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मार्च, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

धन की उपयोगिता कब होती है ? धन को महत्त्व कब देना चाहिए ?

धन की आवश्यकता जीवन परियन्त रहती है, लेकिन समय इसको निर्धारित करता है समय का विशेष महत्त्व होता है, यही कारण है ख़राब समय में धन संयम से व्यय और अच्छे समय में धन व्यय के साथ धन संचय भी करना चाहिए, तभी संचित धन भविष्य में अनेक परिस्थितियों को सुगमता से सुव्यवस्थित समाधान कर सकता है।  इस सन्दर्भ में मुझे एक कहानी स्मरण हो रही है, आइये हम कहानी के माध्यम से धन के महत्त्व को समझते है। बात बहुत पुरानी है उन दिनों दूर संचार ( फोन ) , सड़क, गाड़ी आदि का निर्माण नहीं हुआ था। छुट -पुट, दूर-दराज में व्पापारी होते थे, अनेक गाँवों के ग्राहक उधार में सामान खरीदकर ले जाते थे। व्यापारी का धन उधार में चले जाने से दुकान में सामान की कमी भी होने लग चुकी थी, तब व्यापारी अनेक गांव गांव घूम कर महीने दो महीने के बाद उधार धन को लेकर पुनः दुकान को सुचार रूप से चलाता था। इस बार भी ऐसा ही हुआ और व्यापारी अपने पुत्र को साथ ले जाने की सोचा, क्योंकि इस बार उसका पुत्र पढाई करके दूसरे राज्य से घर लौट आया था। व्यापारी का उद्देश्य यह भी था कि पुत्र, व्यापार - धंधा को भलीभाँति समझ ले, और अपने ग्राहकों की...

जीवन में सारे रास्ते बंद है ? समाधान दिखाई नहीं दे रहा है ? :

  कभी कभी जीवन में सभी रास्ते बंद हो जाते है। ऐसे समय में क्या करना चाहिए। यह एक आम प्रश्न है आइये इस विषय में चित चिंतन कर समझने का प्रयास करते है। यदि जीवन के हर रास्ते बंद हो चुके है तो आप भी वही करिये जैसा आपको मिल रहा है। आप भी सभी लोगों का, विषय, वस्तु आदि का रास्ता बंद कर दीजिए अथार्त जैसा मिला वैसा ही दे दीजिए। पुनः सरलता से उक्त सभी तथ्यों को समझते है। सर्व प्रथम आप अपने अतीत को भूल जाइये,  उन लोगों को छोड़ दीजिए जो परोक्ष, अपरोक्ष रूप से उत्तरदायी थे, स्वयं की उन आदतों, व्यवहार, दुर्रव्यसन सभी का त्याग कर दीजिए और अब शहर को भी छोड़ कर अन्य शहर में अकेले ही चले जाइये। हालांकि यह कठिन जरूर है, लेकिन असंभव नहीं, यदि बात कठिनाई की हो तो पुनः याद रखिये कठिनाई तो वैसे भी है और सभी रास्ते बंद भी हो चुके है। परिणाम भी सामने में दिखाई दे रहा है। अतः आप आगे बढिये। एक नई शुरुआत करिये, यह आपके लिए बहुत उपयोगी, उचित, उपयुक्त रहेगा। अब आप एक नई जगह जाकर, जीवन जीना शुरू कर दीजिए। नया कार्य शुरू कर दीजिए, नये मित्र बनाना शुरू कर दीजिए, नए विचार, नई आदत बनायें, व्यस्त रहिए अथार्त सब कु...

