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के स्वामी अजैकपाद देवता है। इस नक्षत्र में उत्पन्न जातक मानसिक नष्टवाले, चतुर, धनाढ्य किन्तु कृपण, स्त्रियों के वश में रहनेवाले, बोलने में कटु एवं स्पष्टवादी, धृष्ट किन्तु डरपोक हृदय, निर्बल किन्तु अच्छे मनोवृत्तिवाले, कभी अपने विचारों के विरुद्ध कार्य करनेवाले, सभी कलाओं में निपुण, अधिक सोनेवाले, निरर्थक भ्रमण करनेवाले, बुद्धिमान् तथा प्राण होते हैं। पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के अध्यापक आयुर्वेद तथा धर्मशास्त्र के ज्ञाता, फिल्म निर्माता, गुप्तचर विभाग, आयकर विभाग, सेना में कार्यरत होते हैं। इनका भाग्योदय 22 वर्ष से 28 वर्ष के मध्य होता है।
26 - उत्तराभाद्रपद नक्षत्र :
अनेक ताराओं से निर्मित उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के स्वामी अहिर्बुध्न्य देवता है। इस नक्षण में उत्पन्न होने वाले जातक गौरव सत्त्वगुणः प्रधान धर्माता, साहसी, अपने कुल में श्रेष्ठ, मध्यम कदवाले, सत्कर्म करनेवाले, धनाढ्य, अभिमानी, मृदुभाषी, सन्तान सुख सम्पन्न, गुणीत, सुकर्म, सज्जनों द्वारा माननीय तथा सुदर्शन होता है। इस नक्षत्र में जन्मे जातक अस्थि विशेषज्ञ, सर्जन, किसी विषय के विशेषज्ञ, शिक्षा विभाग के अधिकारी आदि है। इन जातको का भाग्योदय 18 से 24 वर्ष के मध्य होता है।
27 - रेवती नक्षत्र :
३२ ताराओं से निर्मित रेवती नक्षत्र के स्वामी पूषा देवता हैं। इस नक्षत्र में उत्पन्न जातक सर्वांङ्ग पुष्ट, साहसी, सर्वजनप्रिय, पवित्र, प्रत्येक कार्य में दक्ष, शूरवीर पण्डित्ययुक्त, प्रतिभा, धन-धान्य से सम्पन्न, अच्छे स्वभाववाला, जितेन्द्रिय सद्मार्ग से द्रव्यार्जन करनेवाला, तीक्ष्णबुद्धिवाला, कामातुर, प्रेमी, प्रेम निमग्न, सुन्दर, चतुर, सलाह देने योग्य, पुत्र, मित्र, कुटुम्ब से युक्त, चिरस्थायी लक्ष्मीवान् भोगी कुशाग्रबुद्धि, विद्वान्, सद्विचारशील तथा सुन्दर चिह्नयुक्त शरीरवाला होता है। इस नक्षत्र के जातक प्राय, शिक्षक, धर्मगुरु, वैद्य, सम्पादक, लेखक, धार्मिक, पत्रकार, न्यायाधीश, ज्योतिषी, वैयाकरण, वेदज्ञ अथवा संस्कार सम्पन्न करानेवाले होते हैं। इन जातकों का भाग्योदय 27 वर्ष से 32 वर्ष के मध्य होता है। कभी- कभी विलंब से भी हो सकता है।
28 - अभिजीत नक्षत्र :
27 नक्षत्र के अतिरिक्त यह नक्षत्र है अथार्त इसको 28वें नक्षत्र में लिया जाता है। अभिजीत नक्षत्र के स्वामी भगवान ब्रह्मा हैं। यह सौर मंडल या सूर्य की दिशा में यात्रा करता है। अभिजीत नक्षत्र में जन्म लेने वाला जातक एक स्नेही व्यक्ति होता है। ये अपने सरल और मददगार स्वभाव के लिए सभी को पसंद आते हैं। साथ ही, चूंकि ये लोग बहुत सकारात्मक और आशावादी होते हैं, इसलिए ये किसी भी तरह से रुकावटों को हतोत्साहित नहीं होने देते हैं। लगभग मनोनुकूल वस्तु , विषय, क्षेत्र, कार्य, सुख, वैभव युक्त इनका जीवन रहता है। भाग्योदय 24 वर्ष या उसके उपरांत हो जाता है।
तैत्तिरीय संहिता और अथर्ववेद में २८ नक्षत्रों का ज़िक्र है जिनमें अभिजित भी एक है। भचक्र में इसे सबसे अधोवर्ती नक्षत्र माना गया है। २७ नक्षत्रों के वर्गीकरण में इसे उत्तराषाढ़ और श्रवण नक्षत्रों के बीच प्रक्षेपित किया जाता है।
अभिजित नक्षत्र उत्तरषाडा नक्षत्र का चतुर्थ एवं श्रवण नक्षत्र का प्रथम पञ्चदशांश से मिलकर बना है लगभग इस नक्षत्र का मान 19 घटी होता है। अतः यह मकर राशि मे 6अंश 40 कला से 10 अंश 53 कला तक रहता है । चन्द्रमा के उपरोक्त भोगांश मे स्थिति होने पर अभिजित नक्षत्र माना जाता है।
धन्यवाद,
प्रणाम,🙏🙏🙏
ज्योतिर्विद, एस एस रावत
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