भारतीय वैदिक ज्योतिषशास्त्र : ( गणित ) भाग - ३५

सम्पूर्ण भाव साधन : जन्म लग्न में ६ राशि जोड़ने पर सप्तम लग्न , दशम लग्न में ६ राशि जोड़ने पर चतुर्थ लग्न होता है। चतुर्थ लग्न में प्रथम लग्न घटाने पर शेष को ६ से भाग देने पर लब्ध फल को लग्न में जोड़ने पर लग्न की संधि पुनः लग्न के संधि में लब्ध जोड़ने पर द्वितीय भाव , द्वितीय भाव में लब्ध जोड़ने पर द्वितीय संधि , द्वितीय संधि में लब्ध जोड़ने पर तृतीय भाव ,तृतीय भाव में लब्ध जोड़ने पर तृतीय भाव संधि , तृतीय भाव संधि में लब्ध जोड़ने पर चतुर्थ भाव जो पूर्व साधित चतुर्थ भाव के समान / तुल्य होगा। पुनः उपरोक्त प्राप्त लब्धि को ३० अंश में घटाकर शेष को चतुर्थ भाव में जोड़ने पर चतुर्थ भाव संधि, चतुर्थ भाव संधि में शेष जोड़कर पंचम भाव , पंचम भाव में शेष जोड़कर पंचम भाव संधि , पंचम भाव संधि में शेष जोड़कर कर षष्ट भाव , षष्ट भाव में शेष जोड़कर षष्ट भाव संधि , षष्ट भाव संधि में शेष जोड़कर सप्तम भाव जो की पूर्व में साधित सप्तम भाव के समान / तुल्य होगा। पुनः लग्न में जोड़ने पर सप्तम भाव , लग्न की संधि में ६ राशि जोड़ने पर सप्तम भाव संधि , द्वितीय भाव में ६ राशि जोड़ने पर अष्टम ...

क्या भय ख़राब होता है ? भय क्यों होता है ?

  भय कब होता है या भय से पहले क्या होता है? क्या भय हमेशा ख़राब ही होता है ? आइये जानते है। किस प्रकार भय व्याप्त होता है। और किस प्रकार इसके अनेक जन्म होते है। सीधा और एक बात में उत्तर दूँ, तो  बिना बोध के भय नहीं हो सकता है। जैसे : सरकार के नियम तोड़ने का बोध होने के उपरांत सजा का भय अथार्त भय अच्छा है। कानून की अवहेलना का बोध होने के उपरांत कोर्ट से सजा का भय, यह भी अच्छा है। फेल हो जाने का बोध होने के उपरांत माता पिता का भय, भय अच्छा है। बेरोज़गारी का बोध होने के उपरांत गरीबी का भय यह भय भी अच्छा है।  भय कैसे भयभीत में परिवर्तित होता है। आइये इसको जानते है। उक्त घटना के बाद परिणाम से उत्त्पन्न भय ही भयभीत में परिवर्तित हो जाता है। जैसे :सरकार के नियम तोड़ने के उपरांत प्राप्त दंड से भयभीत, कानून तोड़ने के उपरांत प्राप्त दंड से  भयभीत, फेल हो जाने के उपरांत प्राप्त दंड से भयभीत, बेरोजगार रह जाने के उपरांत प्राप्त गरीबी से भयभीत आदि, आदि।  पुनः उक्त घटना क्रम के बाद अनेक दृष्टिकोण, मनोवृत्ति उत्पन्न हो जाती है। १- कर्ता : ( कार्य करने वाला ) २- करण : ( जिसके द्वारा ...

क्या संगत, संकेत, समय और कर्म में कोई सम्बन्ध है ?

  संगत : संगत का हमारे जीवन में बहुत गहरा प्रभाव होता है, हम सभी इस विषय में कुछ ना कुछ जानते है, सुनते है। कोई भी व्यक्ति जन्म से अच्छा या बुरा नहीं होता है। समाज में रह कर ही वह भला या बुरा बनता है। अच्छा संगत अच्छे परिणाम, बुरा  संगत बुरे परिणाम यह भी जानते है। मिट्टी जैसी संगत में होती है, ठीक उसी प्रकार के वातावरण में उसको जीने के लिए बाध्य होना होता है। और यश - अपयश का भी उसको सामना करना ही पड़ता है। जब मिट्टी  कुम्हार के संगत में आती है,  कुम्हार मिट्टी का घड़ा, दिया, कुल्हड़, सुराही आदि निर्माण कर देते है।और यदि मिट्टी किसी मूर्तिकार के संगत में आती है, तब मिट्टी से नाना प्रकार की मूर्तियाँ बनाई जाती है। तथा इसी क्रम में भवन, सड़क आदि। अथार्त जैसा संगत, वैसा  रंग - रूप, जीवन, स्वभाव, आचरण, विद्यमान हो जाते है। इसलिए संगत "उचित उपयुक्त" हो  इसका पूर्णतः विचार करना चाहिए। संगत से कर्म को प्रेरणा मिलती है।  सठ सुधरहिं सत्संगति पाई। पारस परस कुधातु सुहाई।  बिधि बस सुजन कुसंगत परहीं। फनि मनि सम निज गुन अनुसरहीं । अथार्त : दुष्ट भी सत्संगति पाकर सु...

मेरा जीवन - जीवन दर्शन :

यह मेरे निजी जीवन से आधारित है, इसमें किसी घटना का उल्लेख नहीं किया गया है। स्वयं अथवा किसी व्यक्ति विशेष को दुःख पहुँचाना मेरा उद्देश्य नहीं है। मैं इन सभी घटनाओं को "जीवन दर्शन" का नाम देना चाहूँगा। आप इन सभी बातों को कितना महत्व देते है, यह मैं आप पर छोड़ता हूँ।  जब हम किसी वस्तु, व्यक्ति या किसी घटना के लिए  उत्तरदायी हों, यह जिम्मेदारी कहलाती है। जिम्मेदारी के लिए जब उपयुक्त साधन नहीं होते, तब संघर्ष का प्रारम्भ होता है। संघर्ष करते रहने पर भी जिम्मेदारी के मनोनुकूल सफलता नहीं मिल पाती तब घोर विपत्ति जन्म ले लेती है। इस विषम परिस्थिति में आवश्यकता, आकांक्षा, भरोसा सबसे पहले परिवार, मित्र, समाज आदि से होती है। जब यह सहयोग उनसे नहीं मिलता, जिसकी हम ने अपेक्षा की थी तब जीवन दर्शन के "प्रथम चरण" का उदगम हो जाता है।  उदाहरण : किसान खेत में बीज बोकर बीज को मिट्टी से दबा देते है। उस बीज को अब साँस लेना तक कठिन हो जाता है। एक अजीव छटपटाहट से जूझता रहता है। किन्तु उसको भी पता नहीं रहता कि वह सृष्टि क्रम का एक प्रमुख पात्र है।  पुनः हमारे अन्तः मन में एक विचार जन्म लेता ह...

भारतीय वैदिक ज्योतिषशास्त्र : ( गणित ) भाग - ३४

                                                दशम लग्न साधन :                                               उदाहरण :      सायन सूर्य ३ /८ / ४० / २४ , पूर्व नत ३ / ४६ / ३० पूर्व नत होने के कारण दशम लग्न भुक्त प्रकार से किया जायेगा। सायन कर्क राशि का है इसलिए कर्क राशि संख्या में सायन सूर्य के भुक्तांश को घटाएंगे।  ०४ / ०० / ०० / ०० - ०३ / ०८ / ४० / २४ = ०८ / ४० / २४ को कर्क राशि के लंकोदयमान से गुणा करेंगे।  ०८ / ४० / २४ गुणा ३२३ कर सवर्णित करके प्राप्त लब्धि २८०१ / २९ / १२ को अब ३० भाग देंगे ९३ / २२ / ५८ भुक्त पल।  पूर्व नत ३ / ४६ / ३० गुणा ६० = २२६ / ३० / ००  नत पल        २२६ / ३० / ००  भुक्त पल   - ९३ / २२ / ५८  शेष             १३२ / ०७ / ०२...

सभी रिश्तों से भिन्न अदृश्य रिश्ते :

आप सभी रिश्ते जानते है, पहचानते है, बनाते है, निभाते है, इसलिए अधिक इस पर चर्चा नहीं करूँगा। रिश्ते अनेक प्रकार के होते है।  जैसे रक्त के रिश्ते, शादी आधारित रिश्तेदारी के रिश्ते, सामाजिक रिश्ते, सहयोगी, सहकर्मी के रिश्ते आदि किन्तु आज हम आपको एक नया रिश्ते के बारे में जानकारी देने का प्रयास  करेंगे। उस रिश्ते का नाम है ओरा ( आभा ) का रिश्ता, मेरे अनुभव में यह रिश्ता सबसे अधिक जीवन जीने योग्य रिश्ता होगा। उचित उपयुक्त होगा। हम सब ने अक्सर लोगों द्वारा किसी साधु, संत, बाबा, ज्ञानी, विद्वान व्यक्ति को यह कहते सुना है कि आपके श्रीचरण हमारे घर में, हमारे झोपड़ी में, हमारे कुटिया में, हमारे गरीब खाने में पड़ जाएं तो हम धन्य हो जाएँगे। यह क्या है ? क्या यह मात्र आदर सत्कार है, उस व्यक्ति के प्रति समर्पण भाव है, या इसमें कोई ज्ञान, विज्ञान है। इसका पूरा जवाब आपको आज मिलने वाला है।  इसलिए संक्षिप्त लिखी बातों को विस्तृत समझ कर लाभ लें।  नागा साधु धुनि लगाकर तापते है और राख को शरीर में लगाते है। यह क्या कोई अंधविश्वास है ? मूर्ति के आगे धूप, दिया, कपूर, जलाकर जो आरती किया जाता ...

भारतीय वैदिक ज्योतिषशास्त्र : ( गणित ) भाग - ३३

                        दशम लग्न साधन : दशम लग्न साधन करने के लिए इष्टकाल के स्थान पर नतकाल  व स्वोदयमान के जगह लंकोदयमान का प्रयोग किया जाता है। नत दो प्रकार के होते है पूर्व नत और  पश्चिम नत। मध्यरात्रि से मध्यकाल तक पूर्वनत और मध्यकाल से मध्यरात्रि तक पश्चिम नत होता है।  नत साधन करने की विधि :  १- सूर्योदय से मध्यान काल तक यदि जन्म  हुआ हो तो दिनार्ध में इष्टकाल घटाने पर शेष पूर्व नत कहलाता है।  २- मध्यानकाल  से मध्यरात्रि काल तक यदि जन्म हुआ हो तो इष्टकाल में दिनार्ध घटा देने पर शेष पश्चिम नत होता है।  ३- मध्यरात्रि से अगले दिन के सूर्योदय तक यदि जन्म हुआ हो तो ६० घटी में इष्टकाल घटाकर शेष में दिनार्ध जोड़कर लब्धि पूर्वनत होता है।  नोट :  पूर्वनत होने पर भुक्त प्रकार से तथा परनत होने पर भोग्य प्रकार से दशम लग्न का साधन किया जाना चाहिए।  सूर्योदय से सूर्यास्त = दिनमान , ६० घटी - दिनमान = रात्रिमान , दिनमान को आधा करने पर दिनार्ध और रात्रिमान को आधा करने पर अर्धरात्रि काल ...

आत्मा और शरीर के भोज्य सामग्री

आत्मा और शरीर दोनों ही मिलकर जीव का निमार्ण करते है। यों तो इन दोनों की परिभाषा विस्तृत है। लेकिन यहाँ संक्षेप में दोनों के भोज्य सामग्री के बारे में जानने का प्रयास करेंगे।  आत्मा :   परमात्मा का ही एक अंश आत्मा है,  आत्मा का उदगम परमात्मा से होकर परमात्मा में ही विलीन हो जाता है। भाव, भावना, अनुभूति, भक्ति, आराधना, उपासना और सदैव परमात्मा को स्मरण कर ऊर्जावान, शक्तिवान रखते हुए कार्य, बात-संवाद, शुचिता का सदैव समरण करके ही जीवन पथ में सदैव विकासशील  रहना चाहिए। अथार्त आत्मा को भाव की आवश्यकता होती है। व्यक्ति का भाव जहाँ  स्थिर हो जाए , जिस रूप, रंग, धर्म, पंथ, विचार, भावना में स्थिर हो जाय, वह भाव ही आत्मा का उचित उपयुक्त भोज्य सामग्री होता है।  शरीर :  शरीर पञ्च तत्त्व से बना है। शरीर का उदगम पृथ्‍वी तत्व, जल तत्व, अग्नि तत्त्व, वायु तत्व और आकाश तत्व होकर,  पाँचों तत्वों में विलीन हो जाता है। शरीर के भोज्य पदार्थ क्या होने चाहिए ? इसके अनेक मत मतान्तर है।  मेरा निजी मत यह है कि  शरीर को पाँचों तत्व से बना सभी चीज़ दिया जाना चाहि...

भारतीय वैदिक ज्योतिषशास्त्र : ( गणित ) भाग - ३२

            विशेष :  लग्न साधन में ध्यान रखने योग्य मुख्य बातें  १- लग्न साधन में यदि भोग्यपल से इष्टपल कम हो तो इष्टपल को ३० से गुणा कर सायन सूर्य जिस राशि पर हो उस राशि के स्वोदयमान से भाग देने पर जो लब्धि प्राप्त होगी उसको तात्कालिक सूर्य में जोड़ने पर प्रथम लग्न होगा।  २- सूर्यास्त के बाद एवं मध्यरात्रि से पूर्व लग्न साधन करना हो तो तात्कालिक इष्टकाल में दिनमान को घटाकर शेष को इष्टकाल मानकर तथा तात्कालिक सूर्य में ६ राशि जोड़कर भोग्य प्रकार से साधन किया हुआ लग्न निरयन प्रथम लग्न होगा।  ३- मध्य रात्रि के बाद व अगले सूर्योदय से पूर्व यदि लग्न साधन करना हो तो इष्टकाल को ६० घटी में घटाकर शेष को इष्टकाल मानकर भुक्त प्रकार से साधन किया गया प्रथम लग्न होगा।    सुविचार : आलोचना गुरु तुल्य है, क्योंकि आलोचक प्रमाण देकर ज्ञान देते है, और यदि आरोप लगता हो तो उसे छोड़ दीजिए , क्योंकि उसको आप नहीं , सृष्टि या उसके कर्म  सम्मानित कर ही देगी। परन्तु आलोचना हो या आरोप जो भी हो लक्ष्य को कभी मत छोड़िए, क्योंकि लक्ष्य तक पहुँचने ...

" भाग्य या कर्म प्रधान कौन ?

  भाग्य :  भाग्य कर्म से बड़ा है, यदि भाग्य ना हो तो, कर्म करने के उपरान्त भी उचित फल प्राप्त दिखाई नहीं देता क्योंकि भाग्य शेष में कमी होती है। इसलिए भाग्य हमेशा ही कर्म से बड़ा होता है। किन्तु भाग्य का उदगम कर्म से है। अतः कर्म किये बिना भाग्य उचित फल नहीं दे सकता है। अथार्त  ( भाग्य का धन कर्म और कर्म का व्यय भाग्य ) कर्म :  कर्म किये बिना कोई लक्ष्य प्राप्त नहीं हो सकता है। कर्म जैसा, फल वैसा ही होगा। कर्म फल ही भाग्य का व्यय कारक है। विधाता भाग्य अभिकलन, गणना कर उसके फल को उचित उपयुक्त रखते है। मनुष्य को कर्म की अभिकलन, गणना करने की शक्ति विधाता ने प्रदान की है। जैसा भी कर्म मनुष्य द्वारा किया जाता है, फल की गणना कर विधाता भाग्य तय करते है।   भाग्य बड़ा या कर्म : जैसा की आप जानते है, कि भाग्य कर्म से बड़ा माना जाता है। किन्तु भाग्य से पहले कर्म होता है, अथार्त पहले कर्म उसके बाद भाग्य। भाग्य अथार्त हिस्सेदारी ( भाग्य फल शेष ) व्यक्ति के कर्म फल का भोग जो भी शेष रहता है,  वही भाग्य है। यही कारण है हम उसको पूर्व जन्म का भाग्य भी कहते है। भाग्य को ...

"हिन्दू नव वर्ष और चैत्र नवरात्रि शुभकामना"

  आशासे त्वज्जीवने नवं वर्षम् अत्युत्तमं शुभप्रदं स्वप्नसाकारकृत् कामधुग्भवतु। अथार्त : मुझे उम्मीद है कि नया साल आपके जीवन का सबसे अच्छा साल होगा। आपके सभी सपने सच हों और आपकी सभी आशाएँ पूरी हों। दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि। दारिद्र्य दु:ख भयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदाऽऽ‌र्द्रचित्ता।। अथार्त : हे माँ दुर्गे! आपको याद करने से आप सभी प्राणियों के भय को दूर करते हैं और जब स्वस्थ पुरुष उन्हें मानते हैं तो आप उन्हें उच्च कल्याण के साथ ज्ञान देते हैं। आपके सिवा दुःख, दरिद्रता और भय को दूर करने वाली देवी कौन है, जिसका मन सदा सबका भला करने के लिए धड़कता है।  पुनः आप एवं आपके परिवार को हिन्दू नव वर्ष और चैत्र नवरात्रि के पावन, पवित्र संगम के शुभ अवसर में आपको माँ लक्ष्मी धन से, माँ सरस्वती वाणी से, भगवान गणेश निर्विघ्न, धन धान्य से और माँ दुर्गा सम्पूर्ण दुखों का नाश कर, आपकी हर मनोकामना पूर्ण  करें, एवं मंगलमय हो, मेरी शुभकामना।   सुप्रभात : एस एस रावत ॥ हर हर महादेव ॥  🙏🙏🙏

भारतीय वैदिक ज्योतिषशास्त्र : ( गणित ) भाग - ३१

   २- भुक्त प्रकार से लग्न साधन :   तात्कालिक सूर्य ० २ / १४ /४३ /४१  + अयनांश २३ / ५६ / ४३ = सायन सूर्य ० ३ / ० ८ /४० / २४  अथार्त सूर्य का भुक्तांश ०० / ०८ / ४० / २४ को सूर्य के उदयमान कर्क राशि ३४२  ( स्वोदयमान ) से गुणा कर = २७३६ / १३६८० / ८२०८ को ६० से सवर्णित करने पर प्राप्त २९६६ / १६ / ४८ इसमें ३० से भाग देने पर ९८ / ५२ / ३३ भुक्त पल।  ६० घटी - १३ / १० इष्टकाल = ४६ /५० * ६० = २८१० / ०० / ०० शेषपल  २८१० / ०० / ०० - ९८ / ५२ / ३३ भुक्तपल = २७११ / ०७ / २७ शेष  २७११ / ०७ / २७ शेष , इसमें मेषादि उत्क्रम से राशियों के स्वोदयमान घटाने पर चूँकि सायनसूर्य कर्क राशि का है अतः हम यहाँ पर मिथुन राशि से उत्क्रम राशियों के स्वोदयमान को घटाएंगे।  २७११ / ०७ / २७ - ३०४ मिथुन = २४०७ - २५४ वृष = २१५३ - २२१ मेष = १९३२ - २२१ मीन = १७११ - २५४ कुम्भ = १४५७ - ३०४ मकर = ११५३ - ३४२ धनु = ८११ - ३४४ वृश्चिक = ४६७ - ३३५ तुला = १३२ / ०७ / २७ शेष  कन्या राशि का मान नहीं घटने के कारण तुला राशि शुद्ध व कन्या राशि अशुद्ध संज्ञा होगी पुनः शेष को ३० से गुणा...

सुविचार से प्रयास तक, उचित उपयुक्त

  १ - सफलता के पीछे साहस रूपी राज छुपा होता है। जैसी सफलता वैसा साहस, कठिन परिस्थिति में सरलता से कार्य, परेशानी जितनी भी बड़ी हो लेकिन लक्ष्य को कभी ना छोड़ना, निडरता से आगे बढ़ना इसी को नेतृत्व कहते है।   २ - नेतृत्व में वो ताकत है, जो आपके लक्ष्य को वास्तविकता में बदल सकती है।  एक चरवाहे की तरह होता है वह झुण्ड के पीछे रहता है| जो सबसे फुर्तीला है उसे आगे जाने देता है और अन्यों को उसका पीछा करने देता है| उन्हें महसूस भी नहीं होता के वो पीछे से नियंत्रित किये जा रहे हैं। ३ - स्वयं को संभालने के लिए अपने दिमाग का उपयोग करें, तथा दूसरों को संभालने के लिए अपने दिल से व्यवहार करें। मजबूत होना पर असभ्य नहीं, दयालु होना पर कमज़ोर नहीं, विचारशील होना पर आलसी नहीं, विनम्र होना डरपोक नहीं, गर्व होना अभिमान नहीं, हसमुख होना लेकिन मूर्ख नहीं।  ४ - मैंने ऐसा अनुभव किया है अथवा सीखा है। कि लोग आपकी कही हुई बात, आपके किए हुए कार्य दोनो ही भूल जाते है।  लेकिन आपके द्वारा कराया गया अनुभव, उन्होने जो महसूस किया उसको वे कभी नहीं भूलते है।  ५ -  नेतृत्व या लीडर ...

भारतीय वैदिक ज्योतिषशास्त्र : ( गणित ) भाग - ३०

    २- भुक्त प्रकार से लग्न साधन :   सायनसूर्य के भुक्तांश में सायनसूर्य जिस राशि पर हो , उस राशि के स्वोदयमान से गुणाकर ३० से भाग देने पर प्राप्त लब्धि भुक्तपल होगी।  पुनः इष्टकाल को ६० घटी में घटाकर शेष को पलात्मक बनाकर प्राप्त इष्टपल  में , भुक्तपल को घटाने के बाद मेषादि उत्क्रम से यथा संभव राशियों का स्वोदयमान घटाने पर अंतिम घटी राशि शुद्ध एवं अगली राशि अशुद्ध संज्ञा होगी। पुनः शेष में ३० से गुणा कर अशुद्ध राशि के स्वोदयमान से भाग देने पर प्राप्त लब्धि को अशुद्ध राशि संख्या में घटाने पर सायन लग्न होगा सायन लग्न में अयनांश घटाने पर निरयन लग्न होगा।  सूत्र :   सायन सूर्य का भुक्तांश *  सायन सूर्य राशि का स्वोदयमान / ३० = भुक्तपल  पुनः ६० - इष्टकाल = शेष को ( पलात्मक ) - भुक्तपल = शेष - मेषादि उत्क्रम से यथा संभव राशियों के स्वोदयमान = शेष * ३० / अशुद्ध राशि का स्वोदयमान = लब्धि अशुद्ध राशि संख्या - लब्धि = सायन लग्न  सायन लग्न - अयनांश         =  निरयन लग्न  उदाहरण :  यदि जन...

सुविचार से प्रयास तक उचित उपयुक्त

  १ -  आपको हर हाल में खुश रहना है, यदि आप ऐसा नहीं करेंगे तो हो सकता है, आपसे आपका डॉक्टर खुश रहेगा। दुःख, दर्द, व्यथा, भय सब कुछ आपके भीतर है , और ख़ुशी, साहस, सुख वो भी आपके ही भीतर है, चयन प्रक्रिया भी आपके ही भीतर है। "उचित उपयुक्त" २ - जिन्दगी कभी कभी पीछे भी जाती है, ताकि उतना ही आगे जा सकें। बड़ी छलाँग लगाने के लिए, थोड़ा पीछे जाना ही पड़ता है। किसी के आगे झुकने से अच्छा, स्वयं के अंदर ही झुकें। स्वयं का मंच से जो अनुभूति, संतुष्टि, उपलब्धि प्राप्त होगी वही सिद्धि, प्रसिद्धि, निपूर्णता के शिखर तक पहुंचाएगी।   ३ -  बुराई अथवा अनादर वही लोग करते है,  जो आपकी बराबरी करने में असमर्थ है। और जो लोग उतार - चढ़ाव के बावजूद भी आपसे जुड़े रहते है। उनका अनादर कभी ना करें । याद रखें देने वाला सिर्फ देता है।  सुख के समय :  धन, दौलत, वैभव , प्रसिद्धि , आरोग्य , प्रतिष्ठा और दुःख के समय : अनुभव, जीवन जीने के अकल्पनीय नए तरीके, अपना - पराए का ज्ञान आदि।  ४ - जिन लोगों ने आपका संघर्ष, कड़ी मेहनत, अनुशासन, त्याग देखा है।  केवल वही लोग आपके संघर्...

सुविचार से प्रयास तक, उचित उपयुक्त

  १- सही फैसले लेना आम बात है, फैसले लेकर उनको सत्यापित करना ख़ास है।   गलती एक ही कदम पर, रिश्ते पुरे सफ़ऱ पर , लड़खड़ाकर चलने से  रिश्ते खोने जैसा है। कदमों को मजबूती से रखा जा सकता है, किन्तु अच्छे लोग या रिश्ते भाग्य  कभी कभी ही मिलते है।  २- यदि हम अकेले है तो हमको अधिक विचारों से बचना चाहिए, और यदि हम समूह में है तो अधिक बोलने से बचना चाहिए , ठीक इसी प्रकार रिश्ते अगर भावनाओं से बने है, तो जुड़े रहते है. और यदि स्वार्थ से बने है, तो एक ना एक दिन टूट ही जाते है।  ३- हम सब खिलाडी की भूमिका में होते है, खेल हमारी जिंदगी है, फिर कोई अच्छा खिलाडी बनता है, तो कोई साधारण, लेकिन यह भी सही है, हम जिस कार्य के लिए चुने गए है। सृष्टि या परमात्मा हमको वही पहुँचाती है। एक और बात हम जितना थकते है, भीतर से उतना ही मजबूत होते है, अथार्त जिंदगी कुछ न कुछ देती ही है।  ४-  किस पद में विराजमान है यह महत्वपूर्ण नहीं, बल्कि हमारे अंदर कौन से गुण, आदर्श, सिद्धांत, मानवता है , यह महत्वपूर्ण है।  इसलिए व्यक्ति भीतर मन को सजाने - सवारने  में लग जाएँ, क्योंक...

सुविचार से प्रयास तक उचित उपयुक्त

  १- धन से सामान ख़रीदा जा सकता है आशीर्वाद से सिद्धि, निपूर्णता, धन, सुख,आरोग्य, प्रसिद्धि आदि।  धैर्य , सदमार्ग, कर्मठ्ता आपको जीवन में कभी गिरने नहीं देगी,  ना रुकने देगी,  फिर चाहे किसी के कदमों हो या नजरों में हो।  २- जीवन में कोई भी रास्ता कभी बंद नहीं होता, और नहीं होता लक्ष्य को अभेद रखने का कोई दुर्गभाग्य। छोड़े हिम्मत, नहीं कोई योजना, भगवान भरोसे रहना, और जब निकल जाय वह कालखंड तो सिर्फ भाग्य को कोसना। अयोग्यिता।   ३- पक्के इरादे, बुलंद हौसले, कभी कोई कसर नहीं छोड़े,  अपनी किस्मत स्वयं ही लिखें,  कॉपी का एक भी पन्ना खली ना रखे, परिश्रमी - पराक्रमी  को भाग्य तो क्या प्रभु भी अकेला कभी ना छोडें । सुयोग्यता  ४- आप भीतर मन से कमजोर हो चुके है, इसका पता किसी को नहीं होना चाहिए, मान - सम्मान तो जायेगा ही, बल्कि लोग अनुसरण करना भी छोड़ देंगे। दिल से सच्चे, जुबान के कडुवे, जीवन में अकेले तो रह जाते है, पर उनका साथ परमात्मा जरूर देते है।  ५- चलना तो पड़ेगा ही, चाहे आप जिस प्रकार से, जैसे चलिए , यदि आप सच के साथ चलते है तो एक द...

सुविचार से प्रयास तक उचित उपयुक्त

  1- धीरे चलना, तेज चलना मापदंड नहीं बल्कि हम चल रहे है अथवा नहीं इसको जरूर देखना चाहिए, छोटे छोटे प्रयासों से बड़े कार्य सिद्ध होते है, गलतियाँ स्वयं की हो या दूसरे की दोनो से सीखना चाहिए, सुविधा से बाहर जाकर ही क़ामयाबी मिलती है स्वयं को परिधि में बांधकर ना रखें। 2- यदि आत्मविश्वास की कमी हो तो शक्तिशाली व्यक्ति भी कमजोर और कमजोर व्यक्ति भी शक्तिमान बन जाता है, आशा की किरण अंधकार को मिटा देती है, सिर्फ हमारे सोच का ही थोड़ा अंतर होता है वर्ना कोई भी समस्या आपको कमजोर नहीं मजबूत करने आती है। 3- अच्छाई या बुराई दोनो ही एक सिक्के के दो पक्ष है, लेकिन समय ही वो होता है जो अच्छाई या बुराई को ऊपर / सामने में लता है इसलिए कभी भी जीतने से पहले जीत को और हारने से पहले हार को नहीं मानना चाहिए। 4- जिस प्रकार पतझड़ के बिना नए पत्ते नहीं आते, उसी तरह परेशानी, संघर्ष, कष्ट सहे बिना क़ामयाबी नहीं आती, अहंकार नहीं करना चाहिए जो आज आपके पास है, वह कल आपसे दूर भी होगा, सच ही कहा गया है जिसको पत्थर समझते थे वह कोहिनूर निकला। 5- कमजोर शरीर से चला जा सकता है, कमजोर हौसले, दुविधा...

भारतीय वैदिक ज्योतिषशास्त्र : ( गणित ) भाग - २९

   १- भोग्य प्रकार से लग्न साधन :   तात्कालिक सूर्य ० २ / १४ /४३ /४१  + अयनांश २३ / ५६ / ४३ = सायन सूर्य ० ३ / ० ८ /४० / २४ अथार्त कर्क राशि इस राशि में में सायन सूर्य को घटाने पर ०४ / ०० /००/ ०० - ०३ /०८ / ४० / २४ प्राप्त अंतर ०० / २१ / १९ /३६ भोग्यांश अब इसी भोग्यांश को सायन सूर्य के स्वोदयमान से गुणा कर पर।  ०० / २१ / १९ /३६  को ३४२ से गुणा = ७१८२ / ६४९८ / १२३१२ को ६० से सवर्णित करने पर प्राप्त लब्धि ७२९३ / ४२ / १२ हुआ। अब इसमें ३० से भाग देने पर २४३ / ०७ / २४ भोग्यपल आया। अब इष्टकाल को इष्ट पल बनाकर भोग्य पल को घटाना होगा। १३ / १० इष्ट काल गुणा ६० = ७९० / ०० / ०० इष्ट पल में - भोग्य पल २४३ / ०७ / २४ = ५४६ /५२ /३६ शेष।  शेष में यथा संभव राशियों का स्वोदयमान घटाना होगा चुकी सायनसूर्य कर्क राशि का था अतः हम सिंह राशि के स्वोदयमान से क्रमपूर्वक राशियों का स्वोदयमान घटाएँगे।  ५४६ / ५२ / ३६ - ३४४ सिंह राशि का स्वोदयमान = २०२ / ५२ / ३६ इसमें कन्या राशि का स्वोदयमान घट नहीं सकता इसलिए सिंह राशि शुद्ध व कन्या राशि अशुद्ध संज्ञा होगी। अब उपरोक्त शे...